भारत का भूजल संकट

पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण; प्रदूषण

संदर्भ

  • केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने हाल ही में केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा तैयार वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट 2024 जारी की। यह व्यापक रिपोर्ट भारत के भूजल संसाधनों की स्थिति, उनकी गुणवत्ता, उपयोग की प्रवृति और चुनौतियों पर प्रकाश डालती है, साथ ही सतत प्रबंधन प्रथाओं की तत्काल आवश्यकता पर बल देती है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • भूजल गुणवत्ता के :
    • सकारात्मक संकेतक:
      • 81% भूजल नमूने सिंचाई के लिए उपयुक्त हैं।
      • उत्तर-पूर्वी राज्यों में भूजल के 100% नमूनों को कृषि के लिए उत्कृष्ट माना गया।
  • संदूषण संबंधी चिंताएँ:
    • क्षेत्रों में नाइट्रेट, फ्लोराइड और आर्सेनिक द्वारा संदूषण दिखाई देता है, जो स्वास्थ्य के लिए जोखिम उत्पन्न करता है।
  • मौसमी रुझान:
    • मानसून के पश्चात् के पुनर्भरण से कई क्षेत्रों में भूजल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • कृषि उपयुक्तता:
    • सोडियम सोखना अनुपात (SAR) और अवशिष्ट सोडियम कार्बोनेट (RSC) के अनुकूल स्तर सिंचाई क्षमता को बढ़ाते हैं।
    • हालाँकि, कुछ क्षेत्रों में उच्च सोडियम सामग्री मिट्टी के क्षरण का कारण बन सकती है, जिसके लिए लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।

भूजल स्थिरता की चुनौतियाँ

  • अत्यधिक निकासी: भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल निष्कर्षक है, जो वैश्विक निकासी का 25% है।
    • 700 में से 256 जिलों को गंभीर या अत्यधिक दोहन वाले के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • कृषि पर निर्भरता: अस्थिर कृषि पद्धतियाँ भूजल की कमी में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, पारंपरिक फसलों के लिए अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है।
  • अनुमानित जल संकट: 2030 तक, 21 भारतीय शहरों के भूजल भंडार समाप्त होने की उम्मीद है।
  • जलवायु परिवर्तन: अनियमित मानसून, अप्रत्याशित वर्षा पैटर्न और जनसंख्या वृद्धि भूजल तनाव को बढ़ाती है।
  • नीतिगत 
  • कमियाँ: कार्यान्वयन में अक्षमता और कठोर नियमों की कमी भूजल प्रबंधन में बाधा उत्पन्न करती है।

संकट से निपटने के लिए सरकारी पहल

  1. अटल भूजल योजना (ABY): सात राज्यों के 80 जिलों में जल-संकटग्रस्त ग्राम पंचायतों पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • समुदाय के नेतृत्व वाले जल प्रबंधन पर बल दिया जाता है, जिसमें सम्मिलित हैं:
      • जल बजट बनाना।
      • वर्षा जल संचयन और जलभृत पुनर्भरण।
      • जल-कुशल फसल पैटर्न को प्रोत्साहित करना।
  2. वर्षा जल संचयन: विभिन्न राज्य स्तरीय कार्यक्रमों और शहरी विनियमों के माध्यम से बढ़ावा दिया जाता है।
    • उदाहरण:
      •  तमिलनाडु में छत के माध्यम से जल संग्रहण। 
      • गुजरात में बड़े पैमाने पर पुनर्भरण संरचनाएँ।
  3. जल शक्ति अभियान – वर्षा जल संचयन (5 वाँ चरण): ग्रामीण और शहरी दोनों जिलों में वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण को प्रोत्साहित करता है।
  4. सहभागी भूजल प्रबंधन (PGWM): भूजल की निगरानी एवं संरक्षण के लिए स्थानीय शासन, समुदायों और गैर सरकारी संगठनों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
  5. तकनीकी नवाचार: भूजल उपलब्धता के मानचित्रण और पूर्वानुमान के लिए GIS, रिमोट सेंसिंग और AI को अपनाना।
    •  जलभृत मानचित्रण और संसाधन नियोजन के लिए इसरो के साथ साझेदारी।
  6. समुदाय-नेतृत्व वाली सफलता की कहानियाँ:
    • राजस्थान: तरुण भारत संघ जैसे गैर-सरकारी संगठनों ने जोहड़ जैसी पारंपरिक जल संचयन तकनीकों के माध्यम से नदियों और जलभृतों को पुनर्जीवित किया।
    • महाराष्ट्र का जल फाउंडेशन: गांवों को वाटरशेड प्रबंधन अपनाने के लिए प्रेरित किया, जिससे भूजल स्तर में उल्लेखनीय सुधार हुआ।
    • गुजरात की ज्योतिग्राम योजना: कृषि और घरेलू उपयोग के लिए अलग-अलग बिजली फीडर, जिससे भूजल के विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा मिला।

अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): जल-उपयोग दक्षता पर ध्यान केंद्रित करते हुए सिंचाई कवरेज का विस्तार करती है।
    • इसमें प्रत्येक खेत को जल और वाटरशेड विकास जैसे घटक शामिल हैं। 
  • मिशन अमृत सरोवर: वर्षा जल संचयन को बढ़ाने के लिए प्रति जिले 75 जल निकायों का निर्माण या पुनरुद्धार करने का लक्ष्य है। 
  • राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण (NAQUIM): 25 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक के लिए पूरा किया गया, जो पुनर्भरण और संरक्षण योजना में सहायता करता है। 
  • जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (BWUE): सिंचाई, विद्युत उत्पादन और घरेलू जल आपूर्ति सहित सभी क्षेत्रों में बेहतर जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देता है।

भूजल पुनरुद्धार के लिए प्रमुख सिफारिशें

  • नीतियों और विनियमों को मजबूत बनाना: अत्यधिक निकासी को रोकने के लिए सख्त कानून लागू करना।
    •  स्थानीय स्तर पर नीति कार्यान्वयन में जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  •  सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना: जल की मांग को कम करने के लिए सूक्ष्म सिंचाई, ड्रिप सिस्टम और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना। 
  • सफल मॉडलों का विस्तार करना: अटल भूजल योजना और PGWM जैसी पहलों का देश भर में विस्तार करना।
  •  प्रौद्योगिकी-संचालित समाधान: वास्तविक समय की निगरानी और पूर्वानुमानित योजना के लिए AI और GIS जैसी उन्नत तकनीकों में निवेश करना। 
  • जन जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन: शिक्षा और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से भूजल संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  •  जलवायु-लचीला जल प्रबंधन: अनियमित वर्षा और सूखे के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों के लिए आकस्मिक योजनाएँ विकसित करना।

निष्कर्ष

  • भूजल पर भारत की निर्भरता के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो नीतिगत सुधारों, तकनीकी नवाचार एवं समुदाय के नेतृत्व वाले प्रयासों को एकीकृत करता है। जबकि ABY, वर्षा जल संचयन और जलभृत मानचित्रण जैसी पहल सही दिशा में कदम हैं, अत्यधिक निकासी, नीतिगत अंतराल तथा जलवायु परिवर्तनशीलता जैसी चुनौतियों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। 
  • सामूहिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देने और सतत प्रथाओं को अपनाने से, भारत अपने 1.4 बिलियन नागरिकों के लिए जल सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है तथा भविष्य की पीढ़ियों के लिए इस महत्वपूर्ण संसाधन को संरक्षित कर सकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत के शहरी क्षेत्र आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता में संतुलन बनाते हुए बिगड़ते भूजल संकट का समाधान कैसे कर सकते हैं?

Source: LM

 

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