भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)

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भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) लेखा परीक्षण व लेखा विभाग का प्रमुख होता है। यह एक संवैधानिक निकाय होने के साथ-साथ लोक वित्त का सरंक्षक भी होता है। सार्वजनिक वित्त के सन्दर्भ में CAG का नियंत्रण केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर होता हैं। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) का विस्तार से अध्ययन करना है, जिसके अंतर्गत इसके संवैधानिक प्रावधान, संरचना, शक्तियाँ, कार्य, इसके समक्ष चुनौतियाँ एवं अन्य संबंधित पहलू शामिल हैं।

  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) संविधान द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र निकाय है। यह केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और सरकारी वित्त प्राप्त करने वाली अन्य संस्थाओं की आय और व्यय का लेखांकन करता है।
    • चूँकि इस निकाय को संविधान के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया है, इसलिए यह एक संवैधानिक निकाय है।
  • CAG भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा विभाग का प्रमुख होता है और यह सरकारी वित्त के संरक्षक के रुप में कार्य करता है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 तक भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के प्रावधानों से संबंधित है।

अनुच्छेद संख्याविषय-वस्तु
अनुच्छेद 148भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक
अनुच्छेद 149नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के कर्तव्य एवं शक्तियाँ
अनुच्छेद 150संघ और राज्यों के लेखों का प्रारूप
अनुच्छेद 151लेखापरीक्षा रिपोर्ट

भारत के राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर वाले अधिपत्र द्वारा भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति करते हैं।

पदभार ग्रहण करने से पहले, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) भारत के राष्ट्रपति के समक्ष निम्नलिखित शपथ या प्रतिज्ञान लेते हैं:

  • भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखना।
  • भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखना।
  • अपने कर्तव्यों का निष्पक्षता, निष्ठा एवं अपने ज्ञान, क्षमता और निर्णय के अनुसार यथासंभव निर्भीक होकर, बिना किसी पक्षपात, स्नेह या द्वेष के पालन करना।
  • संविधान और कानूनों का पालन करना।

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियाँ और सेवा शर्तें) अधिनियम, 1971 के अनुसार, CAG 6 वर्षों तक या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते है।

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) भारत के राष्ट्रपति को त्याग पत्र संबोधित करके किसी भी समय अपने कार्यालय से इस्तीफा दे सकते हैं।

  • भारत के राष्ट्रपति भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) को उसी आधार पर और उसी तरीके से हटा सकते हैं, जिस तरह से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
  • इस प्रकार, राष्ट्रपति द्वारा CAG को संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर, या तो साबित कदाचार या अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है।
  • वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में भारत के संविधान और संसद के कानूनों को बनाए रखना।
    • यही कारण है कि डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने CAG को भारत के संविधान के तहत सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारियों में से एक बताया है।
  • CAG की परिकल्पना सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली के चार रक्षकों में से एक के रूप में की गई है।
  • अपनी लेखापरीक्षण रिपोर्टों के माध्यम से वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में संसद के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • यह संसद के एक एजेंट के रूप में कार्य करता है तथा संसद की ओर से आय-व्यय का लेखा परीक्षण करता है।
  • इसलिये , वह संसद के प्रति उत्तरदायी है।

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions)

भारत के संविधान ने CAG के लिए निम्नलिखित कार्य निर्धारित किये हैं:

अनुच्छेद 150वह राष्ट्रपति को उस प्रपत्र के निर्धारण के संबंध में सलाह दे सकते है जिसमें केंद्र और राज्यों के लेखाओं को रखा जाना चाहिए।
अनुच्छेद 151वह केंद्र की लेखाओं से संबंधित लेखा परीक्षण रिपोर्ट को राष्ट्रपति को सौंपते है, जो बदले में उन्हें संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखते है।
अनुच्छेद 151वह किसी राज्य के लेखाओं से संबंधित लेखा परीक्षा रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपते है, जो बदले में उन्हें राज्य विधानमंडल के समक्ष रखते है।
अनुच्छेद 279CAG के द्वारा किसी भी कर या शुल्क की शुद्ध आय का पता लगाया जाता है और उसे प्रमाणित किया जाता है।
इस संबंध में CAG का प्रमाण पत्र अंतिम होता है।

विधिक प्रावधान (Legal Provisions)

भारत के संविधान का अनुच्छेद 149 संसद को भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के कर्तव्यों और शक्तियों को निर्धारित करने लिए अधिकृत करता है। तदनुसार, संसद ने भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1971 अधिनियमित किया।

इस अधिनियम के अनुसार, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के निम्नलिखित कार्य हैं:

  • वह भारत, प्रत्येक राज्य और विधान सभा वाले प्रत्येक केंद्र शासित प्रदेश की संचित निधि से होने वाले सभी व्ययों से संबंधित खातों का लेखांकन करते हैं।
  • वह भारत तथा प्रत्येक राज्य की आकस्मिक निधि एवं लोक लेखा खाते से संबंधित सभी लेन-देन का लेखा-परीक्षण करते हैं।
  • वह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के किसी भी विभाग द्वारा रखे गए सभी व्यापार, विनिर्माण, लाभ और हानि खातों, बैलेंस शीट और अन्य सहायक खातों का ऑडिट करते हैं।
  • वह केंद्र या राज्य के राजस्व से पर्याप्त रूप से वित्तपोषित सभी निकायों और प्राधिकरणों की आय और व्यय का लेखा-परीक्षण करते हैं।
  • वह केंद्र और राज्य सरकारों से विशिष्ट उद्देश्यों के लिए अनुदान और ऋण प्राप्त करने वाले सभी निकायों एवं प्राधिकरणों के खातों का लेखा-परीक्षा करते हैं।
  • वह केंद्र और राज्यों की सभी प्राप्तियों का लेखा-परीक्षा करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि इस संबंध में नियम और प्रक्रियाएं राजस्व के मूल्यांकन, संग्रह और उचित आवंटन पर एक प्रभावी जांच सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं।
  • वह केंद्र और राज्य सरकारों के सभी कार्यालयों एवं विभागों में रखे गए सभी भंडारण और स्टॉक का लेखा-परीक्षा करते हैं।
  • वह कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सभी सरकारी कंपनियों के खातों का लेखा-परीक्षा करते हैं।
  • वह उन सभी निगमों के खातों का भी लेखा-परीक्षा करते हैं जिनके कानूनों में उनके द्वारा लेखा-परीक्षा का प्रावधान है।
  • वह राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा अनुरोध किये जाने पर किसी अन्य निकाय या प्राधिकरण के खातों का लेखा-परीक्षा करते हैं।
  • वह संसद की लोक लेखा समिति के मार्गदर्शक, मित्र और सलाहकार के रूप में कार्य करते हैं।
  • वह राज्य सरकारों के खातों का संकलन एवं रखरखाव करते हैं।
    • 1976 से पहले, CAG के द्वारा केंद्र सरकार के खातों का भी संकलन और रखरखाव किया जाता था। हालाँकि, 1976 में, लेखापरीक्षा से खातों के पृथक्करण के कारण उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया था।

लेखा-परीक्षण कर्तव्यों के निर्वहन के संबंध में, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के पास निम्नलिखित शक्तियाँ होती हैं:

  • किसी भी कार्यालय या विभाग का निरीक्षण करना, जो CAG के लेखा-परीक्षा के अधीन है।
  • सभी लेन-देन की जाँच करना और कार्यालय या विभाग के प्रभारी व्यक्ति से पूछताछ करना।
  • लेखा-परीक्षित किसी भी संस्था से किसी भी रिकॉर्ड, कागजात और दस्तावेजों की मांग करना।
  • लेखा-परीक्षण की सीमा और तरीका तय करना।

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के द्वारा राष्ट्रपति को तीन लेखा परीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती हैं:

  • व्यय विवरण पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report on Appropriation Accounts)
    • व्यय विवरण वास्तविक व्यय की तुलना संसद द्वारा व्यय विधेयक के माध्यम से स्वीकृत व्यय से करता है।
  • वित्त लेखा पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report on Finance Accounts)
    • वित्त लेखा केंद्र सरकार की वार्षिक प्राप्तियों और व्यय को दर्शाता है।
  • सार्वजनिक उपक्रमों पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report on Public Undertakings)

राष्ट्रपति द्वारा इन रिपोर्टों को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाता हैं। फिर, लोक लेखा समिति इन रिपोर्टों की जांच करती है और अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट भारत की संसद को सौंपती है।

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के द्वारा सरकारी व्यय में वित्तीय जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रकार के लेखापरीक्षण किये जाते है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा आयोजित प्रमुख प्रकार की लेखापरीक्षण निम्नलिखित हैं:

लेखापरीक्षण के प्रकारपरिभाषाटिप्पणी
वैधानिक और विनियामक लेखापरीक्षणइस लेखापरीक्षण द्वारा पता लगाया जाता है कि क्या खातों में दिखाए गए वित्त का वितरण कानूनी रूप से किया गया था और क्या यह वितरण उस सेवा या उद्देश्य के लिए किया गया था, जिसके लिए उन्हें लागू किया गया था या चार्ज किया गया था और क्या व्यय उस प्राधिकरण के अनुरूप है जो इसे नियंत्रित करता है।यह CAG के लिए अनिवार्य है।
औचित्य लेखापरीक्षणइसके द्वारा सरकारी व्यय की बुद्धिमत्ता, विश्वसनीयता और मितव्ययिता को देखा जाता है और ऐसे व्यय की फिजूलखर्ची पर टिप्पणी की जाती है।यह CAG के विवेकाधीन पर निर्भर है।
निष्पादन लेखापरीक्षणइसके अंतर्गत सार्वजनिक वित्त की प्राप्ति और आवेदन में मितव्ययिता, दक्षता और प्रभावशीलता को देखा जाता है। यह विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की प्रगति और दक्षता का एक व्यापक मूल्यांकन है।यह वांछनीय है, लेकिन अनिवार्य नहीं है।
  • भारत का संविधान नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को नियंत्रक और महालेखा परीक्षक दोनों के रूप में परिकल्पित करता है। हालाँकि, वास्तविक व्यवहार में, भारत का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक केवल एक महालेखा परीक्षक की भूमिका निभाता है, न कि नियंत्रक की।
    • ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक का भारत की संचित निधि से वित्त की निकासी पर कोई नियंत्रण नहीं है क्योंकि कई विभागों को नियंत्रक और महालेखा परीक्षक से विशिष्ट प्राधिकरण के बिना चेक जारी करके धन निकालने का प्राधिकार है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की भूमिका केवल लेखा परीक्षण के चरण में ही सामने आती है जिसमे व्यय पहले ही हो चुका होता है।
  • इस संबंध में, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ब्रिटेन के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक से पूरी तरह से भिन्न हैं।
    • ब्रिटेन के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के पास नियंत्रक और महालेखा परीक्षक दोनों की शक्तियाँ हैं क्योंकि ब्रिटेन की कार्यपालिका केवल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के अनुमोदन से ही सरकारी कोष से वित्त की निकासी कर सकती है।
मापदंडभारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षकब्रिटेन के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक
भूमिकाभारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की भूमिका केवल एक महालेखा परीक्षक है,न कि नियंत्रक की।ब्रिटेन के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के पास नियंत्रक और महालेखा परीक्षक दोनों की शक्तियाँ है।
लेखापरीक्षण दृष्टिकोणभारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक व्यय किये जाने के बाद खातों का लेखा-परीक्षण करता है अर्थात पूर्व के तथ्य।यूनाइटेड किंगडम (यूके) में, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के अनुमोदन के बिना सार्वजनिक निधि से कोई धन नहीं निकाला जा सकता है।
संसदीय भूमिकाभारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक संसद का सदस्य नहीं होता हैं।ब्रिटेन के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य होता हैं।

भारतीय संविधान ने भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए हैं:

  • कार्यकाल की सुरक्षा: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को कार्यकाल की सुरक्षा प्राप्त है। राष्ट्रपति उन्हें केवल संविधान में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार ही पद से हटा सकते हैं।
  • पुनर्नियुक्ति पर रोक: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के रूप में कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात्, वह भारत सरकार या किसी राज्य के अधीन किसी अन्य पद के लिए पात्र नहीं होते हैं।
  • वेतन और सेवा शर्तें: संसद द्वारा नियंत्रक और महालेखा परीक्षक का वेतन एवं अन्य सेवा शर्तें निर्धारित की जाती हैं। 1971 के भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा शर्तें) अधिनियम के अनुसार, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है।
  • वेतन और सेवा लाभों में परिवर्तन: नियुक्ति के पश्चात् उनके वेतन या अवकाश, पेंशन या सेवानिवृत्ति की आयु के संबंध में उनके अधिकारों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किये जा सकते।
  • लेखा परीक्षा विभाग: भारतीय लेखापरीक्षा एवं लेखा विभाग में सेवारत व्यक्तियों की सेवा शर्तें तथा CAG की प्रशासनिक शक्तियाँ CAG के परामर्श के बाद राष्ट्रपति द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं।
  • आर्थिक स्वतंत्रता: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक कार्यालय के सभी वेतन, भत्ते और पेंशन सहित प्रशासनिक खर्च भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं।
    • इस प्रकार, ये संसद के मतदान के अधीन नहीं हैं।
  • कार्योत्तर भूमिका: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को सार्वजनिक कोष से धन जारी करने पर कोई नियंत्रण नहीं है। उनकी भूमिका पहले से किए गए व्यय का लेखा परीक्षण करने तक सीमित है।
    • यह वित्तीय जवाबदेही के रक्षक के रूप में उनकी भूमिका को सीमित करता है।
  • इन्वेंट्री संबंधी सीमाएँ: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को प्राप्ति, भंडारण और स्टॉक के लेखा परीक्षण की तुलना में व्यय के लेखा परीक्षण की अधिक स्वतंत्रता है। व्यय के संबंध में, वे लेखा परीक्षण की परिधि का निर्णय करते हैं और अपने स्वयं के लेखा परीक्षण कोड और नियमावली बनाते हैं। जबकि अन्य लेखा परीक्षणों के संबंध में उन्हें कार्यपालिका के अनुमोदन के साथ आगे बढ़ना पड़ता है।
  • कुछ खर्चों संबंधी सीमाएँ: गुप्तचर सेवा व्यय के लेखा परीक्षण के संबंध में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की भूमिका सीमित है। इस संबंध में, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक कार्यकारी एजेंसियों द्वारा किए गए व्यय का विवरण नहीं मांग सकते हैं बल्कि उन्हें सक्षम प्रशासनिक प्राधिकरण से प्रमाण पत्र स्वीकार करना पड़ता है।
  • कुछ संगठनों से संबंधित सीमाएँ: सार्वजनिक उपक्रमों और सरकारी कंपनियों के लेखा परीक्षण में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की भूमिका भी सीमित है।

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की चुनौतियाँ इसकी प्रभावशीलता और कार्यक्षमता को सीमित कर सकती हैं। जिसमे कुछ चुनौतियों निम्नलिखित है:

  • प्रशासन का सीमित ज्ञान – लेखापरीक्षकों को अच्छे प्रशासन के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं होती और उनसे ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। इससे सीएजी ऑडिट का दृष्टिकोण संकीर्ण हो जाता है और उपयोगिता बहुत सीमित हो जाती है।
  • लेखापरीक्षा की बढ़ती जटिलता – भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के विकसित रूपों के कारण लेखापरीक्षक को बढ़ती जटिलताओं का सामना करना पड़ता है, जिससे ऐसे मुद्दों को प्रभावी ढंग से पहचानने और उनका समाधान करने में चुनौतियाँ आती हैं।
  • नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की बढ़ती जिम्मेदारियाँ – केंद्र और राज्य सरकारों की निगरानी की अपनी पारंपरिक जिम्मेदारी के अलावा, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अब विभिन्न सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं का भी लेखांकन करता है, जिससे इसकी परिधि और जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं।
  • पूर्वाग्रही नियुक्तियों का डर – नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति के लिए संविधान या विधियों में कोई स्पष्ट मापदंड या प्रक्रिया नहीं है, जिससे कार्यपालिका को अपनी पसंद के व्यक्ति को नियुक्त करने का एकमात्र विवेक मिल जाता है। इससे पक्षपातपूर्ण नियुक्तियों का डर पैदा होता है।
  • व्यावहारिक चुनौतियाँ – जबकि नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के पास सरकारी कार्यालयों का निरीक्षण करने और लेखापरीक्षा उद्देश्यों के लिए आवश्यक खातों का अनुरोध करने का अधिकार है, लेकिन व्यावहारिक कार्यान्वयन में प्राय: कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है जैसे आवश्यक दस्तावेज प्राप्त करने में देरी, सरकारी अधिकारियों का सहयोग न मिलना, भ्रष्टाचार का पता लगाने में जटिलता, और कार्यालयों में कुप्रबंधन आदि।
  • रिकॉर्ड तक देरी से पहुँच – महत्वपूर्ण दस्तावेजों को अक्सर लेखापरीक्षा कार्यक्रमों के समापन तक रोका जाता है, जिससे लेखा परीक्षकों की गहन और समय पर जांच करने की क्षमता बाधित होती है।
  • कार्यकाल की सीमाएँ – यद्यपि संविधान छह साल के कार्यकाल का प्रावधान करता है, लेकिन 65 वर्ष की सेवानिवृत्ति आयु लागू करने से नियंत्रक और महालेखा परीक्षकों के प्रभावी कार्यकाल को कम कर देता है। यह संस्थागत निरंतरता और विशेषज्ञता को बाधित करता है।
  • पक्षपातपूर्ण ऑडिटिंग के आरोप – हाल के सीएजी ऑडिट के पश्चात् उपलब्ध कराए गए आंकड़ों में नुकसान के अनुमान के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है, जो अखंडता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए ऑडिट मानकों के कड़े पालन के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • CAG की चयन प्रक्रिया में स्वतंत्रता और योग्यता सुनिश्चित करने के लिए CAG की नियुक्ति के लिए एक कोलेजियम-प्रकार का तंत्र स्थापित किया जा सकता है।
  • समसामयिक प्रशासन प्रथाओं और चुनौतियों के साथ इसके प्रावधानों को संरेखित करने के लिए नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 में उपयुक्त रूप से संशोधन किया जाना चाहिए।
  • निरंतर विकास लक्ष्य और वस्तु एवं सेवा कर (GST) आदि जैसे महत्वपूर्ण उभरते मुद्दों के संबंध में व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से क्षमता निर्माण किया जाना चाहिए।
  • पारदर्शिता और दक्षता में सुधार के लिए, लेखा परीक्षकों को सात दिनों के भीतर रिकॉर्ड तक प्राथमिकता पहुंच प्रदान की जानी चाहिए, विभाग प्रमुखों को किसी भी देरी के लिए स्पष्टीकरण प्रदान करना होगा।
  • निजी-सार्वजनिक भागीदारी (PPP) की सभी संस्थाओं, पंचायती राज संस्थाओं और सरकारी वित्त पोषित समाजों को नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के लेखा परीक्षण परिधि में लाया जाना चाहिए, जिससे इन संस्थाओं में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेहिता सुनिश्चित हो सके।

निष्कर्षत: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) को वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेहिता के एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ के रूप में माना जाता है। चूंकि भारत आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति के पथ पर अग्रसर है, इसलिए भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की भूमिका अपरिहार्य हो जाती है। इसकी सीमाओं और चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक कदम उठाना भारत में सुशासन को बढ़ावा देने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।

ऑडिट बोर्ड क्या है?

लेखा परीक्षा बोर्ड की स्थापना नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के कार्यालय के एक भाग के रूप में की गई थी ताकि इंजीनियरिंग, रसायन आदि जैसे विशेष उद्यमों के लेखापरीक्षण के तकनीकी पहलुओं को संभालने के लिए बाहरी विशेषज्ञों और विशेषज्ञों को जोड़ा जा सके। इस बोर्ड की स्थापना प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिशों पर की गई थी।

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