म्यांमार, मणिपुर और तनावपूर्ण सीमाएँ

पाठ्यक्रम: GS2/भारत और इसके पड़ोसी; GS3/आंतरिक सुरक्षा

सन्दर्भ

  • म्यांमार में हाल की राजनीतिक अस्थिरता तथा भारत में शरणार्थियों के आगमन, विशेषकर म्यांमार के सीमावर्ती क्षेत्रों में, के कारण पहले से ही कमजोर सीमा प्रबंधन एवं सुरक्षा ढाँचे पर दबाव पड़ा है।

भारत-म्यांमार सीमा के बारे में

  • भारत-म्यांमार सीमा 1643 किमी. लंबी है और अरुणाचल प्रदेश (520 किमी.), नागालैंड (215 किमी.), मणिपुर (398 किमी.) और मिजोरम (510 किमी.) राज्यों से होकर गुजरती है।
    • ये ऐतिहासिक रूप से छिद्रपूर्ण रहे हैं, जिससे मुक्त आवागमन व्यवस्था (FMR) के अंतर्गत लोगों को मुक्त आवागमन की अनुमति मिलती रही है।
  • हालाँकि, मणिपुर के सीमावर्ती क्षेत्र (म्यांमार के चिन राज्य के साथ सीमा साझा करते हुए), लंबे समय से नृजातीय तनाव, उग्रवाद और भू-राजनीतिक जटिलताओं का स्थल रहे हैं।

भू-राजनीतिक संदर्भ

  • म्यांमार का राजनीतिक संकट: 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के पश्चात् से, देश व्यापक संघर्ष में घिरा हुआ है।
    • तत्माडॉ (म्यांमार की सेना) ने लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्त्ताओं, नृजातीय विद्रोही समूहों और नागरिक प्रतिरोध आंदोलनों पर नकेल कसी है, जिसके कारण हिंसा में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से म्यांमार के उत्तर-पश्चिमी राज्यों चिन, सागाइंग और काचिन में।
  • फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR): यह सीमा के दोनों ओर 16 किलोमीटर के अन्दर रहने वाले लोगों को 14 दिनों तक बिना वीज़ा के पार जाने की अनुमति प्रदान करता है, और इसे पारंपरिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
    • हालाँकि, हाल के वर्षों में, अवैध प्रवास, मादक पदार्थों की तस्करी और उग्रवाद पर चिंताओं ने इसके जारी रहने के बारे में परिचर्चा उत्पन्न की है।

मणिपुर में नृजातीय अशांति और उसका म्यांमार से संबंध

  • मणिपुर में जारी नृजातीय हिंसा: मणिपुर में सैन्य उत्पीड़न से भाग रहे शरणार्थियों की बड़ी संख्या देखी गई है।
    • इनमें से कई शरणार्थी मणिपुर और मिजोरम की स्वदेशी जनजातियों, विशेष रूप से कुकी-जो समुदाय (म्यांमार की चिन पहाड़ियों से) के साथ नृजातीय संबंध साझा करते हैं, जिससे क्षेत्रीय नृजातीय तनाव गहराता है। 
  • उग्रवाद कारक: यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) सहित कई विद्रोही समूह ऐतिहासिक रूप से झरझरा सीमा पर कार्य करते रहे हैं, प्रायः म्यांमार को एक अभयारण्य के रूप में उपयोग करते हैं।
    •  इसके अतिरिक्त, म्यांमार के अपने विद्रोही समूह, जैसे कि चिन नेशनल आर्मी (CNA), मणिपुर में कुकी-जो गुटों के साथ संबंध साझा करते हैं, जिससे भारत के लिए जटिल सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

भारत के लिए सुरक्षा निहितार्थ

  • शरणार्थियों की बड़ी संख्या और मानवीय चिंताएँ: मिजोरम और मणिपुर जैसे राज्यों में शरणार्थियों की बड़ी संख्या देखी गई है, जिसके कारण एक संरचित शरणार्थी नीति की माँग की जा रही है।
    • भारत म्यांमार शरणार्थियों से निपटने में सतर्क रहा है, क्योंकि यह शरणार्थी सम्मेलन (1951) का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
  • सीमा पार उग्रवाद और तस्करी: यह क्षेत्र गोल्डन ट्राइंगल के नशीले पदार्थों के व्यापार, विशेष रूप से हेरोइन और मेथमफेटामाइन के लिए एक माध्यम बन गया है।
    • खुफिया रिपोर्टों ने उग्रवादी समूहों को सीमा पार आपराधिक नेटवर्क से जोड़ा है, जिसके कारण सीमा पर सख्त निगरानी की आवश्यकता है।
  • रणनीतिक और कूटनीतिक चिंताएँ: भारत ने अपनी पूर्वोत्तर सीमाओं पर स्थिरता को प्राथमिकता देते हुए एक सतर्क दृष्टिकोण बनाए रखा है, और म्यांमार में बढ़ते चीनी प्रभाव ने इसकी रणनीतिक चिंताओं को बढ़ा दिया है।
    • भारत के लिए, यह एक दोहरी चुनौती प्रस्तुत करता है – सीमा सुरक्षा सुनिश्चित करना और साथ ही इस क्षेत्र को बाहरी प्रभावों के लिए प्रजनन स्थल बनने से रोकना, जिसमें चीन भी शामिल है, जिसकी म्यांमार में बढ़ती हिस्सेदारी है।

आर्थिक और सामाजिक निहितार्थ

  • सीमा पार व्यापार एवं आजीविका को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सीमा हाटों की स्थापना और अन्य आर्थिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न हुई है। 
  • मणिपुर में मानवीय संकट के कारण मानवीय आवश्यकताओं के दस्तावेजीकरण और प्रभावित जनसंख्या को पर्याप्त राहत प्रदान करने में अंतराल उत्पन्न हो गया है।

नीतिगत विचार और आगे की राह

  • मुक्त आवागमन व्यवस्था (FMR) का पुनर्मूल्यांकन: FMR को पूरी तरह से समाप्त करने से पारंपरिक संबंध बाधित हो सकते हैं, लेकिन बायोमेट्रिक ट्रैकिंग और नियंत्रित प्रवेश बिंदुओं के साथ अधिक विनियमित ढाँचा सुरक्षा जोखिमों को कम करने में सहायता कर सकता है।
  • सीमा बाड़ लगाना और सुरक्षा अभियान: अवैध प्रवास और विद्रोही गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए भारत ने सीमा पर बाड़ लगाने के प्रयासों में तीव्रता लाई है।
    • असम राइफल्स और अर्धसैनिक बलों की तैनाती को भी मजबूत किया गया है।
  • मजबूत आतंकवाद विरोधी अभियान: म्यांमार के अधिकारियों के साथ खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त सैन्य अभियानों को बढ़ाने से सीमा पार विद्रोही गतिविधियों पर अंकुश लगाने में सहायता मिल सकती है।
  • मानवीय दुविधाएँ: भारत के सामने सुरक्षा और मानवीय जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने की चुनौती है। उदाहरण के लिए, मिजोरम सरकार ने म्यांमार के शरणार्थियों को सहायता प्रदान की है, जबकि मणिपुर ने सख्त प्रवृति अपनाई है।
    • भारत को सुरक्षा चिंताओं और मानवीय दायित्वों के बीच संतुलन बनाने के लिए एक स्पष्ट शरणार्थी नीति विकसित करनी चाहिए, विशेषकर भारतीय राज्यों के साथ ऐतिहासिक संबंध रखने वाले नृजातीय समुदायों के लिए।
  • म्यांमार के साथ कूटनीतिक जुड़ाव: भारत सुरक्षा सहयोग सुनिश्चित करने के लिए म्यांमार की सैन्य व्यवस्था और नृजातीय विद्रोही समूहों दोनों के साथ जुड़ना जारी रखता है।
    • कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना, जो भारत के पूर्वोत्तर को म्यांमार के रखाइन राज्य से जोड़ती है, भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्व बनी हुई है।

निष्कर्ष

  • म्यांमार-मणिपुर सीमा नृजातीय, सुरक्षा और भू-राजनीतिक चुनौतियों का एक जटिल जाल है। भारत की प्रतिक्रिया में सावधानीपूर्वक संतुलन बनाने की आवश्यकता है – सीमावर्ती समुदायों को अलग-थलग किए बिना सुरक्षा बढ़ाना और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखते हुए म्यांमार के साथ रणनीतिक जुड़ाव बनाए रखना।
  • उभरती स्थिति एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की माँग करती है जो इस संवेदनशील सीमा पर आगे की अस्थिरता को रोकने के लिए कूटनीति, सुरक्षा और सामाजिक-राजनीतिक सामंजस्य को जोड़ती है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता और इसके परिणामस्वरूप मणिपुर में शरणार्थियों के  आगमन को देखते हुए, तनावपूर्ण सीमाओं के मानवीय, सुरक्षा एवं सामाजिक प्रभावों को दूर करने के लिए भारत सरकार को क्या रणनीति अपनानी चाहिए?

Source: TH

 

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