इन्सोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड के मूल सिद्धांतों को मजबूत बनाना(IBC)

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • हालिया घटनाक्रम इस ओर संकेत करते हैं कि इन्सोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC) की प्रभावशीलता दबाव में है, जिसमें विलंब, न्यायिक हस्तक्षेप और मूल उद्देश्य से विचलन जैसी चिंताएँ सामने आई हैं।

भारत में इन्सोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC) के बारे में

  •  IBC को 2016 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत में इन्सोल्वेंसी समाधान प्रक्रिया को समेकित और सुव्यवस्थित करना था। 
  • इसने एक खंडित कानूनी ढांचे की जगह एकीकृत और समयबद्ध तंत्र प्रदान किया, ताकि व्यवसाय करने में आसानी और ऋणदाताओं के अधिकारों को मजबूत किया जा सके।

IBC का विकास 

  • IBC से पहले लागू तंत्र अक्सर धीमे और अप्रभावी थे, जिससे बढ़ते हुए गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) और ऋणदाताओं के विश्वास में कमी आई। इनमें शामिल हैं:
    • बीमार औद्योगिक कंपनियों अधिनियम (SICA)
    • बैंकों और वित्तीय संस्थानों से बकाया ऋणों की वसूली अधिनियम (RDDBFI)
    • प्रतिभूतिकरण और वित्तीय परिसंपत्तियों के पुनर्निर्माण तथा सुरक्षा हित अधिनियम (SARFAESI)

IBC के मूल सिद्धांत

  • समयबद्ध समाधान: IBC यह अनिवार्य करता है कि इन्सोल्वेंसी  मामलों का समाधान 180 दिनों के अन्दर  किया जाए, जो अत्यधिक मामलों में 330 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
    • यह परिसंपत्तियों के मूल्य के क्षरण को कम करता है और आर्थिक गतिविधियों को शीघ्र पुनः आरंभ करता है।
  • क्रेडिटर-इन-कंट्रोल मॉडल: IBC में ऋणदाताओं को प्रक्रिया की नियंत्रण शक्ति दी गई है, जबकि पुराने ढाँचों में यह नियंत्रण उधारकर्ताओं के पास रहता था। इससे ऋण अनुशासन और जवाबदेही में सुधार आया है।
  • परिसंपत्ति मूल्य का अधिकतमकरण: समाधान प्रक्रिया के दौरान, पुनर्गठन या परिसमापन के ज़रिए परिसंपत्तियों के मूल्य को अधिकतम करना प्राथमिकता है।
    • यह सभी हितधारकों को अधिकतम वसूली सुनिश्चित करता है।
  • हितधारकों के लिए समानता: IBC में दावा निपटान के लिए संरचित श्रेणीबद्धता है, जिससे वित्तीय और परिचालन ऋणदाताओं के लिए न्यायसंगत व्यवहार सुनिश्चित होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने एस्सार स्टील जैसे मामलों में इस संरचना को समर्थन दिया है।
  • उद्यमिता और नया आरंभ बढ़ावा: IBC नवाचार और जोखिम उठाने की भावना को बढ़ावा देता है, और विफल व्यवसायों को बिना दीर्घकालिक कलंक के साफ-सुथरे तरीके से बाहर निकलने का विकल्प देता है।
  • संस्थागत समर्थन और पारदर्शिता:इन्सोल्वेंसी और बैंकरप्सी बोर्ड (IBBI) और राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) जैसी संस्थाएँ पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रक्रिया की एकरूपता सुनिश्चित करने में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं।
    •  NCLT कंपनियों के लिए और ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) व्यक्तियों के लिए मामलों का निर्णय करता है।
क्या आप जानते हैं? 
NCLT की अवधारणा 1999 में एराडी समिति की सिफारिशों पर की गई थी और इसे 2016 में लागू किया गया। 
– हालांकि इसकी संरचना बीते आर्थिक संदर्भों पर आधारित है, जिससे यह वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने में पूरी तरह सक्षम नहीं है।

वर्तमान स्थिति 

  • ₹13.8 लाख करोड़ की डिफॉल्ट राशि से संबंधित 30,000 से अधिक मामलों का समाधान औपचारिक दाखिले से पहले ही किया गया, और ऋणदाताओं ने लगभग 32.8% दावों की वसूली की है।

IBC के सामने चुनौतियाँ

  • समाधान प्रक्रिया में देरी: IBC की समयसीमा के बावजूद, कई मामले 330 दिन से अधिक चलते हैं—कुछ मामलों को 717 दिन से ज़्यादा समय लगा। इससे परिसंपत्ति मूल्य में क्षरण होता है और निवेशकों का विश्वास कम होता है।
  • कॉर्पोरेट मामलों की घटती संख्या: IBC के अंतर्गत आरंभ किए गए मामलों की संख्या में कमी देखी गई—FY23 में 1,262 से FY25 में 723 मामले रह गए।
  • ऋणदाताओं की कम वसूली दरें: हाल के वर्षों में ऋणदाताओं ने सिर्फ 31–32% दावों की ही वसूली की है।
  • न्यायिक और विनियामक चुनौती: सर्वोच्च न्यायालय के लगातार हस्तक्षेपों से कई बार पहले से निपटे मामलों को दोबारा खोला गया है।
    • इसके अतिरिक्त, विनियामक अनिश्चितता और ट्रिब्यूनल के असंगत निर्णयों से प्रक्रिया में अनिश्चितता उत्पन्न होती है।
  • संस्थागत क्षमता की कमी: NCLT को रिक्तियों की समस्या रही है, जिससे मामले निपटाने की गति प्रभावित हुई है।
    • हालाँकि हाल में कुछ सुधार हुए हैं, पर लंबित मामलों की संख्या अभी भी चिंता का विषय है।
  • ऋणदाताओं की प्राथमिकताओं में बदलाव: वित्तीय ऋणदाता अब IBC की बजाय वैकल्पिक तरीकों जैसे संकटग्रस्त परिसंपत्तियों का प्रतिभूतिकरण जैसे विकल्प अपना रहे हैं।

आगे का राह

  • समय पर समाधान: निवेशकों का विश्वास बनाए रखने हेतु निर्धारित समयसीमा में मामलों का निपटारा आवश्यक है।
  • ऋणदाता अधिकारों की सुरक्षा: IBC की मूल संरचना जो ऋणदाताओं के दावों को प्राथमिकता देती है, उसे बनाए रखना चाहिए।
  • न्यायपालिका और कार्यपालिका का सामंजस्य: न्यायालयों और नियामकों को मिलकर कार्य करना होगा ताकि IBC की मूल भावना को बरकरार रखा जा सके।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] न्यायिक देरी और सरकारी हस्तक्षेप वित्तीय संकट को हल करने में इन्सोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC) की प्रभावशीलता को कैसे प्रभावित करते हैं, और कौन से उपाय इसकी दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित कर सकते हैं?

Source: BS

 

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