भारत की विनिर्माण महत्वाकांक्षाएं: चीन के MIC2025 से सीख

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • निर्माण क्षेत्र लंबे समय से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और तकनीकी प्रगति का आधार रहा है। 
  • इसी संदर्भ में, भारत की ‘मेक इन इंडिया’ (2014) और चीन की ‘मेड इन चाइना 2025’ (MIC2025) नीतियाँ वैश्विक विनिर्माण मूल्य श्रृंखला में अपने-अपने देशों की स्थिति को पुनः परिभाषित करने के लिए महत्वाकांक्षी नीति ढांचे के रूप में सामने आई हैं। 
  • इन पहलों का तुलनात्मक मूल्यांकन भारत के लिए अपनी औद्योगिक क्रांति को गति देने हेतु महत्वपूर्ण सीख प्रदान करता है।

उद्देश्य और रणनीतिक दृष्टिकोण

  • मेड इन चाइना 2025 (MIC2025):
    • उद्देश्य: चीन की विनिर्माण क्षमताओं को उन्नत करना, विदेशी निर्भरता को कम करना और वैश्विक मूल्य श्रृंखला में ऊपर चढ़ना।
    • केन्द्रित क्षेत्र: उन्नत आईटी, रोबोटिक्स, एयरोस्पेस, हरित ऊर्जा, और उच्च तकनीक परिवहन सहित 10 रणनीतिक क्षेत्र।
    • दृष्टिकोण: राज्य-प्रेरित, लक्ष्य-आधारित और भारी वित्त पोषित, जिसमें स्पष्ट समयसीमा और मापनीय लक्ष्य निर्धारित हैं।
  • मेक इन इंडिया:
    • उद्देश्य: जीडीपी में विनिर्माण का हिस्सा बढ़ाना, रोजगार सृजन करना और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करना।
    • केन्द्रित क्षेत्र: इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा, ऑटोमोबाइल, वस्त्र, जैव प्रौद्योगिकी सहित 25 क्षेत्र।
    • दृष्टिकोण: सहायक, व्यापार वातावरण को बेहतर बनाने, निवेश को प्रोत्साहित करने और व्यापार करने में आसानी बढ़ाने पर केंद्रित।

उपलब्धियाँ

  • चीन (MIC2025):
    • हरित प्रौद्योगिकी: लिथियम-आयन बैटरी और सौर मॉड्यूल उत्पादन में वैश्विक नेतृत्व (>75% हिस्सा), इलेक्ट्रिक वाहनों में अग्रणी।
    • हाई-स्पीड रेल: विश्व का सबसे बड़ा नेटवर्क (~40,000 किमी)।
    • रोबोटिक्स और एआई: वैश्विक अग्रणी कंपनियों जैसे DJI और Huawei के साथ प्रतिस्पर्धा में।
    • एकीकृत आपूर्ति श्रृंखलाएँ: इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और गतिशीलता क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता।
    • घरेलू मूल्य संवर्धन: उच्च तकनीक विनिर्माण में स्थानीय सामग्री का उपयोग बढ़ा।
  • भारत (मेक इन इंडिया):
    • मोबाइल विनिर्माण: अब विश्व में दूसरा सबसे बड़ा; एप्पल भारत में 15% iPhones का उत्पादन करता है।
    • FDI वृद्धि: निवेश प्रवाह ₹45.14 अरब (2014-15) से बढ़कर ₹84.83 अरब (2021-22) हुआ।
    • PLI योजनाएँ: ₹1.97 लाख करोड़ की प्रतिबद्धता, 14 क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन।
    • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस: विश्व बैंक रैंकिंग में सुधार – 142 (2014) से 63 (2019)।
    • बुनियादी ढांचा: औद्योगिक कॉरिडोर और लॉजिस्टिक्स पार्कों का विकास।

चुनौतियाँ और कमियाँ

  • चीन:
    • वैश्विक आलोचना: अनुचित सब्सिडी, गैर-शुल्क बाधाएँ, बलपूर्वक तकनीकी हस्तांतरण और एकाधिकारवादी दृष्टिकोण के आरोप।
    • व्यापार तनाव: MIC2025 अमेरिका-चीन व्यापार विवादों का केंद्र बना।
  • भारत:
    • स्थिर विनिर्माण हिस्सा: 2023 में विनिर्माण का जीडीपी में हिस्सा लगभग 17.7% पर बना रहा, जो 25% लक्ष्य से दूर है।
    • रोजगार में गिरावट: विनिर्माण में रोजगार का हिस्सा 11.6% (2013-14) से घटकर 10.6% (2022-23) हो गया।
    • निर्यात में कमजोरी: जीडीपी में निर्यात का हिस्सा 25.2% (2013-14) से घटकर 22.7% (2023-24) हो गया; निर्यात मुख्यतः गैर-श्रम-प्रधान वस्तुओं तक सीमित।
    • R&D में कमी: अनुसंधान एवं विकास पर खर्च जीडीपी का 0.7% से भी कम, चीन से काफी पीछे।
    • कौशल अंतर: केवल 4.7% कार्यबल औपचारिक रूप से प्रशिक्षित (चीन में 24%)।

भारत के लिए प्रमुख सबक

  • रणनीतिक, दीर्घकालिक दृष्टिकोण: चीन की MIC2025 नीति स्पष्ट, वित्त पोषित और समयबद्ध रणनीति पर आधारित थी।
    • भारत को भी एक राष्ट्रीय औद्योगिक रणनीति तैयार करनी चाहिए, जिसमें क्षेत्र-विशिष्ट रोडमैप, मापनीय लक्ष्य और केंद्र-राज्य समन्वय हो।
  • मजबूत R&D और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: चीन की प्रगति भारी R&D निवेश और सार्वजनिक-निजी अनुसंधान साझेदारियों से हुई।
    • भारत को निजी क्षेत्र के R&D को प्रोत्साहित करना चाहिए, अनुसंधान पार्क स्थापित करने चाहिए और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर और आपूर्ति श्रृंखलाएँ: चीन की एकीकृत आपूर्ति श्रृंखलाओं ने आयात पर निर्भरता घटाई।
    • भारत को प्लग-एंड-प्ले औद्योगिक पार्क, MSME लिंक और बैकवर्ड इंटीग्रेशन को तेज़ी से विकसित करना चाहिए।
  • कौशल विकास और कार्यबल तत्परता: चीन के कौशल कार्यक्रमों ने भविष्य-तैयार कार्यबल तैयार किया।
    • भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत विनिर्माण में उद्योग-सम्बद्ध व्यावसायिक प्रशिक्षण को बड़े पैमाने पर लागू करना चाहिए।
  • नीति स्थिरता और राज्य समर्थन: चीन की सफलता में दीर्घकालिक नीति समर्थन और प्रोत्साहन निर्णायक रहे।
    • भारत को नीति स्थिरता, अनुपालन बोझ में कमी, और व्यवसाय की लागत प्रभावशीलता सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • MSME और स्टार्टअप्स का समर्थन: MSME भारत के औद्योगिक उत्पादन और निर्यात का आधार हैं।
    • क्रेडिट पहुंच, MSME वर्गीकरण का विस्तार, और स्टार्टअप्स के लिए लक्षित समर्थन नवाचार और रोजगार सृजन को बढ़ा सकते हैं।
  • गुणवत्ता, प्रौद्योगिकी और स्वच्छ विनिर्माण: चीन ने गुणवत्ता और तकनीक पर ध्यान केंद्रित कर वैश्विक प्रतिस्पर्धा हासिल की।
    • भारत को सौर पीवी, ईवी बैटरियों, पवन टर्बाइनों जैसे क्षेत्रों में स्वच्छ तकनीक विनिर्माण, गुणवत्ता मानकों, और डिजिटल निर्यात प्लेटफॉर्म को प्राथमिकता देनी चाहिए।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] ‘मेक इन इंडिया’ पहल की तुलना चीन की ‘मेड इन चाइना 2025’ रणनीति से करें। भारत अपने विनिर्माण परिवर्तन में तीव्रता लाने के लिए चीन के अनुभव से क्या सीख ले सकता है?

Source: TH

 

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