पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन
संदर्भ
- केंद्र सरकार ने राज्य पुलिस प्रमुख/पुलिस बल के प्रमुख की नियुक्ति के लिए एकल विंडो प्रणाली अधिसूचित की है।
परिचय
- यह नई नीति 22 अप्रैल 2025 से प्रभावी होगी। इसका उद्देश्य उन राज्यों की जवाबदेही तय करना है जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रकाश सिंह मामले (2006) में दिए गए आदेशों और गृह मंत्रालय की डीजीपी/पुलिस बल प्रमुख नियुक्ति संबंधी दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं।
- उद्देश्य
- राज्यों द्वारा डीजीपी की पैनलिंग प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और मानकीकृत बनाना।
- मुख्य विशेषताएँ
- राज्य प्रस्तावों के लिए विस्तृत चेकलिस्ट और मानकीकृत प्रारूप।
- यूपीएससी द्वारा त्वरित एवं सुगम पैनलिंग सुनिश्चित करना।
- एक सचिव स्तर का अधिकारी प्रस्तावित DGP अधिकारियों की पात्रता और न्यूनतम कार्यकाल का प्रमाणन करेगा।
- यूपीएससी पैनलिंग समिति की अध्यक्षता अध्यक्ष द्वारा की जाएगी, जिसमें केंद्रीय गृह सचिव, राज्य का मुख्य सचिव, संबंधित राज्य के डीजीपी और केंद्रीय पुलिस संगठनों/अर्धसैनिक बलों के प्रमुखों में से एक अधिकारी शामिल होगा।
- पात्रता शर्तें (सर्वोच्च न्यायालय और गृह मंत्रालय के अनुसार)
- अधिकारी के पास रिक्ति की तिथि से कम-से-कम छह माह की सेवा शेष होनी चाहिए।
- प्रस्ताव कम-से-कम तीन महीने पहले यूपीएससी को भेजे जाने चाहिए।
राज्य पुलिस पर नियंत्रण
- पुलिस संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य विषय है, अतः राज्य सरकारों को ही अपने पुलिस बलों पर नियंत्रण और पर्यवेक्षण का अधिकार प्राप्त है।
- जिलों में जिला मजिस्ट्रेट (DM) एसपी को निर्देश दे सकते हैं और पुलिस प्रशासन की निगरानी कर सकते हैं।
- इसे ‘द्वैध नियंत्रण प्रणाली’ कहते हैं क्योंकि DM और SP दोनों में अधिकार विभाजित होते हैं।
- शहरी क्षेत्रों में यह प्रणाली ‘कमिश्नरेट प्रणाली’ से प्रतिस्थापित कर दी गई है ताकि कानून-व्यवस्था की जटिल स्थितियों में त्वरित निर्णय लिया जा सके।
राज्य पुलिस की पदानुक्रम![]() |
भर्ती प्रक्रिया
- कांस्टेबल, सब-इंस्पेक्टर और डिप्टी एसपी की सीधी भर्ती राज्य सरकारों द्वारा की जाती है।
- IPS अधिकारियों की भर्ती केंद्र सरकार द्वारा की जाती है और वे सहायक एसपी के रूप में सेवा आरंभ करते हैं।
- अन्य पदों पर रिक्तियाँ पदोन्नति द्वारा भरी जाती हैं।
पुलिस सुधारों की जांच करने वाले विशेषज्ञ निकाय

प्रकाश सिंह निर्णय – 2006
- सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पुलिस सुधार लागू करने का निर्देश दिया।
- इस आदेश में सरकारों को कई उपाय करने के निर्देश दिए गए थे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुलिस किसी राजनीतिक हस्तक्षेप की चिंता किए बिना अपना कार्य कर सके।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार केंद्र और राज्यों को निर्देश:
- प्रत्येक राज्य में ‘राज्य सुरक्षा आयोग’ का गठन किया जाए जो पुलिस कार्य के लिए नीति तय करे और प्रदर्शन मूल्यांकन करे।
- ‘पुलिस स्थापना बोर्ड’ का गठन हो, जो DSP से नीचे के अधिकारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति पर निर्णय ले तथा वरिष्ठ अधिकारियों के मामले में सिफारिश करे।
- राज्य और जिला स्तर पर ‘पुलिस शिकायत प्राधिकरण’ की स्थापना हो जो पुलिसकर्मियों की गंभीर दुर्व्यवहार एवं शक्ति के दुरुपयोग की जांच करे।
- डीजीपी और अन्य महत्वपूर्ण पुलिस अधिकारियों को कम-से-कम दो साल का कार्यकाल सुनिश्चित किया जाए ताकि मनमाने स्थानांतरण एवं नियुक्तियों से बचा जा सके।
- राज्य का डीजीपी तीन वरिष्ठतम अधिकारी जिनकी UPSC द्वारा सेवा अवधि, रिकॉर्ड और अनुभव के आधार पर पैनलिंग की गई है—उनमें से चुना जाए।
- ‘जांच पुलिस’ को ‘कानून और व्यवस्था पुलिस’ से अलग किया जाए ताकि विशेषज्ञता एवं जनता से संवाद बेहतर हो सके।
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के प्रमुखों की नियुक्ति के लिए ‘राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग’ का गठन हो।
सुधारों की आवश्यकता
- औपनिवेशिक ढांचा: आज भी पुलिस अधिनियम 1861 लागू है, जो अंग्रेजों के शासन हेतु बनाया गया था, लोकतांत्रिक शासन हेतु नहीं।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: राजनीतिक दबाव के कारण निष्पक्ष कानून व्यवस्था बाधित होती है।
- हिरासत में मृत्यु: पुलिस या न्यायिक हिरासत में यातना के कारण मृत्यु के अनेक मामले सामने आते हैं।
- D.K. बसु निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने दिशा-निर्देश जारी किए।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: प्रशिक्षण में नैतिकता, संवाद और सॉफ्ट स्किल पर बल नहीं दिया जाता।
- प्रतिक्रियाओं में देरी: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों और विशेषज्ञ अनुशंसाओं को लागू करने में अभी भी काफी देरी है।
निष्कर्ष
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC) ने पुलिस सुधार को अच्छे शासन और कानून के राज की बुनियाद बताया था।
- हालांकि कुछ राज्यों ने सुधारात्मक उपाय अपनाए हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन असमान और अधूरा है।
- सर्वोच्च न्यायालय की 2006 की प्रकाश सिंह निर्देशों का पूर्ण अनुपालन अभी तक नहीं हुआ है।
Source: TH
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