क्लाउड सीडिंग

पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण

संदर्भ

  • दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा है कि क्लाउड सीडिंग राष्ट्रीय राजधानी के लिए आवश्यक है क्योंकि यह सर्दियों के मौसम में बढ़ते प्रदूषण स्तर को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

सर्दियों में दिल्ली की वायु गुणवत्ता गंभीर क्यों होती है?

  • तापमान उलटाव (Temperature Inversion): सर्दियों में भूमि के पास की वायु ऊपर की वायु की तुलना में ठंडी हो जाती है।
    • यह उलटाव परत प्रदूषकों (जैसे कि कणीय पदार्थ और गैसें) को सतह के पास फंसा देती है, जिससे वे ऊपरी वायुमंडल में फैल नहीं पाते।
  • कम हवा की गति: सर्दियों में वायु सामान्यतः धीमी होती हैं, जिससे प्रदूषकों का क्षैतिज फैलाव कम हो जाता है और वे निचले वायुमंडल में जमा हो जाते हैं।
  • फसल अवशेष जलाना: प्रत्येक वर्ष कटाई के बाद पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से भारी मात्रा में धुआं एवं कणीय पदार्थ निकलते हैं।
    • प्रचलित वायु के पैटर्न इस प्रदूषण को दिल्ली की ओर ले जाते हैं, जिससे वायु गुणवत्ता और खराब हो जाती है।
  • धूल और शहरी प्रदूषण का अवरोधित होना: शहरी धूल और वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण सर्दियों में वायुमंडल में अधिक समय तक बना रहता है क्योंकि उस समय वायुमंडलीय सीमा परत की ऊंचाई कम होती है, जिससे प्रदूषण की समस्या में वृद्धि हो जाती है।

क्लाउड सीडिंग क्या है? 

  • क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन विधि है जिससे बादलों की वर्षा या हिमपात उत्पन्न करने की क्षमता को बढ़ाया जाता है।
  • इतिहास: इसे प्रथम बार 1946 में अमेरिकी रसायनज्ञ और मौसम वैज्ञानिक विंसेंट जे. शेफ़र द्वारा प्रदर्शित किया गया था।
  • सीडिंग एजेंट्स: बादलों में सामान्यतः सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड या सोडियम क्लोराइड जैसे नमक डाले जाते हैं ताकि संघनन शुरू हो सके।
    • सिल्वर आयोडाइड और ड्राई आइस (ठोस CO₂) — सुपरकूल्ड बादलों (शून्य से नीचे तापमान) में प्रभावी।
    • कैल्शियम क्लोराइड — गर्म बादलों (शून्य से ऊपर तापमान) के लिए उपयोग किया जाता है।
  • कार्य सिद्धांत: ये नमक या सीडिंग एजेंट्स ऐसे नाभिक के रूप में कार्य करते हैं जिनके चारों ओर जल बूंदें बन सकती हैं या बर्फ के क्रिस्टल बन सकते हैं।
    • जैसे-जैसे जल बूंदें बढ़ती हैं, वे बादल में अन्य बूंदों से टकराती हैं। जब वे भारी हो जाती हैं, तो बादल संतृप्त हो जाता है और वर्षा होती है।
    • मौसम वैज्ञानिक ऐसे बादलों की पहचान करते हैं जिनमें पर्याप्त आर्द्रता होती है लेकिन वे स्वयं पर्याप्त वर्षा नहीं कर पाते।
  • वितरण विधियाँ: इन कणों को विशेष विमानों, रॉकेट्स या भूमि पर रखे उपकरणों की सहायता से बादलों में फैलाया जाता है।
cloud seeding applications

क्या क्लाउड सीडिंग वायु प्रदूषण का सामना करने में सहायता कर सकती है?

  • प्राकृतिक बादलों पर निर्भरता: क्लाउड सीडिंग प्राकृतिक बादलों पर निर्भर करती है; यह उन्हें बना नहीं सकती।
    •  और जब बादल होते भी हैं, तब भी यह प्रमाणित नहीं हुआ है कि सीडिंग से वर्षा निश्चित रूप से बढ़ती है — यह विषय विवादास्पद है।
  • प्रदूषण पर प्रभाव: जब वर्षा होती है और प्रदूषण कम होता है, तो यह राहत अस्थायी होती है — एक या दो दिन में प्रदूषण स्तर फिर से बढ़ जाता है।
  • प्रभावशीलता: लंबे समय तक वर्षा से सूक्ष्म कणीय पदार्थ (PM 2.5) और PM10 धुल जाते हैं। हालांकि, ओज़ोन और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे अन्य प्रदूषकों पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता।
cloud seeding challenges

अन्य उपाय 

  • विज्ञान द्वारा पहचाने गए मूल कारण: लंबे समय से वैज्ञानिक सहमति है कि खतरनाक वायु गुणवत्ता का कारण वाहनों, उद्योगों, बिजली संयंत्रों, निर्माण कार्य, कचरा जलाने और कृषि पराली जलाने से होने वाला उत्सर्जन है।
  • ज्ञात दीर्घकालिक समाधान:
    • स्वच्छ परिवहन प्रणाली (इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, सार्वजनिक परिवहन, उत्सर्जन मानक)।
    • सतत ऊर्जा संक्रमण (कोयले का चरणबद्ध निष्कासन, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा)।
    • प्रभावी कचरा प्रबंधन और निर्माण में धूल नियंत्रण।
    • ऐसा शहरी नियोजन जो भीड़भाड़ को कम करे और प्रदूषण स्रोतों को घटाए।
  • त्वरित उपायों पर ध्यान: स्मॉग टावर, कृत्रिम वर्षा या अल्पकालिक प्रतिबंध जैसे अस्थायी उपायों पर बढ़ती निर्भरता देखी जा रही है — हालांकि ये अल्पकालिक रूप से प्रभावी होते हैं।
  • प्रमाण-आधारित, नैतिक कार्रवाई की आवश्यकता: वास्तविक परिवर्तन के लिए प्रणालीगत सुधार और उत्सर्जन नियंत्रणों के दीर्घकालिक प्रवर्तन की आवश्यकता है।

Source: TH

 

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