वैश्विक ऋण संकट से निपटने के लिए सेविला फोरम का शुभारंभ

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • जिनेवा में आयोजित 16वें संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD16) में एक नई वैश्विक पहल, सेविला फोरम ऑन डेट (Sevilla Forum on Debt) की शुरुआत की गई।

सेविला फोरम के बारे में 

  • यह फोरम, स्पेन के नेतृत्व में और UNCTAD तथा संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (UN DESA) के सहयोग से, संप्रभु ऋण की चुनौतियों पर संवाद तथा समन्वित कार्रवाई के लिए एक स्थायी, समावेशी मंच बनाने का लक्ष्य रखता है। 
  • यह चौथे अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त सम्मेलन (FfD4) के पहले ठोस परिणामों में से एक है और व्यापक सेविला प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन का हिस्सा है, जो सेविला कमिटमेंट को क्रियान्वित करता है।
    • सेविला कमिटमेंट विकास वित्त को सुदृढ़ करने और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में ऋण स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करता है।

वैश्विक ऋण स्तर में वृद्धि 

  • UNCTAD के अनुसार, वैश्विक सार्वजनिक ऋण 2024 में रिकॉर्ड $102 ट्रिलियन तक पहुंच गया।
    • इसमें से $31 ट्रिलियन ऋण विकासशील देशों का था। 
    • इन देशों ने सामूहिक रूप से $921 बिलियन ब्याज भुगतान किया, जो कई मामलों में स्वास्थ्य और शिक्षा पर व्यय से अधिक था। 
  • विश्व बैंक की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों ने 2023 में अपने विदेशी ऋण की सेवा के लिए रिकॉर्ड $1.4 ट्रिलियन व्यय किया, क्योंकि ब्याज दरें 20 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं।
    • वर्तमान में, आधे से अधिक विकासशील देश अपनी सरकारी राजस्व का कम से कम 8% ब्याज भुगतान में व्यय करते हैं, जो विगत दशक में दोगुना हो गया है। 
  • यह अस्थिर ऋण प्रवृत्ति सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की दिशा में प्रगति को खतरे में डालती है और व्यापक संप्रभु ऋण सुधार की मांग को तीव्र करती है।
वैश्विक ऋण स्तर में वृद्धि 

भारत का सार्वजनिक ऋण

  • भारत का सार्वजनिक ऋण-से-GDP अनुपात 2005-06 में 81% से 2021-22 में 84% तक थोड़ा ही बढ़ा है, और 2022-23 में फिर से 81% पर आ गया है। 
  • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम 2003 के अनुसार, सामान्य सरकारी ऋण को 2024-25 तक GDP के 60% तक लाया जाना था। 
  • IMF का कहना है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भारत का सामान्य सरकारी ऋण (केंद्र और राज्य सहित) 2028 तक GDP का 100% हो सकता है। 
  • IMF ने 2024-25 के लिए यह अनुपात 82.4% अनुमानित किया है।

ऋण भार में योगदान देने वाले कारक

  • तेल मूल्य आघात(1970 का दशक): 1970 के दशक में भू-राजनीतिक तनावों, विशेष रूप से 1973 के अरब तेल प्रतिबंध के कारण तेल की कीमतों में तीव्र वृद्धि हुई।
    •  तेल आयात करने वाले विकासशील देशों को बढ़ते आयात बिलों के कारण वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा।
  • पेट्रोडॉलर पुनर्चक्रण: तेल निर्यातक अरब देशों ने अपने अधिशेष “पेट्रोडॉलर” पश्चिमी बैंकों में जमा किए।
    •  ये धन विकासशील देशों को ऋण के रूप में दिए गए, जिससे वे उच्च तेल कीमतें वहन कर सके और पश्चिमी निर्यात खरीदना जारी रख सके। 
    • इस प्रणाली ने पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन दिया, जिससे फैक्ट्रियाँ चालू रहीं और मंदी से बचा जा सका।
  • निजी ऋण का उदय: निजी पश्चिमी बैंकों ने आधिकारिक स्रोतों (जैसे सरकारें या IMF) को पीछे छोड़ते हुए ऋण देना शुरू किया।
    • 1982 तक, बैंक वार्षिक $63 बिलियन ऋण दे रहे थे—जो आधिकारिक ऋण का लगभग दोगुना था। 
    • इसके परिणामस्वरूप कई विकासशील देशों ने 1970 के दशक में तीव्र आर्थिक वृद्धि देखी।
  • ऋण संकट (1980 का दशक): 1980 के दशक में वैश्विक मंदी और उच्च ब्याज दरों ने विकासशील देशों को ऋण चुकाने में कठिनाई में डाल दिया।
    • उन्होंने केवल ब्याज चुकाने के लिए और अधिक ऋण लेना शुरू कर दिया—एक क्लासिक ऋण जाल।
  • उच्च ब्याज दरें: UNCTAD रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील क्षेत्र अमेरिका की तुलना में 2-4 गुना और जर्मनी की तुलना में 6-12 गुना अधिक ब्याज दरों पर ऋण लेते हैं।
    • इसका मुख्य कारण यह है कि विकासशील देशों को “उच्च जोखिम वाले वातावरण” के रूप में देखा जाता है, जिससे उन्हें ऋण प्राप्त करने की लागत अधिक होती है।

बढ़ते ऋण की चिंताएँ

  • जलवायु कार्रवाई पर प्रभाव: विकासशील देशों को पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2030 तक जलवायु निवेश को वर्तमान 2.1% से बढ़ाकर 6.9% GDP करना होगा।
    • लेकिन वे वर्तमान में जलवायु निवेश से अधिक ब्याज भुगतान पर व्यय कर रहे हैं।
  • ऋण संकटों के समाधान की लागत में वृद्धि: ऋणदाताओं के आधार की बढ़ती जटिलता ऋण पुनर्गठन को कठिन बना देती है, क्योंकि इसमें विभिन्न हितों और कानूनी ढाँचों वाले अधिक ऋणदाताओं से वार्ता करनी पड़ती है।
  • अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संरचना में असमानताएँ: निजी स्रोतों से वाणिज्यिक शर्तों पर ऋण लेना बहुपक्षीय और द्विपक्षीय स्रोतों से रियायती वित्तपोषण की तुलना में अधिक महंगा होता है।
    • उच्च ऋण वाले देश स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सामाजिक कल्याण जैसी सार्वजनिक सेवाओं पर व्यय कम कर देते हैं, जिससे गरीबी एवं असमानता बढ़ सकती है।

आगे की राह

  • उत्तरदायी ऋण लेना और देना बढ़ावा दें: देशों को वित्तीय विवेक अपनाने और उच्च लागत वाले वाणिज्यिक ऋणों पर अत्यधिक निर्भरता से बचने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • हितधारकों के बीच समन्वय बढ़ाएँ: बहुपक्षीय संस्थानों, द्विपक्षीय ऋणदाताओं, निजी बैंकों और ऋण लेने वाले देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा दें।
  • विकास लक्ष्यों से ऋण राहत को जोड़ें: ऋण अदला-बदली और राहत उपायों को स्वास्थ्य, शिक्षा, जलवायु कार्रवाई और सतत बुनियादी ढाँचे में निवेश से जोड़ें।

Source: DTE

 

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