पाठ्यक्रम: GS2/ शासन, GS3/ पर्यावरण
संदर्भ
- केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act – FRA), 2006 का समर्थन करते हुए कहा है कि यह कानून भारत की वन-निर्भर समुदायों की गरिमा, आजीविका और सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित कर रहा है।
पृष्ठभूमि
- FRA को 2008 में सर्वोच्च न्यायालय में वाइल्डलाइफ फर्स्ट नामक एक NGO द्वारा चुनौती दी गई थी, जिसने उन लोगों की बेदखली की मांग की थी जिनके FRA दावे खारिज कर दिए गए थे।
- फरवरी 2019 में, न्यायालय ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे उन सभी दावेदारों को बेदखल करें जिनके FRA दावे खारिज किए गए थे।
- इस आदेश के बाद पूरे भारत में आदिवासी संगठनों और नागरिक समाज समूहों द्वारा व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए।
- इसके बाद जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) ने हस्तक्षेप किया और दावों की जांच एवं स्वीकृति में गंभीर प्रक्रियात्मक खामियों को उजागर किया।
- न्यायालय ने बेदखली आदेश पर रोक लगाई और दावों की अस्वीकृति पर विस्तृत डेटा मांगा।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 के बारे में
- अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, जिसे सामान्यतः वन अधिकार अधिनियम (FRA) कहा जाता है, को वन-निवासी समुदायों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने के लिए लागू किया गया था।
- यह अधिनियम अनुसूचित जनजातियों (STs) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (OTFDs) को व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार (CFRs) प्रदान करता है, जिन्होंने पीढ़ियों से जंगलों में जीवन बिताया है लेकिन जिनके अधिकारों को औपचारिक रूप से कभी दर्ज नहीं किया गया।
- यह अधिनियम ग्राम सभाओं को निम्नलिखित अधिकार देता है:
- वन भूमि और संसाधनों पर दावों की पहचान और सत्यापन करना।
- वन संसाधनों का सतत प्रबंधन और संरक्षण करना।
- बांस, तेंदू पत्ता, लाख, शहद और मोम जैसे लघु वन उपज (MFP) तक पहुंच को नियंत्रित करना।
FRA का महत्व
- पारंपरिक स्वामित्व और पहुंच अधिकारों को मान्यता देकर वन समुदायों को सशक्त बनाता है।
- सहभागी वन प्रबंधन को बढ़ावा देता है, जिससे स्थानीय लोगों की उपेक्षा कम होती है।
- वन संसाधनों के सतत उपयोग के माध्यम से गरीबी उन्मूलन में सहायक होता है।
- ग्राम सभाओं के माध्यम से विकेंद्रीकृत वन शासन को सुदृढ़ करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 46 (अनुसूचित जनजातियों की शैक्षिक और आर्थिक उन्नति का संवर्धन) जैसे मूल्यों के अनुरूप है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 से जुड़ी प्रमुख समस्याएं
- क्रियान्वयन में देरी: नौकरशाही की अक्षमता के कारण कई दावे वर्षों से लंबित हैं।
- प्रशिक्षित कर्मियों की कमी: ग्राम सभा, उप-मंडल और जिला स्तर पर प्रशिक्षित कर्मियों की कमी से सत्यापन धीमा होता है।
- वन और वन्यजीव कानूनों से टकराव: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के साथ ओवरलैप से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
- शोषण का खतरा: यदि निगरानी कमजोर हो तो लघु वन उपज (MFP) का व्यावसायीकरण हो सकता है।
- संरक्षण लक्ष्यों के साथ सीमित एकीकरण: FRA का क्रियान्वयन कभी-कभी सख्त संरक्षण नीतियों से टकराता है, जिससे आजीविका और पारिस्थितिकी के उद्देश्यों में तनाव उत्पन्न होता है।
- डेटा और निगरानी की समस्याएं: डिजिटाइज्ड और सुलभ रिकॉर्ड की कमी से विवाद एवं गलत अस्वीकृति होती है।
- दावों को ट्रैक करना और पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करना कठिन होता है।
आगे की राह
- MoTA और MoEFCC के बीच बेहतर समन्वय के माध्यम से क्रियान्वयन को सुदृढ़ करें।
- ग्राम सभाओं और वन अधिकार समितियों की क्षमता निर्माण करें ताकि वे दावों की जांच एवं सतत प्रबंधन कर सकें।
- रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करें ताकि देरी रोकी जा सके और दावों के निपटारे में पारदर्शिता सुनिश्चित हो।
- FRA को राष्ट्रीय संरक्षण रणनीतियों के साथ एकीकृत करने को प्रोत्साहित करें ताकि “सह-अस्तित्व के माध्यम से संरक्षण” मॉडल को सुदृढ़ता मिले।
Source: IE
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संक्षिप्त समाचार 23-10-2025