पाठ्यक्रम: GS2/शासन; सरकारी नीति और हस्तक्षेप; GS 3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- हाल ही में संसद की चयन समिति (31-सदस्यीय) ने लोकसभा में नए आयकर विधेयक, 2025 पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- आयकर विधेयक, 2025, आयकर अधिनियम 1961 की जगह लेने का प्रस्ताव करता है और इसका उद्देश्य कर कानूनों को सरल बनाना, मुकदमेबाजी को कम करना और करदाताओं के लिए स्पष्टता बढ़ाना है।
संसदीय पैनल की प्रमुख सिफारिशें
- टीडीएस रिफंड: जब करदाता अन्य मामलों में अनुपालक हो, तो विलंबित रिफंड के दावे पर सख्त दंड प्रावधानों को हटाने का प्रस्ताव
- ट्रस्ट पर कराधान: धार्मिक-सह-धार्मिक ट्रस्टों को गुमनाम दान पर फ्लैट 30% कर से राहत।
- GAAR सुरक्षा: गैर-निवासियों के लिए शून्य कर अवरोधन प्रमाणपत्र की पुनर्स्थापना का समर्थन, जिससे सीमा-पार अनुपालन सरल हो सके।
- लाभकारी स्वामित्व: कॉर्पोरेट कराधान में अस्पष्टता से बचने के लिए स्पष्ट परिभाषाएं।
- दंड पर विवेकाधिकार: खाता पुस्तकों को बनाए रखने में विफलता के लिए दंड को स्वतः न लगाकर विवेकाधीन करने की सिफारिश, जिससे वास्तविक करदाताओं की ईमानदार गलतियों पर सजा से बचा जा सके।
आयकर विधेयक, 2025 की प्रमुख विशेषताएँ
- कर वर्ष की अवधारणा: ‘मूल्यांकन वर्ष’ की जगह एक समान ‘कर वर्ष’ का प्रावधान, जो वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल–31 मार्च) के साथ संरेखित होगा।
- डिजिटल संपत्तियों पर कराधान: क्रिप्टो और एनएफटी जैसी आभासी डिजिटल संपत्तियों को पूंजीगत संपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिस पर पूंजीगत लाभ कर लागू होगा।
- सरल ड्राफ्टिंग: जटिल कानूनी भाषा की जगह संक्षिप्त धाराएं, तालिकाएं और अनुसूचियां दी गई हैं, जिससे पठनीयता बढ़े।
- अनुमानित कराधान सीमा: छोटे व्यवसायों के लिए सीमा ₹2 करोड़ से ₹3 करोड़ और पेशेवरों के लिए ₹50 लाख से ₹75 लाख तक बढ़ाई गई।
- फेसलेस अपीलें: प्राकृतिक न्याय को मजबूत करने हेतु अनिवार्य वीडियो सुनवाई और द्वितीय स्तर की समीक्षा समितियों का प्रावधान।
- तलाशी एवं जब्ती की शक्तियाँ: कर अधिकारी पासवर्ड को ओवरराइड कर ईमेल व सोशल मीडिया जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म तक पहुंच प्राप्त कर सकते हैं।
करदाताओं पर प्रभाव
- वेतनभोगी व्यक्ति: न्यूनतम परिवर्तन; फाइलिंग इंटरफेस बेहतर हुआ।
- छोटे व्यवसाय: अनुमानित सीमा बढ़ने से अनुपालन आसान।
- क्रिप्टो व्यापारी: डिजिटल संपत्तियों के कर प्रबंधन में स्पष्टता।
- स्टार्टअप और फ्रीलांसर: सरल अनुमानित कराधान के लिए पात्र।
- कर विशेषज्ञ: नई परिभाषाओं पर SOP अपडेट करना और पुनः प्रशिक्षण लेना आवश्यक।
विधेयक की प्रमुख समस्याएँ
- गोपनीयता की चिंताएं: विधेयक में व्यक्तिगत डिजिटल डेटा तक पहुंच के लिए न्यायिक पर्यवेक्षण या वारंट की आवश्यकता नहीं है।
- यह भारत संघ बनाम जस्टिस के.एस. पुट्टास्वामी मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संरक्षित निजता के अधिकार का उल्लंघन कर सकता है।
- डिजिटल स्पेस की खुली परिभाषा अत्यधिक विस्तार का कारण बन सकती है, जिससे असंबंधित व्यक्तिगत जानकारी उजागर हो सकती है।
- अधिकारों का अतिक्रमण: विधेयक की धारा 247 के अंतर्गत कर प्राधिकारी ईमेल, सोशल मीडिया, क्लाउड सर्वर और ऑनलाइन ट्रेडिंग अकाउंट्स तक पहुंच प्राप्त कर सकते हैं; पासवर्ड एवं एन्क्रिप्शन को ओवरराइड कर सकते हैं यदि एक्सेस क्रेडेंशियल्स उपलब्ध नहीं कराए गए हों।
- ‘आभासी डिजिटल स्पेस’ की विस्तृत परिभाषा लगभग सभी ऑनलाइन वातावरणों को शामिल करती है जहाँ वित्तीय या व्यक्तिगत डेटा उपस्थित हो सकता है।
- कानूनी अस्पष्टताएँ: संरचनात्मक सरलीकरण के बावजूद कई अपरिभाषित शब्द (जैसे ‘जोखिम प्रबंधन रणनीति’) बने हुए हैं, जिससे मुकदमेबाजी बढ़ सकती है।
- कुछ परिभाषाएँ अभी भी 1961 अधिनियम का संदर्भ देती हैं, जिससे आत्मनिर्भर विधेयक के लक्ष्य को क्षति होती है।
- अनुपालन भार: यद्यपि विधेयक शब्द संख्या में छोटा है, परंतु मूल कर संरचना अपरिवर्तित है, जिससे छोटे करदाताओं को बहुत राहत नहीं मिलती।
- अतिरिक्त टीडीएस के रिफंड अभी भी मैनुअल अनुवर्ती की आवश्यकता रखते हैं; स्वचालित प्रणाली-आधारित रिफंड का कोई प्रावधान नहीं है।
- न्यायिक विलंब: अपील की समय-सीमा विवेकाधीन बनी रहती है (“एक वर्ष में निपटाने हो सकते हैं”), जिससे 4–5 वर्षों की देरी बनी रहती है।
आगे की राह
- संसद में समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत होने के पश्चात्, लोकसभा समिति की सिफारिशों पर विचार करेगी और विधेयक को अंतिम रूप देने तथा लागू करने की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
- यदि अनुमोदित हो गया, तो नया कानून 1 अप्रैल, 2026 से प्रभाव में आ सकता है।
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