भारत-यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU)

पाठ्यक्रम: GS2/ अंतर्राष्ट्रीय संबंध

समाचार में

  • भारत एवं रूस ने मॉस्को में 2030 तक 100 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार को हासिल करने के संकल्प को दोहराया और भारत–यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) में वस्तुओं के मुक्त व्यापार समझौते के कदमों की समीक्षा की।

यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) के बारे में

  • EAEU एक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संघ और मुक्त व्यापार क्षेत्र है, जिसमें आर्मेनिया, बेलारूस, कज़ाख़स्तान, किर्गिज़स्तान एवं रूस शामिल हैं।
  • इसे 2014 में यूरेशियन आर्थिक संघ की संधि द्वारा स्थापित किया गया और जनवरी 2015 से प्रभावी हुआ।
  • संघ का उद्देश्य वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और श्रम का मुक्त प्रवाह, आर्थिक नीतियों का समन्वय, गैर-शुल्क व्यापार बाधाओं का उन्मूलन एवं सदस्य देशों के बीच विनियमों का सामंजस्य है।
  • EAEU लगभग 200 मिलियन लोगों के बाज़ार को कवर करता है, जिसकी संयुक्त GDP 6.5 ट्रिलियन डॉलर है। इसका संचालन सुप्रीम यूरेशियन आर्थिक परिषद और यूरेशियन आर्थिक आयोग द्वारा किया जाता है।

भारत के लिए यूरेशियन आर्थिक संघ का महत्व

  • बाज़ार तक पहुँच: EAEU भारतीय निर्यातकों को विशाल बाज़ार तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे वस्त्र, दवाइयाँ, इंजीनियरिंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स और MSMEs को लाभ होता है।
  • व्यापार विविधीकरण: EAEU के साथ जुड़ाव भारत को अमेरिकी/यूरोपीय बाज़ारों पर निर्भरता कम करने में सहायता करता है और वैश्विक शुल्क विवादों से उत्पन्न कमजोरियों को संबोधित करता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: रूस, जो EAEU का सबसे बड़ा सदस्य है, भारत को कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। मजबूत EAEU साझेदारी दीर्घकालिक ऊर्जा अनुबंधों को समर्थन देती है।
  • कनेक्टिविटी: EAEU सहयोग अंतरराष्ट्रीय उत्तर–दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) और चेन्नई–व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग जैसी पहलों को पूरक करता है, जिससे लॉजिस्टिक लागत कम होती है।
  • भूराजनीतिक महत्व: रूस-नेतृत्व वाले EAEU के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना भारत की “मल्टी-अलाइनमेंट” नीति को समर्थन देता है और उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को मज़बूत करता है।

भारत–EAEU जुड़ाव में चुनौतियाँ

  • रूस के साथ उच्च व्यापार घाटा: भारत का रूस के साथ व्यापार घाटा काफी बढ़ गया है (2021 में 6.6 अरब डॉलर से 2024–25 में 58.9 अरब डॉलर तक), मुख्यतः हाइड्रोकार्बन आयात के कारण, जिससे संतुलित विकास प्रभावित होता है।
  • भूराजनीतिक संवेदनशीलताएँ: रूस-नेतृत्व वाले ब्लॉक के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंध भारत के पश्चिमी साझेदारों (NATO, US, EU) में चिंताएँ उत्पन्न करते हैं, जिसके लिए सावधानीपूर्वक कूटनीतिक संतुलन आवश्यक है—विशेषकर वैश्विक प्रतिबंधों और सुरक्षा के संदर्भ में।
  • गैर-शुल्क बाधाएँ: भारतीय निर्यातकों को नौकरशाही विलंब, जटिल सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ और EAEU के अंदर नियामक असंगतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ती है तथा प्रतिस्पर्धात्मकता घटती है।
  • स्वच्छता और पादप-स्वास्थ्य मानक (SPS): EAEU देशों में सख्त SPS मानक भारतीय कृषि निर्यात को सीमित करते हैं और नियामक सामंजस्य की आवश्यकता होती है।
  • FTA का अपर्याप्त उपयोग: भारत की FTA उपयोग दर कम है, जो संकेत देती है कि भविष्य के समझौतों का लाभ उठाने के लिए बेहतर व्यापार सुविधा और घरेलू उद्योग की तैयारी आवश्यक है।

निष्कर्ष

  • EAEU भारत के लिए व्यापार विविधीकरण, ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने का एक रणनीतिक अवसर प्रस्तुत करता है। हालांकि, व्यापार घाटे, नियामक बाधाओं और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के संतुलन को संबोधित करना एक सुदृढ़ भारत–EAEU साझेदारी के लिए महत्वपूर्ण होगा।

Source: PIB

 

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