पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संदर्भ
- भारत–मिस्र रणनीतिक संवाद का प्रथम संस्करण नई दिल्ली में आयोजित हुआ, जिसकी सह-अध्यक्षता विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और मिस्र के विदेश मंत्री ने की।
- दोनों नेताओं ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) की प्रगति पर चर्चा की।
परिचय
- मिस्र की स्थिति: मिस्र भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) जैसे क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं का समर्थन करता है, लेकिन मानता है कि फिलिस्तीन के मुद्दे को सुलझाए बिना प्रगति असंभव है।
- मिस्र ने भारत को मिस्र के स्वेज नहर आर्थिक क्षेत्र (SCZONE) में शामिल होने का प्रस्ताव दिया — जहां रूस, चीन और अन्य देशों के औद्योगिक परिसर पहले से उपस्थित हैं — ताकि संपर्क एवं व्यापार सहयोग को सुदृढ़ किया जा सके।
- भारत का फिलिस्तीन को समर्थन: विदेश मंत्री ने दो-राज्य समाधान के प्रति भारत के निरंतर समर्थन की पुनः पुष्टि की, अर्थात् इज़राइल और फिलिस्तीन का स्वतंत्र राज्यों के रूप में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
- मिस्र की भू-रणनीतिक भूमिका: मिस्र एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करने का लक्ष्य रखता है, तथा अपने स्वेज नहर आर्थिक क्षेत्र का उपयोग औद्योगिक एवं व्यापार सहयोग के लिए करता है।
- गाजा में मिस्र की मध्यस्थता और गाजा शांति समझौते (2025) में भागीदारी इसकी मध्य पूर्व शांति प्रयासों एवं संपर्क कूटनीति में केंद्रीयता को सुदृढ़ करती है।
भारत-मिस्र संबंधों का संक्षिप्त विवरण
- राजनयिक संबंध 1947 में राजदूत स्तर पर स्थापित हुए।
- दोनों देश 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के संस्थापक सदस्य थे।
- द्विपक्षीय संबंध: भारत-मिस्र द्विपक्षीय व्यापार समझौता (MFN क्लॉज पर आधारित) 1978 से लागू है।
- FY 2021-22 में व्यापार US$ 7.26 बिलियन के उच्च स्तर पर पहुंचा।
- FY 2024-25 में द्विपक्षीय व्यापार लगभग US$ 5.2 बिलियन रहा (भारत से मिस्र को निर्यात ~ US$3.84 बिलियन; आयात ~ US$1.3 बिलियन)।
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग: 2022 में भारतीय रक्षा मंत्री की यात्रा के दौरान रक्षा सहयोग पर समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर हुए।
- 2021 में प्रथम बार IAF-EAF संयुक्त सामरिक वायु अभ्यास “डेजर्ट वॉरियर” आयोजित हुआ।
- 2025 में दोनों देशों की विशेष बलों की भागीदारी वाला अभ्यास “साइक्लोन” का तीसरा संस्करण आयोजित हुआ।
- भारतीय समुदाय: मिस्र में 6,000 से अधिक भारतीय रहते हैं, और लगभग 2,000 भारतीय छात्र मिस्र में पढ़ते हैं।
- तंत्र: संयुक्त विदेश कार्यालय परामर्श (FOC), संयुक्त व्यापार आयोग (JTC), संयुक्त रक्षा समिति (JDC), तथा विभिन्न मुद्दों पर संयुक्त कार्य समूह (JWGs) जैसे कि नई और नवीकरणीय ऊर्जा, पशुपालन, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC)
- पृष्ठभूमि: IMEC, एक प्रस्तावित 4,800 किमी लंबा मार्ग, 2023 में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान घोषित किया गया।
- यह भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, इटली, फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय आयोग के नेताओं की बैठक के बाद सामने आया।
- सदस्य: भारत, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, सऊदी अरब, UAE और अमेरिका ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) की घोषणा की।
- उद्देश्य: एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व का एकीकरण। IMEC दो अलग-अलग गलियारों में विभाजित होगा:
- पूर्वी गलियारा जो भारत को पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व से जोड़ेगा।
- उत्तरी गलियारा जो पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व को यूरोप से जोड़ेगा।

IMEC में शामिल बंदरगाह
- भारत: मुंद्रा (गुजरात), कांडला (गुजरात), और जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (नवी मुंबई)।
- यूरोप: पिराएस (ग्रीस), मेसिना (दक्षिणी इटली), और मार्सिले (फ्रांस)।
- मध्य पूर्व: फुजैरा, जेबेल अली, और अबू धाबी (UAE); दमाम और रस अल खैर (सऊदी अरब)।
- इज़राइल: हाइफा पोर्ट।
- रेलवे लाइन: यह रेलवे लाइन UAE के फुजैरा पोर्ट को इज़राइल के हाइफा पोर्ट से जोड़ेगी, जो सऊदी अरब (घुवैफात एवं हारध) और जॉर्डन से होकर गुजरेगी।
IMEC का महत्व
- आर्थिक विकास: एशिया, पश्चिम एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप को जोड़कर संपर्क एवं आर्थिक एकीकरण के माध्यम से क्षेत्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
- भारत की संपर्क और व्यापार पहुंच में वृद्धि: IMEC भारत को यूरोप से जोड़ने वाला एक सीधा, तीव्र और सुरक्षित व्यापार मार्ग प्रदान करता है, जो अरब प्रायद्वीप एवं भूमध्य सागर से होकर गुजरता है।
- स्वेज नहर पर निर्भरता में कमी: यह मार्ग शिपिंग समय को 40% तक और लागत को 20–30% तक कम करता है।
- भारत की रणनीतिक साझेदारियों को मजबूती: यह भारत के अमेरिका, यूरोपीय संघ, सऊदी अरब, UAE और इज़राइल जैसे प्रमुख भागीदारों से संबंधों को गहरा करता है।
- भारत की “एक्ट वेस्ट नीति” के अनुरूप: यह पारंपरिक साझेदारों और नए क्षेत्रीय खिलाड़ियों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
- ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा: यह गलियारा ऊर्जा पाइपलाइनों और ग्रीन हाइड्रोजन नेटवर्क को जोड़ सकता है, जो भारत को खाड़ी उत्पादकों एवं यूरोपीय उपभोक्ताओं से जोड़ता है।
- भारत के ऊर्जा आयात में विविधता: यह नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाता है।
- पर्यावरण अनुकूल अवसंरचना: यह पर्यावरणीय रूप से अनुकूल अवसंरचना के विकास पर बल देता है।
चिंताएँ
- क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों के कारण अन्य साझेदार परियोजना में निवेश करने से संकोच कर रहे हैं।
- मध्य पूर्व में अस्थिरता ने परियोजना को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, और इसमें देरी भारत की क्षेत्रीय आकांक्षाओं को हानि पहुंचा सकती है।
- राजनीतिक सहमति की कमी: यद्यपि यह G20 शिखर सम्मेलन 2023 के दौरान हस्ताक्षरित हुआ था, IMEC ज्ञापन कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है और स्वैच्छिक भागीदारी पर निर्भर करता है।
- सदस्यों के विविध प्राथमिकताएँ: समन्वय और क्रियान्वयन की गति को धीमा करती हैं।
- आर्थिक और वित्तीय व्यवहार्यता: परियोजना की अनुमानित लागत बहुत अधिक है, जिसमें कई देशों में बंदरगाह, रेलवे, पाइपलाइन और डिजिटल अवसंरचना शामिल है।
- वित्तपोषण तंत्र की अस्पष्टता: यह स्पष्ट नहीं है कि वित्तपोषण बहुपक्षीय, सार्वजनिक-निजी या राज्य-निधि आधारित होगा।
- अवसंरचना की कमी और तकनीकी चुनौतियाँ: पश्चिम एशियाई देशों में विशेष रूप से सीमा पार रेलवे संपर्क में महत्वपूर्ण अवसंरचना घाटा है।
- विभिन्न रेलवे गेज, मानकों और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं का एकीकरण अभी तक हल नहीं हुआ है।
आगे की राह
- भू-राजनीतिक चिंताओं को प्रबंधित करने के लिए भाग लेने वाले देशों के हितों को संतुलित करना और संभावित राजनीतिक संवेदनशीलताओं को संबोधित करना आवश्यक है।
- परियोजना जिन अस्थिर क्षेत्रों से होकर गुजरती है, वहां आवश्यक सुरक्षा तंत्र बनाए रखना भी आवश्यक है।
Source: TH
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