माओवादियों का सामूहिक आत्मसमर्पण

पाठ्यक्रम: GS3/आंतरिक सुरक्षा

संदर्भ

  • छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य क्षेत्र में 210 माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जो महाराष्ट्र में हुई इसी प्रकार की घटना के बाद हुआ। यह केंद्र और राज्य सरकारों की व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य हिंसा को त्यागकर पुनर्वास को अपनाना है।

माओवाद या वामपंथी उग्रवाद (LWE) के बारे में 

  • यह उग्रवादी कम्युनिस्ट विचारधारा पर आधारित था, जो राज्य को उखाड़ फेंकने और एक वर्गहीन समाज की स्थापना के लिए सशस्त्र संघर्ष का समर्थन करता था। 
  • भारत में LWE की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी आंदोलन से हुई, जो माओ ज़ेडोंग की क्रांतिकारी रणनीतियों से प्रेरित था। 
  • यह आंदोलन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और बाद में सीपीआई (माओवादी) जैसे समूहों के गठन के साथ गति पकड़ता गया, जिन्होंने चुनावी राजनीति को नकारते हुए हिंसक क्रांति को अपनाया।

भारत में माओवाद या वामपंथी उग्रवाद (LWE) के कारण

  • सामाजिक-आर्थिक असमानता: LWE ने उन क्षेत्रों में जड़ें जमाईं जहाँ गरीबी, अशिक्षा और बुनियादी सेवाओं की कमी थी। कई आदिवासी समुदायों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा:
    • खनन और औद्योगिक परियोजनाओं के कारण भूमि से बेदखली;
    • अपर्याप्त पुनर्वास के साथ विस्थापन;
    • शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार तक सीमित पहुंच।
  • शासन की कमी: दूरस्थ जिलों में प्रशासनिक उपस्थिति कमजोर होती है और सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति भी खराब होती है। इस शून्य का लाभ उठाकर माओवादी समूहों ने:
    • समानांतर शासन संरचनाएं स्थापित कीं;
    • स्थानीय शिकायतों का दोहन किया;
    • वंचित जनसंख्या के बीच वैधता प्राप्त की।
  • आदिवासी असंतोष: विशेष रूप से वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा के विकास से लंबे समय से वंचित महसूस हुआ है। माओवादियों ने इस अलगाव का लाभ उठाकर स्थानीय संघर्षों के साथ स्वयं को जोड़ा और राज्य के शोषण से सुरक्षा प्रदान करने का दावा किया।

प्रभाव में गिरावट 

  • कभी ‘रेड कॉरिडोर’ में व्यापक रूप से फैले माओवादी प्रभाव में सरकार की सतत कार्रवाई के कारण उल्लेखनीय गिरावट आई है। 
  • गृह मंत्रालय के अनुसार, LWE प्रभावित जिलों की संख्या 2010 में 126 थी जो 2025 में घटकर केवल 11 रह गई है, जिनमें से केवल तीन जिले — बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर (छत्तीसगढ़) — ‘अत्यधिक प्रभावित’ के रूप में चिह्नित हैं। 
  • 2010 से 2024 के बीच हिंसक घटनाओं में 81% और मौतों में 85% की गिरावट दर्ज की गई है।

LWE से निपटने के लिए सरकार की रणनीति 

  • LWE से निपटने के लिए राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना (2015) एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है:
    • सुरक्षा अवसंरचना और कर्मियों को सुदृढ़ बनाना;
    • सड़क संपर्क और दूरसंचार पहुंच को बढ़ावा देना;
    • आदिवासी समुदायों के अधिकारों और लाभों को सुनिश्चित करना;
    • मंत्रालयों के बीच विकास योजनाओं का समन्वय करना। 
  • गृह मंत्रालय ने 31 मार्च 2026 तक LWE को समाप्त करने के सरकार के संकल्प की पुनः पुष्टि की है, और माओवादियों से हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने का आग्रह किया है।
    • हालिया सामूहिक आत्मसमर्पण आंदोलन के अंदर बढ़ती मोहभंग को दर्शाते हैं। पुनर्वास कार्यक्रम पूर्व उग्रवादियों को समाज में पुनः एकीकृत करने के लिए वित्तीय सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण और आवास प्रदान करते हैं।
  • सुरक्षा उपाय:
    • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) और विशेष एंटी-नक्सल इकाइयों की तैनाती।
    • ड्रोन और निगरानी प्रणालियों सहित तकनीक एवं खुफिया जानकारी का उपयोग।
    • दूरस्थ क्षेत्रों में उपस्थिति बनाए रखने के लिए फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (FOBs) की स्थापना।
  • विकास पहल:
    • दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों में सड़क संपर्क परियोजनाएं ताकि पहुंच और गतिशीलता में सुधार हो सके।
    • दूरसंचार नेटवर्क, विद्युत और बैंकिंग सेवाओं का विस्तार।
    • शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आजीविका कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना ताकि सामाजिक-आर्थिक शिकायतों को दूर किया जा सके।
    • लक्षित निवेश के माध्यम से ‘रेड ज़ोन’ को विकास गलियारों में बदलना।
  • वैचारिक प्रतिकार: सरकार माओवादी प्रचार का सामान समुदाय सहभागिता और जागरूकता अभियानों के माध्यम से सक्रिय रूप से कर रही है।
    • ‘भारत मंथन 2025 – नक्सल मुक्त भारत’ जैसे सेमिनार राज्यों के बीच सहमति निर्माण और सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान का उद्देश्य रखते हैं।

Source: TH

 

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