भारत के प्रत्यर्पण ढांचे को सुदृढ़ करना: विशेष जेलों और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता

पाठ्यक्रम: GS2/ शासन, GS3/ आंतरिक सुरक्षा

संदर्भ

  • केंद्रीय गृह मंत्री ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा आयोजित “भगोड़ों का प्रत्यर्पण: चुनौतियाँ और रणनीतियाँ” विषयक सम्मेलन में राज्यों से अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप भगोड़ों के लिए विशेष जेलों के निर्माण का आग्रह किया।

विशेष जेलों की आवश्यकता

  • प्रत्यर्पण में बाधाएँ: कई भगोड़े जिन्हें भारतीय अधिकारियों द्वारा वांछित किया गया है, विदेशी न्यायालयों में प्रत्यर्पण का विरोध करते हैं, यह तर्क देते हुए कि भारतीय जेलें अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करतीं।
    • कई देशों के न्यायालयों ने मानवीय आधार पर प्रत्यर्पण में देरी की है या उसे अस्वीकार किया है, भारतीय जेलों में भीड़भाड़, खराब स्वच्छता और चिकित्सा देखभाल की कमी जैसे मुद्दों का उदाहरण देते हुए।
  • अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन: संयुक्त राष्ट्र के कैदियों के उपचार के लिए न्यूनतम मानक नियमों (नेल्सन मंडेला नियम) के अनुरूप विशेष जेलों का निर्माण भारत को इन आपत्तियों का जवाब देने और मानवीय व्यवहार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने में सहायता करेगा।
  • वैश्विक कानूनी स्थिति: विशेष जेलें विदेशी न्यायालयों के समक्ष भारत की विश्वसनीयता को बढ़ाएँगी और आतंकवाद, वित्तीय धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय अपराधों में शामिल भगोड़ों को वापस लाने की क्षमता को सुदृढ़ करेंगी।

भारतीय जेलों में वर्तमान समस्याएँ

  • भीड़भाड़: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की जेल सांख्यिकी भारत 2023 रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जेलों में औसतन 120.8% की अधिभोग दर रही।
  • खराब अवसंरचना और स्वच्छता: कई जेलों में अपर्याप्त वेंटिलेशन, स्वच्छता और स्वास्थ्य देखभाल जैसी समस्याएँ हैं। ऐसी स्थितियाँ अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा नहीं करतीं तथा प्रत्यर्पण से मना करने के कारणों के रूप में उद्धृत की जाती हैं।
  • वर्गीकरण की कमी: आर्थिक अपराधियों, विदेशी नागरिकों या उच्च जोखिम वाले भगोड़ों के लिए अलग-अलग हिरासत श्रेणियाँ मौजूद नहीं हैं।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की रिपोर्टों में हिरासत में हिंसा, चिकित्सा सहायता में देरी और सीमित कानूनी पहुँच के मामलों को उजागर किया गया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में भारत की स्थिति कमजोर होती है।

प्रत्यर्पण तंत्र में सुधार

  • पासपोर्ट समन्वय प्रणाली: गृह मंत्री ने पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच रीयल-टाइम समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया।
    • इंटरपोल द्वारा रेड कॉर्नर नोटिस (RCN) जारी होने के तुरंत बाद पासपोर्ट को लाल झंडी दिखाकर, जब्त कर या रद्द कर देना चाहिए ताकि भगोड़े अंतरराष्ट्रीय यात्रा न कर सकें।
  • ब्लू कॉर्नर से रेड कॉर्नर नोटिस में रूपांतरण: सूचना के लिए जारी ब्लू कॉर्नर नोटिस को गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण के अनुरोध वाले रेड कॉर्नर नोटिस में बदलने के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया जाएगा।
    • प्रत्येक राज्य में इस रूपांतरण की निगरानी और क्रियान्वयन के लिए एक समर्पित प्रकोष्ठ होगा।
  • बहु-एजेंसी समन्वय: बहु-एजेंसी केंद्र (MAC) के अंतर्गत एक संयुक्त कार्यबल, जिसमें CBI और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) शामिल होंगे, भगोड़ों की निगरानी एवं प्रत्यर्पण में निर्बाध समन्वय सुनिश्चित करेगा।

संबंधित प्रगति और उपलब्धियाँ

  • वैश्विक संचालन केंद्र (CBI): CBI ने अंतरराष्ट्रीय पुलिस एजेंसियों के साथ रीयल-टाइम समन्वय के लिए एक वैश्विक संचालन केंद्र स्थापित किया है।
    • सितंबर 2025 तक 190 से अधिक रेड कॉर्नर नोटिस जारी किए गए, जो CBI के इतिहास में एक रिकॉर्ड है।
  • संपत्ति पुनर्प्राप्ति: भगोड़े आर्थिक अपराधी अधिनियम (2018) के अंतर्गत सरकार ने विगत चार वर्षों में आर्थिक भगोड़ों की संपत्तियों से लगभग $2 बिलियन की वसूली की है।

आगे की राह

  • अवसंरचना उन्नयन: अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने वाली मॉडल हिरासत सुविधाओं की स्थापना।
  • कानूनी सुधार: प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 के अंतर्गत प्रत्यर्पण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
  • राजनयिक प्रयास: द्विपक्षीय संधियों और पारस्परिक कानूनी सहायता समझौतों (MLATs) को सुदृढ़ करना।
  • क्षमता निर्माण: अंतरराष्ट्रीय कानूनी सहयोग पर राज्य पुलिस और CBI कर्मियों को प्रशिक्षित करना।
  • सार्वजनिक पारदर्शिता: भगोड़ों की निगरानी और प्रत्यर्पण परिणामों पर नियमित अपडेट देना ताकि जनता का विश्वास बना रहे।

Source: PIB

 

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