पाठ्यक्रम: GS3/आंतरिक सुरक्षा
संदर्भ
- भारतीय तटरक्षक बल (ICG) और श्रीलंका तटरक्षक बल (SLCG) के बीच आठवीं उच्च स्तरीय बैठक (HLM) नई दिल्ली में आयोजित की गई।
परिचय
- चर्चाएं समुद्री प्रदूषण प्रतिक्रिया, समुद्री खोज एवं बचाव, और समुद्री कानून प्रवर्तन के क्षेत्रों में सहयोग को सुदृढ़ करने पर केंद्रित थीं, साथ ही क्षमता निर्माण तथा तकनीकी सहायता पहलों को बढ़ाने पर भी बल दिया गया।
- दोनों पक्षों ने साझा समुद्री क्षेत्र में समकालीन समुद्री चुनौतियों का समाधान करने, सुरक्षा, संरक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए मिलकर कार्य करने की प्रतिबद्धता दोहराई।
| भारतीय तटरक्षक बल (ICG) – ICG भारत की समुद्री कानून प्रवर्तन और खोज एवं बचाव एजेंसी है, जिसका अधिकार क्षेत्र भारत के प्रादेशिक जल, सन्निहित क्षेत्र तथा विशेष आर्थिक क्षेत्र तक फैला है। – 1977 में संसद द्वारा पारित तटरक्षक अधिनियम, 1978 के अंतर्गत स्थापित। – मूल एजेंसी: रक्षा मंत्रालय। – मुख्यालय: नई दिल्ली। – प्रमुख: महानिदेशक भारतीय तटरक्षक बल (DGICG)। |
भारत का समुद्री क्षेत्र
- भारत का समुद्री क्षेत्र उसके चारों ओर के समुद्रों और महासागरों में उसकी अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को दर्शाता है।
- भारत की समुद्री तटरेखा 7,517 किमी है, जिसमें द्वीप क्षेत्र भी शामिल हैं।
- प्रादेशिक जल (12 नॉटिकल मील): इस क्षेत्र में भारत पूर्ण संप्रभुता का प्रयोग करता है, और इसमें देश के तटीय क्षेत्र और बंदरगाह शामिल हैं।
- सन्निहित क्षेत्र (24 नॉटिकल मील): इस क्षेत्र में भारत सीमा शुल्क, वित्तीय, आव्रजन या स्वच्छता कानूनों के उल्लंघन को रोकने या दंडित करने के लिए कार्रवाई कर सकता है।
- विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ): यह क्षेत्र आधार रेखा से 200 नॉटिकल मील तक फैला होता है।
- इस क्षेत्र में भारत को प्राकृतिक संसाधनों जैसे मत्स्य पालन और हाइड्रोकार्बन के अन्वेषण, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन के विशेष अधिकार प्राप्त हैं।

समुद्री सुरक्षा
- यह राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा के लिए समुद्रों और महासागरों से उत्पन्न खतरों से सुरक्षा सुनिश्चित करने से संबंधित है।
- खतरों में तटीय क्षेत्रों की रक्षा, समुद्री संसाधनों जैसे मछली, अपतटीय तेल और गैस कुएं, बंदरगाह सुविधाओं की सुरक्षा शामिल है।
- यह हमारे जहाजों की आवाजाही की स्वतंत्रता बनाए रखने और व्यापार की सुविधा एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी कार्य करता है।
- समुद्री सुरक्षा के तत्व निम्नलिखित हैं:
- अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा
- संचार के समुद्री मार्गों की सुरक्षा
- संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और राजनीतिक स्वतंत्रता
- समुद्री अपराधों से सुरक्षा
- समुद्री संसाधनों तक पहुंच और उनकी सुरक्षा
- नाविकों और मछुआरों की सुरक्षा
- पर्यावरण संरक्षण
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ करने की आवश्यकता
- व्यापार और ऊर्जा जीवन रेखाएं: विश्व के समुद्री तेल व्यापार का 80% से अधिक हिस्सा हिंद महासागर के चोक पॉइंट्स से होकर गुजरता है—40% होरमुज़ जलडमरूमध्य, 35% मलक्का जलडमरूमध्य और 8% बाब अल-मंडब जलडमरूमध्य से।
- यहां कोई भी व्यवधान भारत की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा: प्रमुख शक्तियों की गतिविधियां (विशेष रूप से चीन की बढ़ती उपस्थिति और बुनियादी ढांचा निवेश) रणनीतिक संतुलन को बदल रही हैं।
- विखंडित समुद्री शासन: कई तटीय देशों के पास निगरानी, कानून प्रवर्तन और मानवीय एवं आपदा प्रतिक्रिया (HADR) की क्षमता की कमी है।
- विविध विषम खतरे: अवैध, अनियमित और बिना रिपोर्ट के मत्स्य पालन, तस्करी, समुद्री डकैती की पुनरावृत्ति एवं वाणिज्यिक जहाजों पर हमले सुरक्षा को जटिल बनाते हैं।
- ब्लू इकोनॉमी की संभावनाएं: IOR में मत्स्य पालन, समुद्री खनिज, नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यटन में अवसर हैं—जिसके लिए सुरक्षित समुद्रों की आवश्यकता है ताकि सतत दोहन सुनिश्चित किया जा सके।

निष्कर्ष
- भारत की समुद्री सुरक्षा पहल सैन्य क्षमता, बुनियादी ढांचा तत्परता, क्षेत्रीय साझेदारी और कानूनी-संस्थागत ढांचे का मिश्रण दर्शाती है।
- जैसे-जैसे समुद्री खतरे विकसित हो रहे हैं, भारत का दृष्टिकोण—SAGAR में निहित—समुद्री मार्गों की सुरक्षा, तटीय समुदायों की रक्षा और IOR में नियम-आधारित व्यवस्था बनाए रखने पर केंद्रित है।
Source: PIB
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