भूपेन हजारिका की 99वीं जयंती

पाठ्यक्रम: विविध

संदर्भ

  • हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा भूपेन हज़ारिका की 99वीं जयंती के अवसर पर एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित कीगई।

डॉ. भूपेन हज़ारिका के बारे में

  • प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: डॉ. भूपेन हज़ारिका, जिन्हें ‘ब्रह्मपुत्र के गायक’ और ‘सुधाकंठ’ (नाइटिंगेल) के नाम से जाना जाता है, का जन्म 8 सितंबर 1926 को असम के सादिया में नीलकंठ और शांतिप्रिया हज़ारिका के घर हुआ था।
    • बाद में उनका परिवार गुवाहाटी, धुबरी और तेजपुर चला गया, जहाँ उन्होंने संगीत और सिनेमा जगत से परिचय प्राप्त किया। 
    • 1936 तक उन्होंने कोलकाता में अपना प्रथम गीत रिकॉर्ड किया और अगरवाला की फिल्म इंद्रमालती में गाया। 
    • 1949 में उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति मिली, जहाँ उन्होंने 1952 में वयस्क शिक्षा में ऑडियो-विजुअल तकनीकों पर पीएच.डी. पूरी की।

बहुआयामी करियर

  • शिक्षण और प्रारंभिक कार्य: हज़ारिका ने कुछ समय के लिए ऑल इंडिया रेडियो, गुवाहाटी में कार्य किया और बाद में गौहाटी विश्वविद्यालय में व्याख्याता बने।
    • उन्होंने विश्वविद्यालय का गान जिलिकाबा लुइतारे पार रचा और फिर संगीत एवं सिनेमा को पूर्णकालिक रूप से अपनाने के लिए कोलकाता चले गए।
  • संगीत और सांस्कृतिक योगदान: उनका संगीत प्रकृति, प्रेम और भाईचारे को दर्शाता है, जो असम की प्राकृतिक छटा और जनजातीय परंपराओं से प्रेरित था।
    • गीत जैसे बिस्तार्णो परारे (रॉबेसन के ओल’ मैन रिवर से प्रेरित) और सोइसोबोरे धेमालिटे स्थानीय सौंदर्य एवं सार्वभौमिक संघर्षों को दर्शाते हैं। 
    • उन्होंने असमिया, हिंदी, बंगाली और कई अन्य भाषाओं में रचना की, जिससे एकता और शांति का संदेश फैलाया।
  • सिनेमा: प्रमुख असमिया फिल्मों में एरा बाटर सूर (1956), शकुंतला (1960), और सिराज (1988) शामिल हैं।
    • उनका प्रभाव हिंदी और बंगाली सिनेमा तक पहुँचा, जैसे रुदाली (1994) एवं सीमाना परिये (1978)। 
    • उन्होंने थ्रू मेलोडी एंड रिदम (1977) जैसे वृत्तचित्र बनाए, जो पूर्वोत्तर भारत की लोक संस्कृति को दर्शाते हैं।

राजनीतिक और सामाजिक सहभागिता

  • 1967 में वे असम विधान सभा के लिए चुने गए और 1993 में असम साहित्य सभा के अध्यक्ष बने। 
  • उन्होंने इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) के माध्यम से पूर्वोत्तर भारत की विविध जनजातियों और संस्कृतियों के बीच भाईचारे को बढ़ावा दिया।

पुरस्कार और सम्मान

  • डॉ. भूपेन हज़ारिका को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए:
    • दादासाहेब फाल्के पुरस्कार (1992);
    • राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1975) – चमेली मेमसाहब के लिए;
    • पद्मश्री (1977), पद्मभूषण (2001), पद्मविभूषण (2012, मरणोपरांत), भारत रत्न (2019, मरणोपरांत);
    • मुक्ति योद्धा पदक (2011, बांग्लादेश, मरणोपरांत)। 
  • उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किए गए और भारत के सबसे लंबे नदी पुल का नाम डॉ. भूपेन हज़ारिका सेतु रखा गया।

विरासत

  • डॉ. भूपेन हज़ारिका का निधन 5 नवंबर 2011 को मुंबई में हुआ। 
  • उनका जीवन असम और पूर्वोत्तर की आत्मा का प्रतीक था, जिसमें संगीत, कविता और सिनेमा को एकजुट सांस्कृतिक शक्ति के रूप में बुना गया। 
  • उनके गीत, जो सीमाओं और पीढ़ियों के पार गाए जाते हैं, मानवता, भाईचारे एवं जीवन की सुंदरता के शाश्वत प्रमाण हैं। 
  • भूपेन हज़ारिका की यात्रा एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना का प्रतीक थी। 
  • उन्होंने अपनी कला के माध्यम से असम को राष्ट्रीय मंच पर स्थान दिलाया और उसकी आधुनिक सांस्कृतिक पहचान को आकार दिया।

Source: IE

 

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