पाठ्यक्रम: GS2/शासन
प्रसंग
- नागरिक सेवाएँ लोकतंत्र को बनाए रखने और सशक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन इसमें पार्श्व प्रवेशकों (लैटरल एंट्री) और अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है।
विषय
- भारत में आधुनिक योग्यता-आधारित नागरिक सेवा की अवधारणा 1854 में शुरू की गई थी। 1922 से भारतीय सिविल सेवा परीक्षा भारत में आयोजित होने लगी।
- स्वतंत्रता के पश्चात्, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को इन परीक्षाओं के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई।
- प्रतेक वर्ष 21 अप्रैल को ‘सिविल सेवा दिवस’ मनाया जाता है, ताकि 1947 में सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा मेटकॉफ हाउस, नई दिल्ली में पहले बैच के सिविल सेवकों को दिए गए भाषण की स्मृति को सम्मानित किया जा सके।
- उन्होंने सिविल सेवकों को “भारत की इस्पात संरचना” कहा, जिससे उनकी राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया।
भारत में सिविल सेवाओं का इतिहास – लॉर्ड कॉर्नवालिस को ‘भारत में सिविल सेवाओं का जनक’ माना जाता है। – लॉर्ड वेलेस्ली ने सिविल सेवाओं के लिए युवा भर्तियों को शिक्षित करने के लिए 1800 में कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। – लेकिन कंपनी के निदेशकों ने 1806 में इसे इंग्लैंड के हैलीबरी में अपने स्वयं के ईस्ट इंडियन कॉलेज से बदल दिया। – 1853 से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक सिविल सेवकों की नियुक्ति करते थे। बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सदस्यों को कुछ नामांकन करने की अनुमति थी। – 1853 के चार्टर एक्ट ने संरक्षण प्रणाली को समाप्त कर दिया और खुली प्रतियोगी परीक्षाएँ शुरू कीं। – भारतीय सिविल सेवा (ICS) के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षाएँ 1855 में लंदन में आयोजित की गईं। – सत्येंद्रनाथ टैगोर 1864 में ICS पास करने वाले पहले भारतीय थे। |
शासन में सिविल सेवाओं की भूमिका
- सेवा वितरण: वे कल्याणकारी योजनाओं को संचालित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं कि सार्वजनिक सेवाएँ लक्षित लाभार्थियों तक पहुँचें, विशेष रूप से अंतिम छोर पर।
- कानून और व्यवस्था बनाए रखना: सिविल सेवक कानून के शासन को बनाए रखते हुए और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करके शांति, न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
- चुनाव: वे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने और केंद्र और राज्यों दोनों में सत्ता के सुचारू हस्तांतरण को सुनिश्चित करने में सहायक रहे हैं।
- निर्बाध प्रशासन: ऐसे कई उदाहरण हैं जब राज्यों को राष्ट्रपति शासन के अधीन रखा गया है, ऐसे समय में सिविल सेवकों ने निर्बाध प्रशासन सुनिश्चित किया है।
- नीति निर्माण: वे नीति निर्माण में सरकारों को सलाह देते हैं और राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा बनाई गई नीतियों को भी लागू करते हैं।
सिविल सेवाओं के समक्ष चुनौतियाँ
- राजनीतिक पूर्वाग्रह: नौकरशाहों में तटस्थता की विशेषता तेजी से खत्म हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण कार्यों के निर्वहन में राजनीतिक पूर्वाग्रह पैदा हो रहा है।
- इस घटना का कारण और प्रभाव नौकरशाही के सभी पहलुओं में बढ़ती राजनीतिक दखलंदाजी है, जिसमें पोस्टिंग और ट्रांसफर शामिल हैं।
- विशेषज्ञता की कमी: नौकरशाह जो सामान्यवादी होते हैं, उनमें तकनीकी चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता की कमी हो सकती है।
- भ्रष्टाचार: नौकरशाही के सभी स्तरों पर महत्त्वपूर्ण भ्रष्टाचार भी है, जो प्रायः दण्डित नहीं होता।
- लालफीताशाही: अत्यधिक प्रक्रियात्मक औपचारिकताएँ प्रायः निर्णय लेने में देरी करती हैं और समय पर सेवा प्रदान करने में बाधा डालती हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: उच्च दबाव वाला वातावरण और लंबे समय तक काम करने से सिविल सेवकों की मानसिक सेहत पर प्रभाव पड़ता है।
- नवाचार का प्रतिरोध: एक कठोर प्रशासनिक संस्कृति प्रयोग करने और नई प्रथाओं को अपनाने को हतोत्साहित करती है।
- पुराने नियम और प्रक्रियाएँ: कई सेवा नियम औपनिवेशिक युग की विरासत हैं जो आधुनिक शासन आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं हैं।
संवैधानिक प्रावधान – अनुच्छेद 309 संसद और राज्य विधानसभाओं को भर्ती और सेवा की शर्तों को विनियमित करने का अधिकार देता है। – संविधान के अनुच्छेद 310 में कहा गया है कि संघ और राज्यों के सिविल सेवक क्रमशः राष्ट्रपति या राज्यपाल की इच्छा पर ही पद धारण करते हैं। – अनुच्छेद 311 मनमाने ढंग से बर्खास्तगी के खिलाफ सिविल सेवकों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है। – अनुच्छेद 312 अखिल भारतीय सेवाओं, जैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा , भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा के निर्माण की प्रक्रिया को रेखांकित करता है। – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 से 323 संघ (यूपीएससी) और प्रत्येक राज्य (एसपीएससी) दोनों के लिए लोक सेवा आयोग (पीएससी) की स्थापना करते हैं। |
नौकरशाही की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए प्रशासनिक सुधार
- मिशन कर्मयोगी राष्ट्रीय कार्यक्रम: यह भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसे 2020 में सिविल सेवकों के प्रशिक्षण के लिए शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य सिविल सेवाओं को ‘नियम आधारित’ से ‘भूमिका आधारित’ कार्यप्रणाली और नागरिक केंद्रित बनाना है।
- प्रशासन में डोमेन विशेषज्ञता लाने और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए सिविल सेवाओं में पार्श्व प्रवेश।
- ई-गवर्नेंस पहल: शिकायत निवारण के लिए केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (CPGRAMS), प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए SPARROW और सेवा रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण।
निष्कर्ष
- भारत के विकास और शासन की दिशा तय करने में सिविल सेवकों की अहम भूमिका होती है, जिन्हें प्रायः विकसित भारत के निर्माता के रूप में जाना जाता है।
- कानून के शासन और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए तटस्थ नौकरशाही को अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप से अलग रखा जाना चाहिए।
- राजनीतिक और स्थायी कार्यकारी के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन बनाए रखने के लिए, कैरियर नौकरशाहों की स्वायत्तता आवश्यक है।
- इसमें पोस्टिंग, कार्यकाल और स्थानांतरण के संबंध में उचित स्वतंत्रता शामिल है।
- साथ ही, नौकरशाहों का ध्यान ‘प्रक्रिया’ से हटकर ‘परिणामों’ पर केंद्रित होना चाहिए।
Source: TH
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