पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में रेपो दर को 5.50% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया।
रेपो दर क्या है?
- रेपो दर वह दर है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है। यह RBI का प्रमुख नीति उपकरण है जिसका उपयोग तरलता, मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
- कम रेपो दर का तात्पर्य है कि बैंक RBI से सस्ती दरों पर ऋण ले सकते हैं। इससे बैंक अपनी ऋण दरें घटा सकते हैं, जिससे:
- उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए ऋण प्राप्त करना आसान होता है
- निवेश, उपभोग और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है
- तरलता और मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि होती है
- यह विशेष रूप से आर्थिक मंदी के दौरान वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकता है
मौद्रिक नीति समिति (MPC) क्या है?
- MPC एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना RBI अधिनियम, 1934 (2016 में संशोधित) के अंतर्गत की गई है। यह मूल्य स्थिरता बनाए रखते हुए विकास को ध्यान में रखते हुए बेंचमार्क ब्याज दर (रेपो दर) तय करने के लिए उत्तरदायी है।
- इसमें 6 सदस्य होते हैं:
- RBI के 3 सदस्य (जिसमें गवर्नर अध्यक्ष होते हैं)
- सरकार द्वारा नियुक्त 3 बाहरी सदस्य
- निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं, और प्रत्येक सदस्य का एक वोट होता है। यदि मतों में बराबरी हो जाए, तो RBI गवर्नर का निर्णायक वोट होता है।
लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण ढांचा (FITF)
- भारत ने 2016 में लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण ढांचा अपनाया। इसके अंतर्गत सरकार RBI के साथ परामर्श करके प्रत्येक पाँच वर्ष में मुद्रास्फीति लक्ष्य तय करती है।
- वर्तमान जनादेश, जो 31 मार्च 2026 तक प्रभावी है, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4% निर्धारित करता है, जिसमें ±2% की सहनशीलता सीमा है, अर्थात् 2% से 6% के मध्य।
नीति निर्णयों के पीछे कारण
- मुद्रास्फीति में तेज गिरावट: जून 2025 में CPI मुद्रास्फीति 2.1% पर आ गई, जो छह वर्षों में सबसे कम है।
- सब्जियों और अनाज जैसी खाद्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट देखी गई है। इसके चलते FY26 के लिए मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को घटाकर 3.1% कर दिया गया है।
- वैश्विक अनिश्चितताएँ: अमेरिका के टैरिफ और अस्थिर तेल कीमतों जैसी व्यापारिक तनावों से बाहरी जोखिम उत्पन्न हो रहे हैं।
- RBI ने पहले ही 2025 में रेपो दर में 100 आधार अंकों की कटौती की थी। समिति इन कटौतियों के पूर्ण प्रभाव का अवलोकन करना चाहती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- मुद्रास्फीति और कीमतों पर प्रभाव: RBI के संशोधित मुद्रास्फीति पूर्वानुमान से संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था में मूल्य स्तर स्थिर रहने की संभावना है। यह उपभोक्ताओं के लिए अच्छा है, क्योंकि कम मुद्रास्फीति में मुद्रा की क्रय शक्ति बढ़ती है।
- यह सरकार और RBI को दीर्घकालिक विकास के लिए आवश्यक समष्टि आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में सहायता करता है।
- ऋणकर्ताओं और ऋणों पर प्रभाव: चूंकि रेपो दर अपरिवर्तित है, बैंक अपनी ब्याज दरों में परिवर्तन नहीं करेंगे।
- इसका तात्पर्य है कि ऋण की EMI स्थिर रहेगी, जो वर्तमान और नए ऋणकर्ताओं के लिए राहत है।
- आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव: रेपो दर को स्थिर रखकर और कम मुद्रास्फीति का समर्थन करके, RBI संतुलित एवं सतत विकास को प्रोत्साहित कर रहा है।
- सरकार के पूंजीगत व्यय एवं बुनियादी ढांचे के प्रोत्साहन के साथ मिलकर यह नीति व्यवस्था मांग को सुदृढ़ करेगी, रोजगार सृजन को समर्थन देगी और निवेश को बढ़ावा देगी।
- बाहरी जोखिमों के लिए तैयारी: जबकि आर्थिक दृष्टिकोण सकारात्मक है, RBI तेल कीमतों की अस्थिरता, व्यापार तनाव और अमेरिकी टैरिफ जैसी वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण सतर्कता बरत रहा है।
- तटस्थ रुख RBI को लचीलापन देता है – यदि वृद्धि धीमी होती है तो दरों में और कटौती की जा सकती है, या यदि मुद्रास्फीति अप्रत्याशित रूप से बढ़ती है तो दरें बढ़ाई जा सकती हैं।
आगे की राह
- मुद्रास्फीति प्रवृत्तियों की निगरानी: RBI को खाद्य और ईंधन की कीमतों की गतिविधियों पर सतर्क रहना होगा, जो प्रायः अस्थिर होती हैं और वर्तमान संकुचंकारी प्रवृत्ति को जल्दी परिवर्तित कर सकती हैं।
- असमय वर्षा, भू-राजनीतिक तनाव या आपूर्ति में बाधाएँ मुद्रास्फीति दबाव को फिर से बढ़ा सकती हैं।
- संरचनात्मक सुधार और वित्तीय स्थिरता: मौद्रिक उपकरणों के साथ-साथ भारत को कृषि, श्रम बाजार, लॉजिस्टिक्स और वित्तीय क्षेत्रों में संरचनात्मक सुधार जारी रखने की आवश्यकता है ताकि दीर्घकालिक मुद्रास्फीति नियंत्रण और समावेशी विकास सुनिश्चित किया जा सके।
Source: BS
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