धरोहर प्रबंधन और संरक्षण: भारत में नीतिगत परिवर्तन

पाठ्यक्रम: GS1/संस्कृति

संदर्भ

  • सरकार अब संरक्षित स्मारकों के संरक्षण — जो अब तक केवल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकार क्षेत्र में था — को निजी संस्थाओं के लिए खोलने की योजना बना रही है, जिससे विरासत प्रबंधन में सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल की शुरुआत होगी।

पृष्ठभूमि: ASI का विशेष अधिकार 

  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की स्थापना 1861 में संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत की गई थी, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिए उत्तरदायी है। 
  • यह राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और अवशेषों के रखरखाव, संरक्षण एवं सुरक्षा में केंद्रीय भूमिका निभाता है। 
  • यह प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 एवं प्राचीन वस्तुएं एवं कला निधि अधिनियम, 1972 को लागू करता है।
  • ASI की संगठनात्मक संरचना: ASI पूरे भारत में 37 क्षेत्रीय मंडलों के माध्यम से कार्य करता है, जो अपने-अपने क्षेत्राधिकार में फील्डवर्क, संरक्षण और अनुसंधान के लिए उत्तरदायी हैं। इसके विशिष्ट विभागों में शामिल हैं:
    • विज्ञान शाखा: संरक्षण विज्ञान और सामग्री विश्लेषण पर केंद्रित;
    • बागवानी शाखा: विरासत स्थलों के आसपास उद्यानों का रखरखाव करती है;
    • जलमग्न पुरातत्व शाखा: जलमग्न सांस्कृतिक विरासत की खोज करती है;
    • मंदिर सर्वेक्षण परियोजनाएं: मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला का दस्तावेजीकरण करती हैं।
  • अब तक ASI पूरे भारत में लगभग 3,700 संरक्षित स्मारकों के संरक्षण के लिए अकेले उतार्दायी रहा है।
    •  इससे प्रायः देरी होती थी और इतने विशाल संख्या में विरासत संरचनाओं के प्रबंधन की सीमित क्षमता सामने आती थी।

नया सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल 

  • नई पहल विरासत संरक्षण में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को लागू करने का लक्ष्य रखती है। इस कदम के उद्देश्य हैं:
    • संरक्षण कार्य की क्षमता को बढ़ाना।
    • ASI के एकल एजेंसी दृष्टिकोण के तहत ऐतिहासिक रूप से धीमी रही परियोजना समयसीमा को तीव्र करना।
    • पेशेवर और नियामक निगरानी बनाए रखते हुए निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना। 
  • सभी संरक्षण परियोजनाएं ASI की निगरानी में ही रहेंगी और उन्हें राष्ट्रीय संरक्षण नीति (2014) का पालन करना होगा।

ढांचा और कार्यान्वयन 

  • राष्ट्रीय संस्कृति निधि (NCF) की भूमिका: सभी परियोजनाओं के लिए धनराशि NCF के माध्यम से प्रवाहित की जाएगी, जिसकी स्थापना 1996 में ₹20 करोड़ की सरकारी निधि के साथ की गई थी।
    • NCF की संरचना दाताओं को सीधे संरक्षण परियोजनाओं के लिए धन देने की अनुमति देती है, साथ ही CSR पहलों के तहत 100% कर छूट मिलती है।
  • संरक्षण वास्तुकारों का पैनल: संस्कृति मंत्रालय पूरे भारत में एक दर्जन से अधिक संरक्षण वास्तुकारों को पैनल में शामिल करने के लिए प्रस्ताव अनुरोध (RFP) जारी करेगा।
    • दाता इस पैनल से अपने संरक्षण परियोजनाओं के लिए मार्गदर्शन हेतु चयन करेंगे। 
    • वास्तुकार और दाता मिलकर बाहरी कार्यान्वयन एजेंसियों को नियुक्त करेंगे जिनके पास विरासत संरक्षण का अनुभव होगा। 
    • प्रत्येक परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) को ASI से अनुमोदन प्राप्त करना होगा। 
    • इसका अर्थ है कि ASI अपनी पर्यवेक्षण भूमिका बनाए रखेगा, लेकिन निजी पक्ष अब कार्यान्वयन एजेंसियों के रूप में कार्य कर सकते हैं।

राष्ट्रीय संस्कृति निधि का ट्रैक रिकॉर्ड 

  • NCF ने 1996 से अब तक कॉर्पोरेट और सार्वजनिक क्षेत्र के दाताओं से ₹140 करोड़ का दान प्राप्त किया है, जिससे 100 से अधिक संरक्षण परियोजनाओं को वित्तपोषित किया गया है। 
  • पूर्ण परियोजनाएं: भुलेश्वर मंदिर (पुणे), ब्रिटिश रेजीडेंसी (हैदराबाद), मांडू के स्मारक, पुराना किला और लाल किला (नई दिल्ली)। 
  • चालू परियोजनाएं:
    • देवबलोदा (भिलाई, छत्तीसगढ़): SAIL-भिलाई स्टील प्लांट द्वारा वित्तपोषित।
    • पर्यटक सुविधाएं: कालाअंब (पानीपत) और सिंगौरगढ़ किला (मध्य प्रदेश): इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन द्वारा वित्तपोषित।
    • विक्रमशिला (बिहार) में खुदाई अवशेष: NTPC द्वारा वित्तपोषित।

नियंत्रण, संतुलन और पात्रता

  • केवल प्रमाणित संरक्षण वास्तुकारों को ही पैनल में शामिल किया जाएगा।
  • कार्यान्वयन एजेंसियों को 100 वर्ष से अधिक पुराने संरचनाओं के पुनर्स्थापन का पूर्व अनुभव प्रदर्शित करना होगा।
  • संरक्षण प्रस्तावों को राष्ट्रीय संरक्षण नीति (2014) का सख्ती से पालन करना होगा।
  • प्रारंभ में, तत्काल संरक्षण की आवश्यकता वाले 250 स्मारकों की सूची प्रकाशित की जाएगी।
    • दाता इस सूची से चयन कर सकते हैं या क्षेत्रीय/विषयगत रुचियों के आधार पर विशिष्ट स्थलों का अनुरोध कर सकते हैं।

कॉर्पोरेट और विरासत क्षेत्र के लिए 

  • लाभदाताओं के लिए:
    • संरक्षण प्रयासों में प्रत्यक्ष भागीदारी।
    • पूर्ण CSR कर लाभ।
    • स्मारक स्थलों पर योगदान के लिए सार्वजनिक मान्यता।
  • विरासत क्षेत्र के लिए:
    • संरक्षण परियोजनाओं के लिए धन प्रवाह में वृद्धि।
    • ASI से परे कार्यान्वयन क्षमता का विस्तार।
    • तेज परियोजना निष्पादन और बेहतर जवाबदेही।

‘एक विरासत को अपनाओ’ योजना के साथ तुलना

  •  पहले, सरकार की ‘एक विरासत को अपनाओ’’ पहल ने कॉर्पोरेट निकायों को स्मारक मित्र के रूप में कार्य करने की अनुमति दी थी, जो कैफे, टिकट काउंटर और शौचालय जैसी पर्यटक सुविधाओं के विकास पर केंद्रित थी। 
  • नई योजना इससे आगे जाती है — यह मुख्य संरक्षण कार्य में निजी भागीदारी की अनुमति देती है, जो विरासत प्रबंधन में एक प्रमुख नीतिगत बदलाव को दर्शाती है।
क्षेत्राधिकार की सुरक्षा: संवैधानिक प्रावधान 
संघ: प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष, जिन्हें संसद द्वारा राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है। 
राज्य: वे प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक जो संसद द्वारा राष्ट्रीय महत्व का घोषित नहीं किए गए हैं। 
समवर्ती: उपरोक्त के अतिरिक्त, संसद द्वारा कानून द्वारा घोषित नहीं किए गए पुरातात्विक स्थल और अवशेषों पर संघ और राज्य दोनों का समवर्ती अधिकार क्षेत्र होता है। 
अनुच्छेद 253: यह संसद को किसी भी संधि, समझौते या सम्मेलन के कार्यान्वयन के लिए कानून बनाने की अनुमति देता है, चाहे वह किसी अन्य देश या देशों के साथ हो, या किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, संघ या अन्य निकाय में लिया गया निर्णय हो। 
– ऐसा कोई भी कानून तब भी बनाया जा सकता है जब उसका विषय संविधान की राज्य सूची में आता हो।

Source: IE

 

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