क्या भारत को विनियमित स्टेबलकॉइन की अनुमति देनी चाहिए?

पाठ्यक्रम GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित रुपये-समर्थित स्टेबलकॉइन्स भुगतान, प्रेषण और सीमा-पार लेनदेन में क्रांति ला सकते हैं — यदि नियामक ढांचा नवाचार के अनुरूप हो।

रुपये स्टेबलकॉइन क्या हैं?

  • स्टेबलकॉइन्स ऐसी क्रिप्टोकरेंसी होती हैं जो किसी आरक्षित संपत्ति — सामान्यतः अमेरिकी डॉलर या भारतीय रुपये जैसी फिएट मुद्रा — से जुड़ी होती हैं ताकि उनका मूल्य स्थिर बना रहे। 
  • रुपये स्टेबलकॉइन का उद्देश्य भारतीय रुपये से 1:1 के अनुपात में जुड़ा रहना है, जिससे क्रिप्टो की गति, प्रोग्रामेबिलिटी और वैश्विक पहुंच जैसे लाभ मिलते हैं — लेकिन अस्थिरता के बिना। 
  • स्टेबलकॉइन्स को उपयोगिता के लिए बनाया गया है, निवेश के लिए नहीं — जैसा कि सट्टा-आधारित क्रिप्टो संपत्तियों में होता है। इन्हें निम्नलिखित कार्यों में उपयोग किया जा सकता है:
    • त्वरित घरेलू और अंतरराष्ट्रीय भुगतान;
    • स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट आधारित वित्तीय सेवाएं;
    • प्रेषण में लेनदेन लागत को कम करना;
भारत की क्रिप्टो यात्रा
2018: RBI ने बैंकों को क्रिप्टो संपत्तियों से संबंधित लेनदेन करने से प्रतिबंधित किया, जिसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया।
वर्चुअल संपत्तियों पर कर (2022): कई निवेशकों ने इसे धीरे-धीरे वैधता की दिशा में संकेत के रूप में देखा।
– हाल ही में एक उच्च न्यायालय के निर्णय ने क्रिप्टो संपत्तियों को ‘संपत्ति’ के रूप में मान्यता दी, जिससे निषेध और स्वीकृति के बीच की रेखा अस्पष्ट हो गई।

भारत को रुपये-समर्थित स्टेबलकॉइन्स की आवश्यकता क्यों है

  • घरेलू एकीकरण: ये यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के साथ आसानी से एकीकृत हो सकते हैं, जिससे सुविधा बढ़ेगी।
  • वैश्विक उपयोगिता: स्टेबलकॉइन्स सीमा-पार भुगतान को सरल बना सकते हैं, विशेषकर जब वे विदेशी CBDCs के साथ इंटरऑपरेबल हो जाएं।
  • स्मार्ट कार्यक्षमता: प्रोग्रामेबल टोकन AI-निर्देशित वित्तीय प्रणालियों को शक्ति दे सकते हैं, जैसे कि कल्याण वितरण का प्रबंधन करने वाले स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स या अनुपालन को स्वचालित करना।
  • रुपये स्टेबलकॉइन्स निम्नलिखित में सहायक हो सकते हैं:
    • विशेष रूप से खाड़ी और दक्षिण-पूर्व एशिया से प्रेषण को सुव्यवस्थित करना;
    • रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना, जिससे वैश्विक उपयोगकर्ता INR में लेनदेन कर सकें;
    • Web3 नवाचार को समर्थन देना, जिससे भारतीय स्टार्टअप्स को प्रोग्रामेबल मनी टूल्स मिल सकें;

जोखिम और बाधाएं

  • मुद्रा प्रतिस्थापन: स्टेबलकॉइन्स का व्यापक उपयोग रुपये की प्रधानता को कमजोर कर सकता है।
  • नियामक स्पष्टता: भारत की क्रिप्टो नीति अभी भी अस्पष्ट है — उच्च कर और क्रिप्टो व्यवसायों के लिए कोई औपचारिक लाइसेंसिंग ढांचा नहीं है।
  • विश्वास और पारदर्शिता: जारीकर्ताओं को पूर्ण आरक्षित निधि बनाए रखनी चाहिए और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए नियमित ऑडिट करवाने चाहिए।
    • अन्य चुनौतियाँ जैसे कि उच्च क्रिप्टो कर (30% लाभ, 1% TDS) अपनाने को हतोत्साहित करते हैं।

मौद्रिक जोखिमों का प्रबंधन

  • मौद्रिक नियंत्रण: बड़े पैमाने पर निजी टोकन जारी करने से RBI की मुद्रा आपूर्ति की समझ विकृत हो सकती है।
  • वित्तीय स्थिरता: प्रचारात्मक प्रोत्साहन बैंक जमा को आकर्षित कर सकते हैं, जिससे बैंकिंग प्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • नियामक निगरानी: 1:1 संपत्ति समर्थन और विदेशी मुद्रा रूपांतरण की रिपोर्टिंग सुनिश्चित करना आवश्यक होगा।
    • यूएस जीनियस एक्ट 2025, जो संप्रभु संपत्तियों द्वारा समर्थित स्टेबलकॉइन्स को नियामक पर्यवेक्षण के अंतर्गत अनुमति देता है, एक संभावित मॉडल प्रस्तुत करता है — लेकिन भारत को इसे अपनाने से पूर्व अपनी विशिष्ट मौद्रिक और विकासात्मक परिस्थितियों का मूल्यांकन करना होगा।

RBI की भूमिका: नियामक या नवप्रवर्तक?

  • RBI पहले ही अपनी सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC)ई-रुपया — लॉन्च कर चुका है, जिसमें स्टेबलकॉइन्स जैसी कुछ विशेषताएं हैं। 
  • स्टेबलकॉइन्स निजी संस्थाओं द्वारा नियामक निगरानी में जारी किए जा सकते हैं, जबकि CBDCs केंद्रीय बैंक द्वारा जारी और नियंत्रित किए जाते हैं। 
  • यदि RBI रुपये स्टेबलकॉइन्स को विनियमित करता है, तो वह निम्नलिखित सुनिश्चित कर सकता है:
    • KYC/AML मानदंडों का अनुपालन;
    • अवैध गतिविधियों के लिए दुरुपयोग की रोकथाम;
    • UPI और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के साथ इंटरऑपरेबिलिटी;

संतुलित डिजिटल भविष्य की ओर

  • भारत की ई-रुपया परियोजना को खुला, अनुकूलनीय और नवाचारी बने रहना चाहिए। 
  • उदाहरण के लिए, यदि RBI ई-रुपया जमा स्वीकार करता है और उन्हें बैंकों को चैनल करता है, तो यह मौद्रिक संचालन में दक्षता एवं पारदर्शिता बढ़ा सकता है। 
  • एक डिजिटल सैंडबॉक्स ऐसे तंत्रों का सुरक्षित परीक्षण कर सकता है — यह सुनिश्चित करते हुए कि नवाचार नियमन से आगे न निकल जाए। 
  • भारत की डिजिटल मुद्रा रणनीति को नवाचार और स्थिरता, तथा प्रतिस्पर्धा एवं नियंत्रण के बीच संतुलन बनाए रखना होगा।

Source: LM

 

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