उच्चतम न्यायलय ने मुफ्त राशन वितरण पर चिंता व्यक्त की

पाठ्यक्रम: GS/कल्याणकारी योजनाएँ; सरकारी नीति एवं हस्तक्षेप

संदर्भ:

  • हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय ने मुफ्त राशन वितरण प्रणाली को लेकर चिंताएँ व्यक्त की हैं, इसकी दीर्घकालिक स्थिरता और आर्थिक नीतियों पर प्रभाव पर प्रश्न उठाए हैं।

विकास परिप्रेक्ष्य: आर्थिक स्थिरता

  • सर्वोच्च न्यायालय की चिंताएँ: न्यायालय ने देखा कि राज्य केंद्र से खाद्य अनाज खरीदते हैं और उन्हें मुफ्त में वितरित करते हैं, लेकिन इसका वित्तीय भार अंततः करदाताओं पर पड़ता है।
    • 2025 की स्थिति: न्यायालय ने यह भी सवाल किया कि क्या भारत अभी भी 2011 के समान गरीबी स्तर से जूझ रहा है, जब पिछली जनगणना आयोजित की गई थी।
  • रोजगार और बुनियादी ढाँचा विकास की आवश्यकता: न्यायालय ने बल दिया कि केवल मुफ्त राशन वितरण गरीबी का स्थायी समाधान नहीं हो सकता।
    • उसने नीति निर्माताओं से रोजगार सृजन और बुनियादी ढाँचा विकास पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया।
  • कल्याणकारी निर्भरता पर चिंता: न्यायालय ने मुफ्त लाभों पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर आगाह किया, यह तर्क देते हुए कि ऐसी नीतियाँ लोगों को रोजगार खोजने से हतोत्साहित कर सकती हैं।
    • न्यायमूर्ति बी.आर. गवई का दृष्टिकोण: उन्होंने कहा कि मुफ्त लाभ ‘निर्भरता युक्त  जीवन’ नहीं बनना चाहिए, जिसमें व्यक्ति काम करने की प्रेरणा खो देता है।

कल्याणकारी तर्क: खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): NFSA 2013 के तहत ग्रामीण क्षेत्र की 75% और शहरी क्षेत्र की 50% जनसंख्या को अत्यधिक सब्सिडी वाले खाद्य अनाज प्राप्त करने का अधिकार है।
    • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY): 81.35 करोड़ लाभार्थियों को पाँच वर्षों तक मुफ्त खाद्यान्न प्रदान किया जाता है, जिससे बुनियादी पोषण और खाद्य की उपलब्धता सुनिश्चित होती है।
  • सुभेद्य वर्ग का समर्थन: मुफ्त राशन योजनाएँ निम्न-आय परिवारों को खाद्य असुरक्षा से बचाती हैं, विशेष रूप से आर्थिक संकट के दौरान।
    • वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC): यह पहल प्रवासियों को भारत के किसी भी स्थान पर खाद्यान्न प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करती है, जिससे पहुँच में सुधार होता है।

कल्याण और विकास के बीच संतुलन

  • लक्षित कल्याणकारी कार्यक्रम: सार्वभौमिक मुफ्त राशन के बजाय, नीतियों को आवश्यकता-आधारित वितरण पर केंद्रित होना चाहिए ताकि केवल सबसे सुभेद्य वर्गों को सहायता मिले।
  • खाद्य समूह में विविधता: बाजरा, दालें और तेल को शामिल करना पोषण परिणामों में सुधार कर सकता है और विविध कृषि को समर्थन दे सकता है।
  • रोजगार पहल को मजबूत करना: कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार और उद्यमशीलता सहायता लाभार्थियों को कल्याण निर्भरता से आत्मनिर्भरता में स्थानांतरित करने में मदद कर सकती है।
    • आर्थिक रूप से सक्षम परिवारों को सरकारी सब्सिडी से स्वेच्छा से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जैसा कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में किया गया था।
  • वित्तीय जिम्मेदारी और नीति सुधार: सरकार को संसाधनों के कुशल आवंटन को सुनिश्चित करना चाहिए, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए।
  • अद्यतन गरीबी आँकड़ों के आधार पर कल्याणकारी योजनाओं की समय-समय पर समीक्षा से उनकी प्रभावशीलता में सुधार हो सकता है।

निष्कर्ष: 

  • भारत में मुफ्त राशन वितरण एक महत्त्वपूर्ण कल्याणकारी आवश्यकता है, लेकिन यह एक विकासात्मक चुनौती भी है। 
  • संकट के समय और सुभेद्य आबादी के लिए यह अनिवार्य है, लेकिन इसकी बिना किसी सुधार के निरंतरता दीर्घकालिक अक्षमताओं का जोखिम उत्पन्न कर सकती है। 
  • वास्तविक चुनौती यह है कि कल्याण को एक विकासात्मक मार्ग में एकीकृत किया जाए, जहाँ सुरक्षा जाल आत्मनिर्भरता के लिए एक कदम बने।

Source: TH

 

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