यूपीएससी के 100 वर्ष: योग्यता का संरक्षक

पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन

संदर्भ

  • संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) 1 अक्टूबर को अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर रहा है।

परिचय 

  • स्थापना: भारत सरकार अधिनियम, 1919 ने प्रथम बार ऐसे निकाय का प्रावधान किया था, और अक्टूबर 1926 में ली आयोग (1924) की सिफारिशों के आधार पर लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई।
    • बाद में इसे 1937 में संघीय लोक सेवा आयोग कहा गया, और भारत के संविधान को अपनाने के साथ 26 जनवरी 1950 को इसका नाम संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) रखा गया। 
  • UPSC भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) सहित अन्य सेवाओं के लिए अधिकारियों के चयन हेतु सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करता है। 
  • सदस्य: अध्यक्ष के अतिरिक्त इसमें अधिकतम 10 सदस्य हो सकते हैं।
    • UPSC अध्यक्ष को छह वर्ष की अवधि या 65 वर्ष की आयु तक नियुक्त किया जाता है, सभी सदस्यों की अवधि समान होती है। 
  • पुनर्नियुक्ति: UPSC अध्यक्ष को कार्यकाल पूरा होने के बाद पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं माना जाता। 
  • ​पदच्युति(अनुच्छेद 317): राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है:
    • केवल दुर्व्यवहार के आधार पर हटाया जा सकता है।
    • इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय की जांच और दुर्व्यवहार की पुष्टि करने वाली रिपोर्ट आवश्यक होती है।
    • राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को संदर्भित किया जाता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय की जांच के बिना हटाया जा सकता है यदि व्यक्ति: दिवालिया घोषित हो, कार्यालय कर्तव्यों के बाहर भुगतान वाली नौकरी करता हो, मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण अयोग्य हो।
सिविल सेवा दिवस 
– सिविल सेवा दिवस प्रत्येक वर्ष 21 अप्रैल को मनाया जाता है, इस दिन 1947 में सरदार वल्लभभाई पटेल ने मेटकाफ हाउस, नई दिल्ली में सिविल सेवकों के प्रथम बैच को संबोधित किया था। 
– उन्होंने सिविल सेवकों को “भारत की स्टील फ्रेम” कहा था, और देश की एकता एवं अखंडता बनाए रखने में उनकी भूमिका को रेखांकित किया था।

भारत में सिविल सेवाओं का इतिहास

  • लॉर्ड कॉर्नवालिस को भारत में सिविल सेवाओं का ‘जनक’ माना जाता है।
  • लॉर्ड वेलेजली ने 1800 में कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की थी ताकि सिविल सेवा के लिए युवाओं को शिक्षित किया जा सके।
    • लेकिन कंपनी के निदेशकों ने 1806 में इसे हटाकर इंग्लैंड के हेलेबरी में ईस्ट इंडियन कॉलेज की स्थापना की।
  • चार्टर अधिनियम 1853 ने संरक्षण प्रणाली को समाप्त कर दिया और खुली प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा की शुरुआत की।
  • भारतीय सिविल सेवा (ICS) के लिए प्रथम प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा 1855 में लंदन में आयोजित की गई थी।
  • सत्येन्द्रनाथ टैगोर ICS पास करने वाले प्रथम भारतीय थे (1864)।
  • 1922 से भारतीय सिविल सेवा परीक्षा भारत में आयोजित की जाने लगी।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 309 संसद और राज्य विधानसभाओं को भर्ती और सेवा शर्तों को विनियमित करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 310 के अनुसार, संघ और राज्य के सिविल सेवक राष्ट्रपति या राज्यपाल की प्रसादपर्यंत पद पर बने रहते हैं।
  • अनुच्छेद 311 सिविल सेवकों को मनमाने बर्खास्तगी से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 312 अखिल भारतीय सेवाओं जैसे IAS, IPS और IFS के निर्माण की प्रक्रिया को परिभाषित करता है।
  • अनुच्छेद 315 से 323 तक संघ (UPSC) और प्रत्येक राज्य (SPSC) के लिए लोक सेवा आयोगों की स्थापना का प्रावधान है।

शासन में सिविल सेवाओं की भूमिका

  • सेवा वितरण: ये कल्याणकारी योजनाओं का प्रशासन करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सार्वजनिक सेवाएं अंतिम लाभार्थियों तक पहुँचें।
  • कानून और व्यवस्था बनाए रखना: सिविल सेवक कानून का पालन कर शांति, न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं तथा कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करते हैं।
  • चुनाव: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है, साथ ही केंद्र एवं राज्यों में सत्ता के सुचारू हस्तांतरण में भी।
  • निरंतर प्रशासन: कई बार जब राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ, तब सिविल सेवाओं ने प्रशासन को बिना बाधा के जारी रखा।
  • नीति निर्माण: ये सरकार को नीति निर्माण में परामर्श देते हैं और राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा बनाई गई नीतियों को लागू करते हैं।

सिविल सेवाओं द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ

  • राजनीतिक पक्षपात: कभी-कभी सिविल सेवकों की निष्पक्षता की कमी से महत्वपूर्ण कार्यों में राजनीतिक पक्षपात उत्पन्न होता है।
    • इसका कारण और परिणाम नौकरशाही के सभी पहलुओं में बढ़ती राजनीतिक दखलंदाजी है, जैसे पदस्थापन एवं स्थानांतरण।
  • विशेषज्ञता की कमी: सामान्य प्रशासनिक पृष्ठभूमि वाले कैरियर नौकरशाह तकनीकी चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता से वंचित हो सकते हैं।
  • लालफीताशाही: अत्यधिक प्रक्रियात्मक औपचारिकताएं निर्णय लेने में देरी करती हैं और समय पर सेवा वितरण में बाधा डालती हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ: उच्च दबाव वाले वातावरण और लंबे कार्य घंटे सिविल सेवकों की मानसिक स्थिति को प्रभावित करते हैं।
  • नवाचार का प्रतिरोध: कठोर प्रशासनिक संस्कृति प्रयोग और नई प्रथाओं को अपनाने से हतोत्साहित करती है।
  • पुराने नियम और प्रक्रियाएं: कई सेवा नियम उपनिवेशकालीन विरासत हैं जो आधुनिक शासन की आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं हैं।

नौकरशाही की दक्षता बढ़ाने के लिए शासन सुधार

  • मिशन कर्मयोगी राष्ट्रीय कार्यक्रम: भारत सरकार का प्रमुख कार्यक्रम, जिसे 2020 में सिविल सेवकों के प्रशिक्षण हेतु शुरू किया गया। इसका उद्देश्य सिविल सेवाओं को ‘नियम आधारित’ से ‘भूमिका आधारित’ और नागरिक केंद्रित कार्यप्रणाली में बदलना है।
  • सिविल सेवाओं में लैटरल एंट्री: विषय विशेषज्ञता लाने और प्रशासन में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए।
  • ई-गवर्नेंस पहलें:
    • CPGRAMS – शिकायत निवारण के लिए केंद्रीकृत सार्वजनिक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली।
    • SPARROW – प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए।
    • सेवा रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण।

निष्कर्ष

  •  सिविल सेवक भारत की विकास और शासन की दिशा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिन्हें प्रायः”विकसित भारत के वास्तुकार” कहा जाता है। 
  • हालाँकि इसे इसकी पेशेवरता और संस्थागत स्थिरता के लिए सराहा गया है, लेकिन यह देरी, प्रक्रियात्मक कठोरता एवं आधुनिक आवश्यकताओं के अनुकूलन जैसी चुनौतियों का भी सामना करता है। 
  • पारदर्शिता, दक्षता और जवाबदेही को सुदृढ़ करके नौकरशाही भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली के एक प्रभावी स्तंभ के रूप में कार्य करना जारी रख सकती है।

Source: TH

 

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