पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- भारत द्वारा 2026 में विश्व चक्रीय अर्थव्यवस्था मंच (World Circular Economy Forum) की मेजबानी से पहले, फ़िनलैंड प्रमुख भारतीय शहरों में रोडशो आयोजित करेगा ताकि चक्रीय अर्थव्यवस्था के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके तथा व्यापारिक अवसरों का अन्वेषण किया जा सके।
चक्रीय अर्थव्यवस्था क्या है?
- चक्रीय अर्थव्यवस्था (CE) उत्पादन का एक मॉडल है जो उत्पाद जीवन चक्र के सभी चरणों — कच्चे माल के निष्कर्षण और निर्माण से लेकर निपटान एवं पुन: उपयोग तक — अपशिष्ट को कम करने या समाप्त करने को प्राथमिकता देता है।

- भारत की चक्रीय अर्थव्यवस्था का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक इसका बाजार मूल्य 2 ट्रिलियन डॉलर होगा और यह 1 करोड़ रोजगार सृजित करेगी।
चक्रीय अर्थव्यवस्था का महत्व
- आर्थिक अवसर: UNDP का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल अपनाने से 2030 तक 4.5 ट्रिलियन डॉलर के आर्थिक लाभ उत्पन्न हो सकते हैं, साथ ही उत्सर्जन कम होगा और स्थायी हरित नौकरियाँ बनेंगी।
- रोज़गार सृजन: पुनर्चक्रण, मरम्मत, पुनर्निर्माण और सतत उत्पाद डिज़ाइन में रोजगार के अवसरों का विस्तार करता है।
- प्रतिस्पर्धात्मक लाभ: चक्रीय मॉडल अपनाने वाले व्यवसायों को बाज़ार में बढ़त मिलती है क्योंकि उपभोक्ता सतत उत्पादों को अधिक पसंद करते हैं।

चक्रीय अर्थव्यवस्था में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका
- स्वच्छ भारत मिशन (SBM-U): 3R (Reduce, Reuse, Recycle) सिद्धांतों के साथ शहरी अपशिष्ट प्रबंधन को सुदृढ़ करना।
- गोबर-धन योजना: बायोगैस और जैविक अपशिष्ट प्रसंस्करण के माध्यम से अपशिष्ट-से-धन पहलों को बढ़ावा देना।
- यह योजना वर्तमान में भारत के कुल जिलों के 67.8% को कवर करती है, और फरवरी 2025 तक 1008 बायोगैस संयंत्र पूरी तरह से चालू हैं।
- ई-वेस्ट प्रबंधन नियम (2022): इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट निपटान में चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं को सुदृढ़ करना।
- प्लास्टिक के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): उद्योगों को प्लास्टिक अपशिष्ट की जवाबदेही लेने के लिए प्रोत्साहित करना।
- भारत ने 2022 में सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया।
- 12वाँ क्षेत्रीय 3R और चक्रीय अर्थव्यवस्था मंच: मार्च 2025 में जयपुर, भारत में आयोजित हुआ, जो सतत अपशिष्ट प्रबंधन और चक्रीय अर्थव्यवस्था पहलों में क्षेत्रीय सहयोग का एक महत्वपूर्ण माइलस्टोन है।
चक्रीय अर्थव्यवस्था लागू करने में चुनौतियाँ
- तकनीकी विशेषज्ञता: कई व्यवसाय, नगरपालिकाएँ और नागरिक चक्रीय अर्थव्यवस्था सिद्धांतों से अपरिचित हैं तथा इन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए तकनीकी ज्ञान की कमी है।
- उच्च प्रारंभिक निवेश लागत: पुनर्चक्रण अवसंरचना या सतत उत्पाद डिज़ाइन जैसी चक्रीय प्रणालियाँ स्थापित करने के लिए भारी पूंजी की आवश्यकता होती है।
- असमान कॉर्पोरेट अपनाना: भारत की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा बनाने वाले लघु एवं मध्यम उद्यम (SMEs) अभी तक शामिल नहीं हैं, जिससे क्षेत्रों में संक्रमण असमान है।
- अपर्याप्त प्रवर्तन नीति: नीतियाँ मौजूद होने के बावजूद, कमजोर प्रवर्तन और सीमित प्रोत्साहन अपनाने की गति को धीमा करते हैं।
आगे की राह
- चक्रीय अर्थव्यवस्था की अवधारणाओं को बड़े निगमों से आगे सभी उद्योग स्तरों तक पहुँचाने के लिए “ट्रिकल-डाउन प्रभाव” की आवश्यकता है।
- उत्पादों की मरम्मत एवं पुन: उपयोग को बढ़ावा दें ताकि उनके जीवनचक्र को बढ़ाया जा सके और संसाधन खपत को कम किया जा सके।
- पुनर्चक्रण प्रक्रियाओं में सुधार करें ताकि संचय और पर्यावरण प्रदूषण को रोका जा सके, विशेषकर विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) पहलों के माध्यम से।
Source: TH
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