पाठ्यक्रम: GS3/ ऊर्जा
संदर्भ
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सरकार परमाणु क्षेत्र को निजी खिलाड़ियों के लिए खोलने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
परिचय
- परंपरागत रूप से भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र केवल राज्य-स्वामित्व वाली न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) और इसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम (BHAVINI) द्वारा ही संचालित किए गए हैं।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देने के लिए सरकार ने प्रमुख विधानों में संशोधन का प्रस्ताव रखा है;
- परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 – परमाणु ऊर्जा विकास और विनियमन के लिए ढांचा।
- नाभिकीय क्षति हेतु नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 – परमाणु घटनाओं के लिए क्षतिपूर्ति तंत्र सुनिश्चित करता है।
| परमाणु ऊर्जा क्या है? – परमाणु ऊर्जा वह ऊर्जा है जो नाभिकीय अभिक्रियाओं के दौरान निकलती है, चाहे विखंडन (परमाणु नाभिक का विभाजन) से हो या संलयन (परमाणु नाभिक का विलय) से। नाभिकीय विखंडन में, यूरेनियम या प्लूटोनियम जैसे भारी परमाणु नाभिक हल्के नाभिकों में विभाजित हो जाते हैं और बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। इस प्रक्रिया का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में किया जाता है। भारत में परमाणु ऊर्जा क्षमता की स्थिति – देश में वर्तमान स्थापित परमाणु ऊर्जा क्षमता 8,180 मेगावाट है, जो 24 परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में फैली हुई है। सरकार ने 2047 तक देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता को 100 गीगावाट तक बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। – क्षमता विस्तार: गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में कुल 8 गीगावाट क्षमता वाले 10 नए रिएक्टर निर्माणाधीन हैं। – अनुमोदन: अमेरिका के सहयोग से आंध्र प्रदेश में 6×1208 मेगावाट का परमाणु संयंत्र। |
निजी क्षेत्र की भागीदारी के लाभ
- तीव्र क्षमता विस्तार: निजी निवेश परमाणु ऊर्जा वृद्धि के लिए आवश्यक वित्तीय अंतर को समाप्त करने में सहायता करेगा।
- प्रौद्योगिकी उन्नति: निजी कंपनियों के साथ सहयोग नवाचार को बढ़ावा देगा और वैश्विक विशेषज्ञता लाएगा।
- लागत दक्षता: प्रतिस्पर्धी बोली और निजी भागीदारी परियोजना लागत एवं देरी को कम करने में सहायता करेगी।
- ऊर्जा सुरक्षा: परमाणु ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि भारत को जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता करेगी।
निजी क्षेत्र की भागीदारी से जुड़ी चिंताएँ
- नियामक बाधाएँ: निजी क्षेत्र की भागीदारी सक्षम करने के लिए वर्तमान कानूनों में संशोधन आवश्यक है।
- उच्च पूंजी आवश्यकता: परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में लंबी अवधि और बड़े प्रारंभिक निवेश शामिल होते हैं, जो निजी खिलाड़ियों को हतोत्साहित करते हैं।
- दायित्व संबंधी चिंताएँ: नाभिकीय क्षति हेतु नागरिक दायित्व अधिनियम ऑपरेटरों पर उच्च दायित्व लगाता है, जिससे निजी निवेश जोखिमपूर्ण हो जाता है।
- सुरक्षा और संरक्षा: परमाणु ऊर्जा में सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल की आवश्यकता होती है, और निजी कंपनियों को रिएक्टर संचालित करने की अनुमति देने के लिए बेहतर नियामक निगरानी आवश्यक है।
- जन धारणा: परमाणु सुरक्षा, अपशिष्ट प्रबंधन और विकिरण जोखिमों को लेकर जनता का विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
सरकारी कदम
- भारत ने छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) के विकास के लिए 20,000 करोड़ रुपये का R&D मिशन घोषित किया है।
- भारत 2033 तक कम से कम पाँच स्वदेशी विकसित रिएक्टरों की तैनाती का लक्ष्य रख रहा है।
- NPCIL और NTPC ने देश में परमाणु ऊर्जा सुविधाओं के विकास के लिए एक पूरक संयुक्त उद्यम (JV) समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
- यह JV ASHVINI नाम से परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण, स्वामित्व और संचालन करेगा, जिसमें आगामी 4×700 MWe PHWR माही-बांसवाड़ा राजस्थान परमाणु ऊर्जा परियोजना भी शामिल है।
आगे की राह
- स्पष्ट नियामक ढांचा: सुरक्षा, अनुपालन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक सुदृढ़ नियामक वातावरण स्थापित करना, जवाबदेही एवं राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं को संबोधित करना।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): ऐसी साझेदारियों को बढ़ावा देना जहाँ सरकार निगरानी बनाए रखे, जबकि निजी खिलाड़ी संचालन, नवाचार और निवेश संभालें, जिससे हितों का संतुलन सुनिश्चित हो।
- क्रमिक कार्यान्वयन: पायलट परियोजनाओं और छोटे पैमाने की पहलों से शुरुआत करना ताकि निजी क्षेत्र की भागीदारी का परीक्षण हो सके तथा बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन से पहले जोखिम प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
Source: AIR
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संक्षिप्त समाचार 01-12-2025