पाठ्यक्रम: GS2/ अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संदर्भ
- पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच शांति वार्ता के विफल होने से लंबे समय से विवादित डूरंड रेखा पर फिर से ध्यान केंद्रित हुआ है, जो दक्षिण एशिया की सबसे संवेदनशील और विवादित सीमाओं में से एक है।
डूरंड रेखा का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- डूरंड रेखा लगभग 2,640 किलोमीटर लंबा सीमांत है, जो पश्चिम में ईरान की सीमा से लेकर पूर्व में चीन की सीमा तक फैला है।
- यह काराकोरम पर्वत, हिंदू कुश श्रृंखला और रेगिस्तान (रेगिस्तान) से होकर गुजरती है।
- इसे 1893 में ब्रिटिश भारत के विदेश सचिव सर हेनरी मॉर्टिमर डूरंड और अफ़ग़ानिस्तान के अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच हुए समझौते के अंतर्गत निर्धारित किया गया था।
- इस समझौते ने पश्तून जनजातीय भूमि को विभाजित कर दिया, जातीय समुदायों को अलग कर दिया और बलूचिस्तान का नियंत्रण ब्रिटिश भारत को सौंप दिया।

विभाजन के बाद के विकास
- पाकिस्तान ने डूरंड रेखा को अपनी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में अपनाया।
- अफ़ग़ानिस्तान ने, हालांकि, इस समझौते की वैधता को अस्वीकार कर दिया, यह तर्क देते हुए कि यह औपनिवेशिक दबाव का परिणाम था, सीमित अवधि का था और कभी भी अफ़ग़ान जनता द्वारा स्वीकार नहीं किया गया।
- पश्तूनिस्तान की मांग: दोनों ओर के पश्तूनों ने पश्तूनिस्तान नामक एक स्वतंत्र राज्य की मांग की, जिससे पाकिस्तान–अफ़ग़ानिस्तान संबंध जटिल हो गए।
- तालिबान का दृष्टिकोण: पूर्ववर्ती अफ़ग़ान सरकारों की तरह, तालिबान भी डूरंड रेखा को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देने से मना करता है।
पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच हालिया तनाव
- पाकिस्तान द्वारा सीमा पर बाड़ लगाना: पाकिस्तान ने 2017 में डूरंड रेखा पर बाड़ लगाना शुरू किया ताकि विद्रोह और अवैध पारगमन को रोका जा सके।
- अफ़ग़ानिस्तान इसे एकतरफा और अवैध कदम मानता है।
- शांति वार्ता का विफल होना: तुर्की और क़तर द्वारा मध्यस्थता की गई पाकिस्तान–तालिबान वार्ता का नवीनतम दौर विफल रहा, जिसके साथ सीमा पार गोलीबारी और प्रतिशोधी अभियान हुए।
क्षेत्र पर प्रभाव
- अफ़ग़ानिस्तान पर आर्थिक दबाव: पाकिस्तान के माध्यम से पारगमन व्यापार पर अफ़ग़ानिस्तान की भारी निर्भरता किसी भी बंदी को दैनिक वाणिज्य और राहत कार्यों के लिए विनाशकारी बना देती है।
- पाकिस्तान के प्रभाव का क्षरण: अस्थिरता पाकिस्तान की महत्वाकांक्षा को खतरे में डालती है कि वह दक्षिण एशिया को मध्य एशिया से जोड़ने वाला व्यापार गलियारा बने।
- भारत के लिए रणनीतिक अवसर: अफ़ग़ानिस्तान भारत के साथ (चाबहार बंदरगाह और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर–दक्षिण परिवहन गलियारे के माध्यम से) निकट आर्थिक संबंधों का पीछा कर सकता है, जिससे पाकिस्तान को दरकिनार किया जा सके।
- जन-जन के बीच तनाव: सीमा पर बसे परिवार, गाँव और स्थानीय बाज़ार इन व्यवधानों से सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं।
- आतंक फैलाव पर सुरक्षा चिंताएँ: डूरंड रेखा पर अस्थिरता क्षेत्र में हथियारों, नशीले पदार्थों और आतंक वित्तपोषण के प्रवाह को बढ़ाती है।
- लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे समूहों ने ऐतिहासिक रूप से अफ़ग़ानिस्तान–पाकिस्तान अस्थिरता का उपयोग पुनर्गठन के लिए किया है, जिससे भारत के लिए जोखिम उत्पन्न होते हैं।
आगे की राह
- पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को गलतफहमी एवं प्रतिशोधी वृद्धि को रोकने के लिए नियमित सुरक्षा तथा सीमा-प्रबंधन वार्ता को संस्थागत बनाना चाहिए।
- परस्पर सहमत प्रोटोकॉल के तहत सीमा पार खोलना व्यापार को स्थिर करेगा और मानवीय संकट को कम करेगा।
- जनजातीय बुजुर्गों, नागरिक समाज और सीमा समुदायों को शामिल करने वाले विश्वास-निर्माण उपाय स्थानीय तनावों को प्रबंधित करने में सहायता कर सकते हैं।
निष्कर्षात्मक टिप्पणियाँ
- डूरंड रेखा के साथ अशांति गहरे मुद्दों को दर्शाती है जैसे औपनिवेशिक विरासत, जातीय विखंडन, पाकिस्तान की दबावपूर्ण कूटनीति और लगातार असुरक्षा।
- स्थायी शांति के लिए, दोनों देशों को निरंतर राजनयिक जुड़ाव, क्षेत्रीय संवेदनशीलताओं का सम्मान और सहयोगी सुरक्षा तंत्र की आवश्यकता है।
Source: TH
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