भारत और विश्व में गन्ने की विभिन्न भूमिकाएँ

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि

संदर्भ 

  • हाल ही में किए गए अध्ययन ““जंगली सक्करम प्रजातियों के जीनोमिक पदचिह्न गन्ने के वशीकरण, विविधीकरण और आधुनिक प्रजनन का पता लगाते हैं” में ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, चीन, फ्रांस, फ्रेंच पोलिनेशिया, भारत, जापान एवं अमेरिका से 390 गन्ने की किस्मों के जीनोम का विश्लेषण किया गया।

निष्कर्ष 

  • ये पौधे विभिन्न जीनों के संकर थे, जिनमें अनेक गुणसूत्र (पॉलीप्लॉइडी) पाए गए।
    • ऐसी पॉलीप्लॉइडी व्यावसायिक परिवहन के कारण हुई, जब मानव प्रजनकों ने गन्ने को विभिन्न राज्यों में ले जाकर बेचा। 
    • पॉलीप्लॉइडी वह वंशानुगत स्थिति है जिसमें दो से अधिक पूर्ण गुणसूत्र सेट होते हैं। 
  • जीन विश्लेषण से शोधकर्ताओं ने पाया कि अरुणाचल प्रदेश में सबसे विविध गन्ने की नस्लें पाई जाती हैं। 
  • लेखकों ने गन्ने की रासायनिक संरचना और उसकी संभावित जैविक गतिविधियों पर चर्चा की, चिकित्सा में इसके अनुप्रयोगों का अध्ययन किया तथा भविष्य के शोध की संभावित दिशा को रेखांकित किया।

भारत में गन्ना उत्पादन 

  • 2024-2025 में लगभग 4,400 लाख टन गन्ने का उत्पादन हुआ, विशेषकर 13 राज्यों में। 
  • भारत में गन्ना मुख्यतः दो क्षेत्रों में उगाया जाता है: उप-उष्णकटिबंधीय उत्तर और उष्णकटिबंधीय दक्षिण।
    • उत्तर का क्षेत्र उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब को शामिल करता है, जबकि दक्षिण का क्षेत्र महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश को कवर करता है। 
    • 2018-2019 से 2023-2024 तक उत्पादन में शीर्ष पाँच राज्य थे: उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात। 
  • भारत विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता और दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक रहा है।

जलवायु परिस्थितियाँ

  •  गन्ना 20°C से 35°C तापमान पर अच्छी तरह विकसित होता है और इसे 75 से 150 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। 
  • यह उपजाऊ और अच्छी तरह से जल निकासी वाली मृदा पसंद करता है तथा पर्याप्त धूप की आवश्यकता होती है। 
  • पकने एवं कटाई के दौरान ठंडी, शुष्क ऋतु आदर्श होती है।

चुनौतियाँ

  • जल-गहन फसल: गन्ने को प्रति वर्ष 1,500–2,500 मिमी जल की आवश्यकता होती है; अधिकांश खेती भूजल सिंचाई पर निर्भर करती है, जिससे विशेषकर महाराष्ट्र और यूपी में कमी होती है।
  • कम उत्पादन और क्षेत्रीय भिन्नताएँ: राज्यों में सिंचाई सुविधाओं की असमानता, मृदा की गुणवत्ता की समस्याएँ और खराब बीज गुणवत्ता के कारण उत्पादन में भारी अंतर होता है।
  • जलवायु संवेदनशीलता: गन्ना तापमान, वर्षा पैटर्न और आर्द्रता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
    • अनियमित मानसून, सूखा, हीटवेव एवं बाढ़ सुक्रोज़ सामग्री और कुल उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
  • मिट्टी की उर्वरता में गिरावट: लगातार एक ही फसल उगाने और अत्यधिक रासायनिक उर्वरक उपयोग से मृदा में पोषक तत्व असंतुलन, कार्बनिक पदार्थ की कमी, मृदा की लवणता एवं क्षारीयता बढ़ जाती है।
  • कीट और रोग: प्रमुख समस्याएँ हैं – बोरर, व्हाइट ग्रब्स, पायरीला और रेड रॉट रोग।
  • श्रम की कमी: गन्ने की खेती में रोपाई, कटाई और लोडिंग के लिए गहन श्रम की आवश्यकता होती है।
  • चीनी मिलों द्वारा भुगतान में देरी: राज्य परामर्श मूल्य (SAP) और उचित एवं पारिश्रमिक मूल्य (FRP) प्रायः मिलों की वित्तीय क्षमता से सामंजस्यशील नहीं हैं। मूल्य विवादों ने व्यापक विरोध को जन्म दिया है।
  • कटाई के बाद हानि: गन्ने की मौसमी प्रकृति लॉजिस्टिक चुनौतियाँ उत्पन्न करती है, क्योंकि कटाई के 24 घंटे से अधिक की देरी से सुक्रोज़ की भारी हानि होती है।
  • एथेनॉल के लिए विचलन की चुनौतियाँ: एथेनॉल उत्पादन के लिए बढ़ती मांग कभी-कभी चीनी और एथेनॉल क्षेत्रों के बीच प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करती है।

सरकारी पहलें

  • उचित एवं पारिश्रमिक मूल्य (FRP): केंद्र सरकार गन्ना नियंत्रण आदेश, 1966 के अंतर्गत FRP घोषित करती है ताकि किसानों को न्यूनतम गारंटीकृत मूल्य मिल सके।
    • 2025-26 के लिए, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 10.25% की मूल रिकवरी दर पर ₹355 प्रति क्विंटल FRP को स्वीकृति दी।
  • पीएम-कुसुम सिंचाई समर्थन हेतु: गन्ना किसानों के लिए सिंचाई लागत कम करने हेतु सौर पंपों को बढ़ावा देना।
    • खेती के लिए विश्वसनीय, कम लागत वाले जल तक पहुँच को बढ़ाता है।
  • फसल विविधीकरण और अंतरफसल: सरकार, ICAR सहयोग के माध्यम से, मृदा के क्षरण और किसान आय वृद्धि को संबोधित करने के लिए अतिरिक्त अंतरफसल को बढ़ावा दे रही है।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देशभर में कई गन्ना अनुसंधान संस्थान भी स्थापित किए हैं, जो गन्ने की किस्म और उत्पादन में सुधार के लिए शास्त्रीय वनस्पति एवं आणविक जैविक विधियों का उपयोग करते हैं।
  • सहकारी चीनी मिल सुदृढ़ीकरण योजना: सरकार ने NCDC (राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम) के माध्यम से सहकारी चीनी मिलों के लिए ₹10,000 करोड़ की ऋण योजना स्थापित की। यह योजना समर्थन करती है:
    • एथेनॉल उत्पादन संयंत्रों की स्थापना।
    • को-जनरेशन संयंत्रों की स्थापना।
    • कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करना।
  • संशोधित एथेनॉल ब्याज सबवेंशन योजना: सहकारी चीनी मिलों के लिए जो वर्तमान गन्ना-आधारित एथेनॉल संयंत्रों को बहु-फीडस्टॉक संयंत्रों में बदल रही हैं, सरकार पाँच वर्षों के लिए प्रति वर्ष 6% या वसूले गए ब्याज का 50% (जो भी कम हो) ब्याज सबवेंशन प्रदान करती है।
  • फसल बीमा – प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): गन्ना एक बीमायोग्य वार्षिक वाणिज्यिक फसल के रूप में PMFBY के तहत योग्य है, जो प्राकृतिक आपदाओं, कीटों, रोगों और स्थानीय जोखिमों से उत्पादन हानि के खिलाफ व्यापक कवरेज प्रदान करती है।

आगे की राह 

  • व्यापक सरकारी ढाँचा उत्पादन दक्षता, किसान आय, मिल व्यवहार्यता, पर्यावरणीय स्थिरता और बाज़ार स्थिरता को संबोधित करने वाला बहुआयामी दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है। 
  • ये उपाय सामूहिक रूप से भारत की गन्ना उत्पादकता को वर्तमान 70 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 2030 तक 100-110 टन प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखते हैं।

Source: TH

 

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