पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन
संदर्भ
- वैश्विक शक्ति संरचनाएँ भौतिक संपत्तियों (तेल, सामरिक मार्ग) से डिजिटल संप्रभुता की ओर स्थानांतरित हो गई हैं। किसी राष्ट्र का डिजिटल पदचिह्न अब धन का प्राथमिक स्रोत और कूटनीति का सबसे प्रभावी उपकरण है।
डिजिटल संप्रभुता
- इसमें कानूनी और नियामक संरचनाएँ बनाना शामिल है जो डेटा निर्यात पर संप्रभु नियंत्रण और राष्ट्रीय डिजिटल क्षेत्र को विनियमित करने के अबाध अधिकार सुनिश्चित करती हैं। यह भौतिक स्तर (अवसंरचना, प्रौद्योगिकी), कोड स्तर (मानक, नियम और डिज़ाइन) और डेटा स्तर (स्वामित्व, प्रवाह और उपयोग) है।
- डिजिटल संप्रभुता के स्तंभ:
- डेटा संप्रभुता: भारत में उत्पन्न डेटा भारतीय कानूनों के अंतर्गत संग्रहीत, संसाधित और शासित होता है।
- प्रौद्योगिकीय संप्रभुता: चिप्स, नेटवर्क, एआई, साइबर सुरक्षा और क्लाउड में स्वदेशी क्षमता।
- प्लेटफ़ॉर्म संप्रभुता: विदेशी सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर निर्भरता कम करना।
- साइबर संप्रभुता: साइबरस्पेस को सुरक्षित करने और राष्ट्रीय डिजिटल सीमाओं के अंदर कानून लागू करने की क्षमता।
- नियामक संप्रभुता: स्वतंत्र डिजिटल नीति और नियम-निर्माण।
डिजिटल संप्रभुता क्यों महत्वपूर्ण है?
- भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था: भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था 2025 तक $1 ट्रिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे यह दुनिया के सबसे बड़े डेटा उत्पादकों में से एक बन जाएगा।
- 800 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के साथ, उत्पन्न, संसाधित और संग्रहीत व्यक्तिगत डेटा की मात्रा अत्यधिक है।
- इसने वैश्विक प्रौद्योगिकी दिग्गजों को आकर्षित किया है, लेकिन डेटा संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रश्न भी उठाए हैं।
- राष्ट्रीय सुरक्षा: जब भारतीय नागरिकों का महत्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा विदेशी क्षेत्रों में संग्रहीत होता है, तो यह विदेशी कानूनों और संभावित विदेशी निगरानी के अधीन हो जाता है, जिससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे में कमजोरियाँ पैदा होती हैं।
- बढ़ते साइबर खतरे: ऐसे युग में जहाँ डेटा उल्लंघन और साइबर युद्ध वास्तविक खतरे हैं, राष्ट्रीय सीमाओं के अंदर महत्वपूर्ण डेटा रखने से बेहतर प्रतिक्रिया और सुरक्षा उपायों पर अधिक नियंत्रण सुनिश्चित होता है।
- आर्थिक हित: यह प्रभावी रूप से एक मजबूत घरेलू डेटा केंद्र उद्योग बनाता है।
- इससे न केवल रोजगार और तकनीकी विशेषज्ञता उत्पन्न होती है बल्कि विदेशी अवसंरचना पर निर्भरता भी कम होती है।
- बेहतर डेटा प्रबंधन: देश के अंदर डेटा रखने से इसे अधिक आसानी से निगरानी और ऑडिट किया जा सकता है ताकि दुरुपयोग या उल्लंघन रोका जा सके।
- वैश्विक शक्ति गतिशीलता: मजबूत डिजिटल क्षमताओं वाले राष्ट्र वैश्विक शासन में नियम-निर्माता के रूप में उभरते हैं।
डिजिटल संप्रभुता की चुनौतियाँ
- बिग टेक प्रभुत्व: अमेरिकी और चीनी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर अत्यधिक निर्भरता।
- वैश्विक परस्पर जुड़ाव: इंटरनेट की सीमाहीन प्रकृति विनियमन को कठिन बनाती है।
- वैश्विक व्यापार प्रभाव: चिंता है कि सख्त स्थानीयकरण आवश्यकताएँ व्यवसायों के लिए परिचालन लागत बढ़ा सकती हैं, जिससे नवाचार और विदेशी निवेश प्रभावित हो सकता है।
- अनुपालन बोझ: व्यवसायों को कई स्थानीयकरण कानूनों का पालन करने में कानूनी और नियामक जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है, विशेषकर सीमा-पार डेटा हस्तांतरण में।
- प्रौद्योगिकीय निर्भरता: भारत सेमीकंडक्टर, दूरसंचार उपकरण, ऑपरेटिंग सिस्टम, क्लाउड आर्किटेक्चर आयात करता है।
- कुशल कार्यबल की कमी: साइबर सुरक्षा, चिप डिज़ाइन, क्वांटम कंप्यूटिंग में कमी।
सरकारी पहल
- डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक (मसौदा, 2024): इसका उद्देश्य बिग टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकना है और बड़े डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म द्वारा आत्म-पसंदगी, डेटा दुरुपयोग एवं गेटकीपिंग को नियंत्रित करना है।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023: यह उपयोगकर्ताओं के लिए डेटा संरक्षण अधिकार स्थापित करता है और सहमति-आधारित डेटा प्रसंस्करण और दुरुपयोग पर दंड अनिवार्य करता है।
- प्रतिस्पर्धा (संशोधन) अधिनियम, 2023: यह भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की शक्तियों को मजबूत करता है।
- डिजिटल बाजार एकाधिकार को लक्षित करता है और प्रतिस्पर्धा-विरोधी आचरण की तीव्र जाँच सक्षम करता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: शिकायत निवारण, ट्रेसबिलिटी और सामग्री मॉडरेशन में पारदर्शिता अनिवार्य करता है।
- यह उपयोगकर्ता हानि या गलत सूचना के लिए प्लेटफ़ॉर्म जवाबदेही भी सुनिश्चित करता है।
- ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC): यह ई-कॉमर्स को लोकतांत्रिक बनाने के लिए एक खुला, इंटरऑपरेबल नेटवर्क बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- डिजिटल इंडिया पहल: समावेशी डिजिटल पहुँच, साइबर सुरक्षा और डिजिटल साक्षरता पर केंद्रित — नागरिकों को सूचित डिजिटल विकल्प बनाने के लिए सशक्त बनाना।
आगे की राह
- संप्रभुता और खुलेपन का संतुलन: प्रभावी डिजिटल संप्रभुता ढाँचे को वैध सुरक्षा और गोपनीयता चिंताओं को वैश्विक सहयोग एवं इंटरऑपरेबिलिटी की आवश्यकता के साथ संतुलित करना चाहिए।
- गोपनीयता एक मानव अधिकार के रूप में: यह दृष्टिकोण सरकारों को नागरिकों की गरिमा और संवैधानिक परंपराओं के आधार पर उच्च संरक्षण मानक स्थापित करने में सक्षम बनाता है, न कि केवल बाज़ार दक्षता दबावों पर।
- बिग टेक का विनियमन: पारदर्शी, लोकतांत्रिक रूप से जवाबदेह तंत्रों के माध्यम से जो डिजिटल एकाधिकार को रोकते हुए नवाचार की रक्षा करें।
- सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: स्पष्ट कानूनों के साथ जो निषिद्ध डेटा हस्तांतरण और अपवादों की शर्तों को परिभाषित करते हैं, पारदर्शिता और निगरानी तंत्र के साथ ताकि निगरानी के दुरुपयोग को रोका जा सके।
निष्कर्ष
- भारत को दृढ़ता से डिजिटल संप्रभुता के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए—ऐसी कानूनी और नियामक संरचनाएँ बनाकर जो डेटा निर्यात पर संप्रभु नियंत्रण सुनिश्चित करें तथा राष्ट्रीय डिजिटल क्षेत्र को विनियमित करने के अबाध अधिकार बनाए रखें।
- भारत का डेटा संरक्षण और स्थानीयकरण दृष्टिकोण उसकी संप्रभु आकांक्षाओं एवं उसके विशाल डिजिटल पदचिह्न को प्रबंधित करने की व्यावहारिक चुनौतियों दोनों को दर्शाता है।
Source: IE