पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे
संदर्भ
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के कर्मचारियों और आशा कार्यकर्ताओं द्वारा छत्तीसगढ़, हरियाणा एवं केरल सहित कई राज्यों में हाल ही में किए गए आंदोलनों ने भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा कार्यबल में गंभीर संरचनात्मक संकट को उजागर किया है।
भारत की प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली में कार्यबल
- प्रमाणित सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ASHAs): ये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के अंतर्गत सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवक हैं।
- ये समुदाय एवं स्वास्थ्य प्रणाली के बीच सेतु का कार्य करती हैं और मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती हैं, टीकाकरण को बढ़ावा देती हैं तथा रोग निगरानी में सहायता करती हैं।
- इन्हें स्वयंसेवक के रूप में वर्गीकृत किया गया है और प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन के रूप में ₹5,000–₹10,000 प्रति माह का औसत भुगतान किया जाता है।
- आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (AWWs): ये एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) के अंतर्गत कार्य करती हैं और प्रारंभिक बाल देखभाल, पोषण एवं पूर्व-विद्यालय शिक्षा प्रदान करने का उद्देश्य रखती हैं।
- ये कुपोषण से निपटने और बाल विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) के डॉक्टर: ये ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में नैदानिक देखभाल की प्रथम पंक्ति के रूप में कार्य करते हैं तथा बाह्य रोगी सेवाओं, सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों एवं आपातकालीन देखभाल के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- सहायक नर्स दाई (ANMs): ये मातृ एवं नवजात देखभाल, टीकाकरण व परिवार नियोजन सेवाएं प्रदान करती हैं, और उप-स्वास्थ्य केंद्रों तथा PHCs में तैनात होती हैं।
- ये ग्रामीण पहुंच और निवारक देखभाल में अहम भूमिका निभाती हैं।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के संविदा कर्मचारी: इनमें नर्सें, लैब तकनीशियन, फार्मासिस्ट और सहायक कर्मचारी शामिल हैं, जिन्हें अल्पकालिक संविदाओं पर नियुक्त किया जाता है तथा जिनकी रोजगार की सुरक्षा सीमित होती है।
- सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (CHOs): इन्हें 2018 में स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों को सुदृढ़ करने के लिए शुरू किया गया था।
- ये संविदा पर नियुक्त होते हैं और निश्चित वेतन व प्रोत्साहनों के संयोजन से भुगतान प्राप्त करते हैं।
- इनका चयन डेंटल, नर्सिंग या आयुष पृष्ठभूमि से किया जाता है।
- ग्राम स्वास्थ्य नर्सें: ये प्रायः आदिवासी और दूरस्थ क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ताओं के साथ कार्य करती हैं।
- ये स्वास्थ्य डेटा एकत्र करती हैं, घर-घर जाकर जांच करती हैं और टीकाकरण अभियानों में सहायता करती हैं।
भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में कार्यबल संकट
- कर्मचारियों की कमी: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) प्रति 10,000 जनसंख्या पर न्यूनतम 44.5 स्वास्थ्य कर्मियों की सिफारिश करता है।
- हालांकि, नीति आयोग के अनुसार भारत लगभग 22 प्रति 10,000 पर पिछड़ रहा है।
- लगभग 10–15% ANM पद और 20–25% डॉक्टरों के पद रिक्त हैं।
- इसी तरह, नर्सों और मिडवाइफ़ की कमी गंभीर बनी हुई है, तथा 20% से अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHCs) बिना किसी स्टाफ नर्स के कार्य कर रहे हैं।
- कम मूल्यांकन और कम वेतन: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के अंतर्गत ‘परिवर्तन के वाहक’ के रूप में नामित होने के बावजूद आशा कार्यकर्ता भुगतान में देरी और सीमित कैरियर प्रगति का सामना करती हैं।
- स्वयंसेवक प्रणाली की असमानता: आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ समय के साथ बढ़ी हैं — जैसे कि गैर-संचारी रोगों की जांच, उपशामक देखभाल एवं जनसंख्या सर्वेक्षण — लेकिन उनके कार्यभार के अनुपात में पारिश्रमिक नहीं बढ़ा है।
- प्रवासन और प्रतिभा पलायन: 69,000 से अधिक भारतीय प्रशिक्षित डॉक्टर और 56,000 नर्सें OECD देशों में कार्यरत हैं।
- खराब कार्य स्थितियाँ, कम वेतन और सीमित शोध अवसर कुशल पेशेवरों को विदेश जाने के लिए प्रेरित करते हैं।
- लैंगिक आयाम: आशा, ANM और AWW जैसी अग्रिम पंक्ति की भूमिकाओं में महिलाएं प्रमुख हैं, लेकिन उन्हें प्रणालीगत अवमूल्यन एवं वेतन असमानता का सामना करना पड़ता है।
- सुरक्षा, परिवहन और मातृत्व लाभों की कमी ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी स्थायित्व को कठिन बनाती है।
संबंधित प्रयास और पहलें
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) का विस्तार: NHM ने सार्वजनिक स्वास्थ्य में मानव संसाधनों को काफी बढ़ाया है, जिससे मातृ मृत्यु दर, तपेदिक और सिकल सेल एनीमिया में कमी आई है।
- ASHAs, ANMs और संविदा कर्मचारियों के प्रशिक्षण और भर्ती में निवेश ने दूरस्थ क्षेत्रों में सेवा वितरण का विस्तार किया है।
- आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (PM-ABHIM): यह प्राथमिक और गंभीर देखभाल अवसंरचना को सुदृढ़ करने पर केंद्रित है।
- इसमें ब्लॉक-स्तरीय सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों, एकीकृत जिला प्रयोगशालाओं और स्वास्थ्य केंद्रों के लिए वित्त पोषण शामिल है।
- कार्यबल विकास के लिए नियामक सुधार: WHO कार्यकारी बोर्ड में भारत के हस्तक्षेप ने एकल चिकित्सा मॉडल से बहु-विषयक ढांचे की ओर बदलाव पर बल दिया।
- नई दिशानिर्देश एक सक्षम, सहानुभूतिपूर्ण और गतिशील स्वास्थ्य कार्यबल के निर्माण का लक्ष्य रखते हैं।
- हेल्थकेयर वर्कफोर्स मोबिलिटी प्लेटफॉर्म: ‘वन अर्थ वन हेल्थ’ पहल के अंतर्गत भारतीय स्वास्थ्य पेशेवरों के वैश्विक सहयोग और गतिशीलता को बढ़ावा देता है।
आगे की राह: स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ बनाना
- भारत को सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यबल योजना के दृष्टिकोण को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। प्रमुख सुधारों में शामिल होना चाहिए:
- भर्ती मॉडल की पुनः समीक्षा: स्थायित्व और लचीलापन को मिलाकर सतत रोजगार संरचनाओं की ओर बढ़ना।
- प्रोत्साहनों का युक्तिकरण: कार्यभार और प्रदर्शन से जुड़े पारदर्शी एवं न्यायसंगत भुगतान प्रणाली विकसित करना।
- कैरियर मार्ग: सामुदायिक स्वास्थ्य कैडर के लिए संरचित विकास के अवसर बनाना।
- संविदा और नियमित कर्मचारियों का संतुलन: आवश्यक सेवाओं के लिए अस्थायी नियुक्तियों पर अत्यधिक निर्भरता से बचना।
- स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा का समाधान: कार्यस्थल पर बढ़ती हिंसा की घटनाओं से स्वास्थ्य पेशेवरों की सुरक्षा के लिए विधायी सुधारों पर विचार किया जा रहा है।
- इसमें बेहतर सुरक्षा प्रोटोकॉल और कानूनी सुरक्षा उपाय शामिल हैं।
- एक सशक्त और प्रेरित स्वास्थ्य कार्यबल व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है। अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें उन प्रणालीगत असमानताओं का सामना करें जो लंबे समय से भारत की अग्रिम पंक्ति की स्वास्थ्य प्रणाली को प्रभावित करती रही हैं।
निष्कर्ष
- भारत का स्वास्थ्य सेवा कार्यबल संकट केवल एक सांख्यिकीय कमी नहीं है — यह गहरी प्रणालीगत असमानताओं और शासन संबंधी चुनौतियों को दर्शाता है।
- इसका समाधान समन्वित राष्ट्रीय कार्रवाई, नीति समरसता और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ही संभव है, ताकि प्रत्येक नागरिक — चाहे वह किसी भी क्षेत्र या आय वर्ग से हो — गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्राप्त कर सके।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में कार्यबल संकट में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर चर्चा कीजिए। इन चुनौतियों से निपटने और समान स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के लिए किन नीतिगत उपायों की तत्काल आवश्यकता है? |
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