CSE मूल्यांकन में पाया गया कि भारतीय मृदाएँ प्रमुख पोषक तत्वों की गंभीर कमी से ग्रस्त हैं

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि

संदर्भ

  • विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) द्वारा सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि भारत के 64% मृदा के नमूनों में नाइट्रोजन की कमी है और लगभग आधे नमूनों में जैविक कार्बन की कमी है।

मुख्य निष्कर्ष

  • भारत की मृदाएँ आवश्यक पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन और जैविक कार्बन की गंभीर कमी से ग्रस्त हैं।
    • ये कमियाँ फसल उत्पादकता और जलवायु परिवर्तन शमन दोनों के लिए गंभीर प्रभाव डालती हैं।
  • स्वस्थ मृदा का एक महत्वपूर्ण कार्य इसकी जैविक कार्बन को संग्रहित करने की क्षमता है, जो जलवायु परिवर्तन शमन के लिए आवश्यक है।
    • भारतीय मृदाएँ अनुमानित रूप से प्रति वर्ष 6–7 टेराग्राम कार्बन को अवशोषित कर सकती हैं।
  • मृदा निगरानी की सीमित पहुंच: 2015 में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के अंतर्गत शुरू की गई मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) योजना मृदा में 12 रासायनिक मापदंडों की जांच करती है और किसानों को पोषक तत्व आधारित सिफारिशें देती है।
    • सम्मेलन में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि वर्तमान निगरानी ढांचा अधूरा है।
  • उर्वरक की अक्षमता और नीति की खामियाँ: CSE विश्लेषण से पता चला कि वर्तमान उर्वरक उपयोग मृदा में नाइट्रोजन या जैविक कार्बन के स्तर को सुधारने में विफल है।
    • यह अनुप्रयोग पद्धतियों में अक्षमता को दर्शाता है और सुधारात्मक नीति उपायों की आवश्यकता को इंगित करता है।
  • जबकि जैविक खेती की योजनाएं हैं, उनका प्रभाव सीमित है, यह मूल्यांकन रेखांकित करता है।

मृदा का स्वास्थ्य और उसका महत्व

  • मृदा का स्वास्थ्य उस निरंतर क्षमता को दर्शाता है जिसके द्वारा मृदा एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में कार्य करती है जो पौधों, जानवरों और मनुष्यों को बनाए रखती है।
    • भारत की 328 मिलियन हेक्टेयर भूमि में से 96–120 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र की मृदा , विशेष रूप से जंगलों, कृषि भूमि एवं चरागाहों में, पहले से ही ‘अवनत’ के रूप में वर्गीकृत की गई है (NAAS 2010)(स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, ISRO 2021)।
  • पोषक तत्व उपलब्धता: स्वस्थ मृदाएँ नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं, जो पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक हैं।
  • जैव विविधता: स्वस्थ मृदाएँ जीवों की विशाल विविधता को आश्रय देती हैं। ये सभी पोषक चक्र, अपघटन और मृदा निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • मिट्टी की संरचना: “अच्छी संरचित मृदा” में जल निकासी, वायु की मुक्त गति और जड़ों की निर्बाध वृद्धि के लिए आपस में जुड़ी हुई छिद्रों की भरपूर मात्रा होती है।
  • जल धारण क्षमता: जब मृदा की संरचना खराब होती है, तो वह छिद्रों में जल को रोक नहीं पाती। जल सघन परतों से टकराता है और अंदर नहीं जा पाता।
    • इससे अधिक जल बहाव होता है, और परिणामस्वरूप अधिक कटाव, बाढ़, प्रदूषण और मृदा में कम जल धारण होता है।
  • कार्बन अवशोषण: स्वस्थ मिट्टियाँ CO₂ को पकड़ने और संग्रहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • अधिक जैविक कार्बन वाली मृदाएँ सूक्ष्मजीवों की समृद्ध जनसंख्या को समर्थन देती हैं और उच्च गुणवत्ता वाली फसलों के विकास के लिए अधिक पोषक तत्व प्रदान करती हैं।
मृदा का स्वास्थ्य और उसका महत्व
सरकारी पहलें
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (2015): किसानों को मृदा के पोषक तत्वों की स्थिति और उर्वरक सिफारिशें प्रदान करती है।
नीम कोटेड यूरिया (NCU): यूरिया के उपयोग को नियंत्रित करने, फसल को नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ाने और उर्वरक लागत को कम करने के लिए शुरू की गई योजना।
परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): जैविक खेती को बढ़ावा देती है।
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA): मृदा और जल संरक्षण तथा एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन को प्रोत्साहित करता है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY): राज्य-स्तरीय हस्तक्षेपों के माध्यम से मृदा के स्वास्थ्य को समर्थन देती है।
राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना (NPOF): कम्पोस्टिंग और जैव उर्वरकों के उपयोग के लिए क्षमता निर्माण करती है।

आगे की राह

  • बायोचार – जो बायोमास के पायरोलीसिस द्वारा उत्पन्न होता है – एक उभरता हुआ मृदा संशोधन है जो उर्वरता बढ़ा सकता है, नमी बनाए रख सकता है और जैविक सामग्री बढ़ाकर कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर सकता है।
    • लेकिन भारत में बायोचार के लिए कोई मानकीकृत उत्पादन प्रोटोकॉल नहीं हैं।
  • मृदा परीक्षण अवसंरचना और किसानों की जागरूकता को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  • औद्योगिक अपशिष्ट निर्वहन को नियंत्रित करें और सिंचाई प्रबंधन में सुधार करें।
  • जलवायु-लचीली कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दें।
  • पोषक तत्वों की पुनर्स्थापना के लिए फसल चक्र और अंतरवर्ती फसल प्रणाली को प्रोत्साहित करें।

Source: DTE

 

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