पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध; वैश्विक समूहन
संदर्भ
- बहुपक्षीयता वैश्विक सहयोग के लिए आज भी अनिवार्य बनी हुई है, विशेष रूप से वर्तमान भू-राजनीतिक तनावों, जलवायु संकटों और बढ़ते राष्ट्रवाद के बीच।
| संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) – इसकी स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र (UN) के छह प्रमुख अंगों में से एक के रूप में की गई थी। – यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र संस्था है जिसमें सभी 193 सदस्य देशों को समान प्रतिनिधित्व प्राप्त है, प्रत्येक के पास एक मत होता है। ![]() – यह न्यूयॉर्क (मुख्यालय) में प्रतिवर्ष अपनी सामान्य परिचर्चा के लिए मिलती है — एक उच्च-स्तरीय कार्यक्रम जिसमें विश्व नेता वैश्विक चुनौतियों पर भाषण देते हैं और अपने राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को प्रस्तुत करते हैं। – यह वैश्विक मानदंडों को आकार देने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, हालांकि इसकी प्रस्तावनाएं बाध्यकारी नहीं होतीं। बहुपक्षीयता का समर्थन करने वाले प्रमुख कार्य – यह अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की पूरी श्रृंखला पर बहुपक्षीय वार्ता के लिए एक अद्वितीय मंच प्रदान करती है। – यह अंतरराष्ट्रीय कानून के मानकीकरण और संहिताकरण में केंद्रीय भूमिका निभाती है। – यह जलवायु परिवर्तन, डिजिटल शासन और महामारी की तैयारी जैसे उभरते वैश्विक मुद्दों पर उच्च-स्तरीय विषयगत बहसों का आयोजन करती है। |
बहुपक्षीयता का संकट
- अमेरिका की प्रतिबद्धता में गिरावट: एक समय में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का प्रमुख वास्तुकार और संरक्षक रहा अमेरिका अब बहुपक्षीय जुड़ाव से दूर होता जा रहा है।
- वॉशिंगटन ने मानवाधिकार परिषद और यूनेस्को जैसे प्रमुख UN निकायों से स्वयं को पृथक कर लिया है।
- कुछ UN कार्यक्रमों में लगभग 80% की कटौती ने वैश्विक संचालन को कमजोर किया है।
- गाज़ा से संबंधित प्रस्तावों पर वीटो और प्रतिबंधात्मक वीज़ा नीतियाँ पारंपरिक कूटनीतिक नेतृत्व से पीछे हटने को दर्शाती हैं।
- वैश्विक संकट की स्थिति: विश्व कई परस्पर जुड़े संकटों का सामना कर रही है — यूक्रेन और सूडान में युद्धों का समाधान नहीं दिखता; जलवायु परिवर्तन तीव्र हो रहा है; असमानता बढ़ रही है; और तकनीकी परिवर्तन शासन से आगे निकल रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने चेतावनी दी है कि एक ‘वैश्विक संकट’ उत्पन्न हो गया है, जिसमें भू-राजनीतिक विभाजन सामूहिक कार्रवाई को रोकते हैं।
- बहुपक्षीयता की अवधारणा — जैसा कि कोफी अन्नान ने कहा था, ‘बिना पासपोर्ट वाली समस्याओं’ को हल करना — खतरे में प्रतीत होती है।
- शक्ति प्रतिद्वंद्विता और विखंडन: अमेरिका–चीन प्रतिद्वंद्विता ने वैश्विक विभाजन को गहरा किया है, दोनों शक्तियाँ द्विपक्षीय या ‘मिनी-लैटरल’ व्यवस्थाओं को प्राथमिकता देती हैं।
- रूस का यूक्रेन पर आक्रमण और गाज़ा में इज़राइल की अवहेलना ने अंतरराष्ट्रीय प्रवर्तन की सीमाओं को उजागर किया है।
- यहां तक कि यूरोप के अंदर भी, राष्ट्रवाद पारंपरिक सहमति निर्माण को चुनौती देता है।
- दार्शनिक संकट: संस्थाओं से परे, यह संकट वैधता का भी है।
- समाजशास्त्री डेविड गुडहार्ट द्वारा ‘एनीवेयर’ (वैश्विक नागरिक) और ‘समवेयर’ (स्थानीय पहचान से जुड़े) के बीच का अंतर इस विभाजन को दर्शाता है।
- ब्रेक्ज़िट से लेकर ट्रंपवाद तक की लोकलुभावन आंदोलनों ने वैश्विक अभिजात वर्ग और दूरस्थ संस्थानों के प्रति मोहभंग को दर्शाया है।
बहुपक्षीयता: आदर्श बनाम वास्तविकता
- मूल रूप से, बहुपक्षीयता संप्रभु समानता, पारस्परिक सम्मान और कानून के शासन पर आधारित है।
- फिर भी संयुक्त राष्ट्र की संरचना में संरचनात्मक असमानता निहित है:
- सुरक्षा परिषद की वीटो शक्ति पांच देशों को विशेषाधिकार देती है।
- महासभा की प्रस्तावनाएं प्रायः बाध्यकारी नहीं होतीं।
- नौकरशाही जड़ता और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता
- इसकी विश्वसनीयता को कमजोर करती हैं। मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, सतत विकास लक्ष्य और पेरिस जलवायु समझौता सभी बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से ही अस्तित्व में आए।
- संयुक्त राष्ट्र की शांति स्थापना, मानवीय राहत और संधि निर्माण की पहलें आज भी महत्वपूर्ण हैं — भले ही उनका प्रभाव कम होता दिखे।
सुधार, नवीकरण और प्रासंगिकता
- UN80 पहल: इसका उद्देश्य जनादेशों को सुव्यवस्थित करना, अपव्यय को कम करना और विश्वास को पुनः स्थापित करना है।
- सुधार अब विकल्प नहीं, बल्कि अस्तित्व का प्रश्न है। संस्थागत नवीकरण के बिना, संयुक्त राष्ट्र अप्रासंगिकता की ओर बढ़ सकता है।
- वैधता की पुनर्स्थापना: बहुपक्षीयता के आगामी चरण को केवल राजनयिकों से नहीं, बल्कि नागरिकों से जुड़ना होगा।
- यह दिखाना होगा कि वैश्विक सहयोग ठोस लाभ — रोजगार , स्थिरता और गरिमा — प्रदान करता है, न कि केवल अमूर्त घोषणाएं।
- मॉडल और चेतावनी की कहानियाँ: जापान और हंगरी जैसे देशों में राष्ट्रवादी या अलगाववादी प्रवृत्तियाँ उन्हें वैश्विक उथल-पुथल से अलग दिखा सकती हैं।
- लेकिन ये मॉडल दीर्घकालिक रूप से हाशिए पर जाने का जोखिम उठाते हैं, जो संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करता है — एक सैद्धांतिक लेकिन व्यावहारिक बहुपक्षीयता।
- पुनर्जीवन और सुधार: अनुकूलन की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, UNGA ने अपनी कार्यप्रणाली को पुनर्जीवित करने और प्रभावशीलता बढ़ाने के प्रयास शुरू किए हैं। पुनर्जीवन एजेंडा पर बल दिया गया है:
- अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही।
- महासभा अध्यक्ष की भूमिका को सशक्त बनाना।
- वैश्विक संकटों पर शीघ्र प्रतिक्रिया देने की क्षमता को बढ़ाना।
आगे की राह: नेतृत्व और साझा जिम्मेदारी
- बहुपक्षीयता के नवीकरण के लिए नेतृत्व का वितरण आवश्यक है — केवल अमेरिका और चीन से नहीं, बल्कि उभरती शक्तियों एवं नागरिक समाज से भी।
- उदाहरण के लिए, भारत सतत विकास, प्रौद्योगिकी शासन और वैश्विक समानता में नेतृत्व के माध्यम से एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी व्यवस्था को आकार देने की क्षमता रखता है।
- जैसा कि डैग हैमरस्कोल्ड ने प्रसिद्ध रूप से कहा था, संयुक्त राष्ट्र ‘मानवता को स्वर्ग ले जाने के लिए नहीं, बल्कि नरक से बचाने के लिए बनाया गया था’।
- यह आज भी एकमात्र मंच है जहां सभी राष्ट्र, चाहे कितने भी असमान हों, मिलकर साझा खतरों का सामना कर सकते हैं।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) की 80वीं वर्षगांठ के मद्देनजर, वर्तमान वैश्विक चुनौतियां किस सीमा तक संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं की प्रासंगिकता की पुष्टि करती हैं या उसका खंडन करती हैं? |
