वर्धित कृषि ऋण के माध्यम से ग्रामीण विकास को सुदृढ़ बनाना

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था/ कृषि/ समावेशी विकास

संदर्भ

  • केंद्रीय वित्त मंत्री ने कर्नाटक ग्रामीण बैंक (KaGB) के बल्लारी में प्रदर्शन की समीक्षा करते हुए ग्रामीण बैंकों से आग्रह किया कि वे “नए ग्रामीण भारत” की बदलती वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि ऋण वितरण को बढ़ाएं।

भारत में कृषि ऋण 

  • कृषि ऋण के स्रोत: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (जैसे भारतीय स्टेट बैंक), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs), सहकारी संस्थाएं और NABARD (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) अधिकांश औपचारिक कृषि ऋण प्रदान करते हैं। 
  • कृषि ऋण के प्रकार:
    • अल्पकालिक ऋण: बीज, उर्वरक और कीटनाशकों जैसी कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं के लिए।
    • मध्यम और दीर्घकालिक ऋण: उपकरण, सिंचाई प्रणाली और भूमि विकास के लिए।

कृषि ऋण में प्रोत्साहन की आवश्यकता

  • इनपुट लागत में वृद्धि: बीज, उर्वरक, मशीनरी और सिंचाई की लागत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे किसानों के लिए सुलभ एवं समय पर ऋण की आवश्यकता बढ़ गई है।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विविधीकरण: आधुनिक ग्रामीण भारत पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर डेयरी, मत्स्य पालन, खाद्य प्रसंस्करण और एग्री-टेक स्टार्टअप जैसे सहायक क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा है — जिन्हें अधिक वित्तीय सहायता की आवश्यकता है।
  • छोटे और सीमांत किसानों की अपर्याप्त पहुंच: भारत के लगभग 85% किसान छोटे और सीमांत हैं, जिनमें से कई उच्च ब्याज दरों वाले अनौपचारिक ऋणदाताओं पर निर्भर हैं, जिससे औपचारिक ऋण की पहुंच बढ़ाने की आवश्यकता स्पष्ट होती है।
  • एफपीओ और MSMEs के लिए समर्थन: किसान उत्पादक संगठन (FPOs) और ग्रामीण MSMEs को आपूर्ति श्रृंखला को सुदृढ़ करने एवं मूल्यवर्धन बढ़ाने के लिए कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है, जिसके लिए ग्रामीण बैंकों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
  • जलवायु और तकनीकी बदलाव: जलवायु-सहिष्णु कृषि, यंत्रीकरण और डिजिटल कृषि समाधानों को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, जिससे ऋण की पहुंच परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारक बन जाती है।

कृषि ऋण को बढ़ावा देने के लिए सरकारी उपाय

  • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना: किसानों को उनकी विविध वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त और समय पर ऋण प्रदान करने के लिए डिज़ाइन की गई है।
  • प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL): बैंकों को समायोजित शुद्ध बैंक ऋण (ANBC) का 18% कृषि क्षेत्र को ऋण देने का निर्देश दिया गया है, जिससे क्षेत्र में स्थिर ऋण प्रवाह सुनिश्चित होता है।
  • ब्याज अनुदान योजना (ISS): विशेष रूप से आपदाओं या फसल की देरी के दौरान किसानों को रियायती ऋण प्रदान करती है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में तरलता में सुधार होता है।
  • NABARD पुनर्वित्त सहायता: NABARD ग्रामीण वित्तीय संस्थानों को कृषि और ग्रामीण विकास परियोजनाओं के लिए कम लागत पर पुनर्वित्त प्रदान करता है।
  • एफपीओ का गठन: सरकार ने किसानों की सामूहिक सौदेबाजी शक्ति को बढ़ाने और ऋण की पहुंच सुधारने के लिए NABARD और लघु किसान कृषि व्यवसाय संघ (SFAC) द्वारा समर्थित 10,000 FPOs के गठन का लक्ष्य रखा है।
  • डिजिटल पहल: डिजिटल KCC, एग्रीस्टैक और जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) एकीकरण जैसी योजनाएं ऋण वितरण को सरल बना रही हैं और रिसाव को कम कर रही हैं।

कृषि ऋण में चुनौतियाँ

  • क्षेत्रीय असमानताएँ: ऋण वितरण असमान है — दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों को प्रमुख हिस्सा मिलता है, जबकि पूर्वी एवं उत्तर-पूर्वी क्षेत्र वंचित रहते हैं।
  • अल्पकालिक ऋण पर निर्भरता: अधिकांश कृषि ऋण अल्पकालिक होते हैं, जिससे सिंचाई, भंडारण और यंत्रीकरण जैसी दीर्घकालिक अवसंरचना में निवेश सीमित होता है।
  • पट्टेदार किसानों और भूमिहीन श्रमिकों का बहिष्करण: औपचारिक भूमि शीर्षक की कमी के कारण लाखों लोग संस्थागत ऋण तक पहुंच नहीं बना पाते।
  • ग्रामीण बैंकों में बढ़ते एनपीए: ऋण चूक और खराब वसूली दरें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) एवं सहकारी संस्थाओं की वित्तीय स्थिति को प्रभावित करती हैं।
  • अप्रभावी ऋण वितरण: नौकरशाही प्रक्रियाएं, ऋण वितरण में देरी और अपर्याप्त ऋण मूल्यांकन योजनाओं की प्रभावशीलता को सीमित करते हैं।

आगे की राह

  • ग्रामीण वित्तीय संस्थानों को सशक्त बनाना: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों को पूंजी समर्थन, डिजिटल अवसंरचना एवं जोखिम प्रबंधन ढांचे से सशक्त करें।
  • सहायक गतिविधियों के लिए ऋण को बढ़ावा देना: ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी, मत्स्य पालन, खाद्य प्रसंस्करण और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में ऋण विस्तार करें ताकि आय में विविधता लाई जा सके।
  • पट्टेदार और महिला किसानों को शामिल करना: संयुक्त देयता समूहों (JLGs) और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से पहुंच को सुविधाजनक बनाएं ताकि वंचित वर्गों को औपचारिक ऋण के दायरे में लाया जा सके।
  • प्रौद्योगिकी का एकीकरण: एआई आधारित क्रेडिट स्कोरिंग, उपग्रह डेटा और डिजिटल रिकॉर्ड का उपयोग करके ऋण लक्ष्यीकरण में सुधार करें तथा धोखाधड़ी को कम करें।
  • नीतिगत समन्वय: वित्त मंत्रालय, NABARD और राज्य सरकारों के प्रयासों का समन्वय करें ताकि प्रभावी ऋण पहुंच सुनिश्चित हो सके तथा क्षेत्रीय असमानताओं को कम किया जा सके।

Source: BS

 

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