माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण से मुहाना/नदीमुख (Estuarine) की मत्स्यपालन को खतरा

पाठ्यक्रम:GS3/पर्यावरण

समाचार में

  • हाल ही में हुए एक अध्ययन में गोवा के मंडोवी मुहाने पर मछलियों में व्यापक रूप से माइक्रोप्लास्टिक संदूषण पाया गया।

माइक्रोप्लास्टिक्स

  • ये 5 मिलीमीटर से भी छोटे प्लास्टिक के टुकड़े या रेशे होते हैं—कुछ तो मानव आँखों से भी दिखाई नहीं देते।
  • ये विभिन्न रूपों में आते हैं, जैसे मोती, टुकड़े, छर्रे, फिल्म, फोम और रेशे।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • माइक्रो प्लास्टिक प्रदूषण भारत में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रहा है, जिसमें प्रजनन क्षमता में कमी, हार्मोनल असंतुलन और कैंसर व दीर्घकालिक बीमारियों का खतरा बढ़ना शामिल है।
  • माइक्रो प्लास्टिक जल अपवाह, सीवेज और वायुमंडलीय निक्षेपण के माध्यम से पारिस्थितिक तंत्र में घुसपैठ करते हैं।
  • छोटी मछलियाँ माइक्रो प्लास्टिक को निगल लेती हैं, जो फिर जैव संचयन और पोषण स्थानांतरण के माध्यम से खाद्य श्रृंखला में ऊपर की ओर बढ़ते हैं।
  • दूषित समुद्री भोजन का सेवन करने वाले मनुष्यों के लिए स्वास्थ्य जोखिमों में प्रतिरक्षा प्रणाली की शिथिलता, प्रजनन संबंधी क्षति और कैंसर का खतरा बढ़ना शामिल है।

भारत में किए गए प्रयास

  • भारत ने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं:
    • एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध (जुलाई 2022): प्रतिबंधित वस्तुओं में प्लास्टिक कटलरी, स्ट्रॉ और पैकेजिंग फ़िल्में शामिल हैं।
    • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व : निर्माताओं को उपभोक्ता-पश्चात प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन करने का निर्देश देता है।
    • स्वच्छ भारत मिशन: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को व्यापक स्वच्छता लक्ष्यों में एकीकृत करता है।

चुनौतियाँ

  • भोजन और पानी में माइक्रोप्लास्टिक की पहचान के लिए मानकीकृत तरीकों का अभाव।
  • माइक्रोप्लास्टिक के खतरों के बारे में सीमित जन जागरूकता।
  • अपशिष्ट पृथक्करण और पुनर्चक्रण के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा।

निष्कर्ष और आगे की राह

  • भारत में माइक्रो प्लास्टिक प्रदूषण एक बढ़ता हुआ पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा है, जो जल, समुद्री जीवन एवं भोजन में पाया जाता है।
  • इससे निपटने के लिए, भारत को अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिए, जैव-निम्नीकरणीय विकल्पों का समर्थन करना चाहिए, अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना चाहिए तथा जन जागरूकता बढ़ानी चाहिए।
  • वैश्विक कार्रवाई में पिछड़ने के साथ, भारत के पास विज्ञान, नीति और सामुदायिक प्रयासों को मिलाकर एक समन्वित राष्ट्रीय रणनीति लागू करके नेतृत्व करने का अवसर है।

Source :TH

 

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