पाठ्यक्रम: GS2/IR
संदर्भ
- अफगानिस्तान के तालिबान विदेश मंत्री ने नई दिल्ली में विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भेंट की।
परिचय
- यह भारत और तालिबान शासन के बीच 2021 में सत्ता में आने के बाद प्रथम उच्च-स्तरीय राजनयिक बैठक है।
- उनकी यात्रा रूस में अफगानिस्तान पर आयोजित एक क्षेत्रीय बैठक के बाद हुई, जिसमें भारत, चीन, पाकिस्तान, ईरान और मध्य एशियाई देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
भारत–तालिबान राजनयिक संपर्क
- आतंकवाद संबंधी आश्वासन: अफगानिस्तान ने भारत को आश्वासन दिया कि वह किसी भी समूह को अपनी भूमि का उपयोग किसी अन्य देश के विरुद्ध करने की अनुमति नहीं देगा — यह भारत की आतंकवाद संबंधी चिंताओं के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा आश्वासन है।
- भारत का दूतावास पुनः खोलना: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने घोषणा की कि भारत काबुल में अपना पूर्ण दूतावास पुनः खोलेगा, जो 2022 में मानवीय और व्यापारिक उद्देश्यों के लिए स्थापित तकनीकी मिशन को अपग्रेड करेगा।
- राजनयिक परिप्रेक्ष्य: चीन, रूस, ईरान, पाकिस्तान और तुर्की सहित लगभग एक दर्जन देश पहले से ही काबुल में दूतावास चला रहे हैं।
- भारत का दूतावास पुनः खोलने का निर्णय उसके रणनीतिक और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एक संतुलित पुनः संपर्क रणनीति को दर्शाता है।
महत्व
- रणनीतिक संतुलन: यह कदम पाकिस्तान और चीन की बढ़ती उपस्थिति के बीच अफगानिस्तान में प्रभाव बनाए रखने के लिए भारत के व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- आतंकवाद विरोधी फोकस: भारत का अफगान भूमि का आतंकवाद के लिए उपयोग न होने पर बल देना लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूहों को लेकर उसकी चिंताओं को सीधे संबोधित करता है।
- राजनयिक मान्यता: भारत ने तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन यह संपर्क काबुल पर उसके नियंत्रण की वास्तविक स्वीकृति को दर्शाता है।
- क्षेत्रीय सहयोग: अफगान स्थिरता के लिए भारत की बहु-स्तरीय रणनीति को मॉस्को फॉर्मेट जैसे क्षेत्रीय मंचों में भागीदारी दर्शाती है।
भारत द्वारा तालिबान शासन से संपर्क करने के कारण
- रणनीतिक यथार्थवाद और भू-राजनीतिक प्रासंगिकता: 2021 से तालिबान का अफगानिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण उसे वास्तविक प्राधिकरण बनाता है; भारत के हितों की रक्षा के लिए संपर्क आवश्यक है।
- काबुल की अनदेखी करने से पाकिस्तान और चीन को क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने का अवसर मिलेगा।
- संपर्क सुनिश्चित करता है कि भारत अफगानिस्तान के भविष्य को आकार देने में एक प्रासंगिक क्षेत्रीय खिलाड़ी बना रहे।
- सुरक्षा चिंताएं: भारत को पाकिस्तान समर्थित समूहों से उत्पन्न सीमा पार आतंकवाद का साझा खतरा है।
- तालिबान ने भारत को आश्वासन दिया है कि अफगान भूमि का उपयोग अन्य देशों के विरुद्ध नहीं किया जाएगा — यह भारत की प्रमुख सुरक्षा मांग है।
- पूर्व निवेश और विकास परियोजनाओं की रक्षा: भारत ने अफगान बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य में 3 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है — जिसमें ज़रांज–डेलाराम राजमार्ग, सलमा (भारत–अफगानिस्तान मैत्री) बांध एवं संसद भवन शामिल हैं।
- संपर्क भारत को इन रुकी हुई परियोजनाओं की रक्षा और संभवतः पुनः आरंभ करने की अनुमति देता है।
- क्षेत्रीय शक्ति बदलावों की प्रतिक्रिया: चीन ने खनन और बुनियादी ढांचे के सौदों के माध्यम से अपनी उपस्थिति बढ़ाई है; रूस एवं ईरान भी तालिबान के साथ सक्रिय राजनयिक संबंध बनाए हुए हैं।
- जब क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी काबुल में प्रभाव सुदृढ़ कर रहे हैं, तब भारत अलग-थलग नहीं रह सकता।
- आर्थिक और संपर्क हित: अफगानिस्तान भारत की मध्य एशिया से संपर्क रणनीति में केंद्रीय भूमिका निभाता है, विशेष रूप से ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से।
- दीर्घकालिक संपर्क व्यापार गलियारों, ऊर्जा पहुंच और चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजनाओं का सामान करने में सहायक हो सकता है।
तालिबान के साथ भारत की संपर्क रणनीति
- मान्यता के बिना संपर्क: भारत ने काबुल में अपना दूतावास पुनः खोलने की घोषणा की, जो 2022 में स्थापित “तकनीकी मिशन” को अपग्रेड करेगा।
- एक चार्ज डी’अफेयर्स नियुक्त किया जाएगा — जो अंतरराष्ट्रीय सहमति तक तालिबान शासन की गैर-मान्यता को दर्शाता है।
- यह कदम भारत की भूमि पर उपस्थिति सुनिश्चित करता है, बिना रूस-चीन गुट के साथ संरेखित दिखे।
- भारत का संतुलन प्रयास: भारत ने मॉस्को फॉर्मेट की उस सहमति में भाग लिया कि अफगानिस्तान में कोई विदेशी सैन्य उपस्थिति नहीं होनी चाहिए।
- हालांकि, भारत सावधानी रखता है कि वह पूरी तरह से रूस या चीन के पक्ष में न दिखे।
- एक संतुलित दृष्टिकोण अमेरिका और पश्चिमी सहयोगियों के साथ टकराव से बचाता है।
- मानवाधिकार और यथार्थवाद: विगत संयुक्त बयानों के विपरीत, भारत ने मानवाधिकार मुद्दों को उठाने से स्वयं का बचाव किया।
- यह भारत की यथार्थवादी कूटनीति को दर्शाता है, आदर्शवादी हस्तक्षेपवाद को नहीं।
- यह परिवर्तन भारत के राष्ट्रीय हितों, सुरक्षा और आर्थिक विकास को प्राथमिकता देता है — एक बहुध्रुवीय एवं प्रायः अप्रत्याशित विश्व में।
निष्कर्ष
- 2021 से तालिबान का अफगान क्षेत्र पर नियंत्रण एक भू-राजनीतिक वास्तविकता है जिसे विश्व को स्वीकार करना होगा।
- भारत का संपर्क पाकिस्तान–चीन प्रभाव के बीच अफगानिस्तान में एक रणनीतिक उपस्थिति सुनिश्चित करता है।
- दूतावास का पुनः खुलना और सहयोग का नवीनीकरण भारत की विदेश नीति में एक व्यावहारिक बदलाव को दर्शाता है।
Source: TH
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