पाठ्यक्रम: GS3/आपदा प्रबंधन
संदर्भ
- भारत अब केवल प्रतिक्रियात्मक राहत प्रयासों तक सीमित नहीं है, बल्कि एक सक्रिय, बहु-स्तरीय रणनीति की ओर बढ़ रहा है जो रोकथाम, न्यूनीकरण, तैयारी एवं पुनर्प्राप्ति को एकीकृत करती है। यह जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न जटिल जोखिमों की बढ़ती समझ को दर्शाता है।
भारत की आपदा तैयारी
- भारत की आपदा तैयारी की रणनीति अब एक सुदृढ़ , बहु-स्तरीय ढांचे में विकसित हो चुकी है, जिसका नेतृत्व केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) करता है और जिसके केंद्र में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) है।
- यह रणनीति रोकथाम, न्यूनीकरण, तैयारी और प्रतिक्रिया पर बल देती है—यह सुनिश्चित करते हुए कि लचीलापन केवल प्रतिक्रियात्मक न हो, बल्कि राष्ट्रीय विकास में गहराई से समाहित हो, जो आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 में निहित है।
NDMA और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
- NDMA की स्थापना आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत की गई थी और यह पाँच प्रमुख प्रभागों के माध्यम से कार्य करता है:
- नीति एवं योजनाएँ
- न्यूनीकरण
- संचालन एवं संचार
- सूचना एवं प्रौद्योगिकी
- वित्त एवं प्रशासन
- इसका दृष्टिकोण है:
- एक तकनीक-आधारित, बहु-आपदा और बहु-क्षेत्रीय रणनीति के माध्यम से एक सुरक्षित एवं आपदा-लचीला भारत का निर्माण।
- केंद्र, राज्य, जिला और समुदाय स्तर पर सभी हितधारकों को सशक्त बनाना।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को विकास योजना में एकीकृत करना।
नीति में परिवर्तन: राहत से लचीलापन की ओर
- लचीलापन के लिए वित्तीय संरचना: 15वें वित्त आयोग द्वारा पाँच वर्षों में ₹2.28 लाख करोड़ ($30 बिलियन) का आवंटन सार्वजनिक वित्त को DRR के साथ संरेखित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
- राहत पर केंद्रित रहने के बजाय, आयोग ने धनराशि को चार श्रेणियों में विभाजित किया:
- तैयारी और क्षमता निर्माण (10%)
- न्यूनीकरण (20%)
- प्रतिक्रिया (40%)
- पुनर्निर्माण (30%)
- यह सुनिश्चित करता है कि लचीलापन आपदा प्रबंधन के प्रत्येक चरण में समाहित हो—प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली से लेकर पुनर्निर्माण प्रयासों तक।
- राहत पर केंद्रित रहने के बजाय, आयोग ने धनराशि को चार श्रेणियों में विभाजित किया:
- बजट से परियोजना पाइपलाइन तक निर्माण: आयोग ने DRR वित्तपोषण में दक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पाँच प्राथमिकता वाले क्षेत्र पहचाने:
- भारत के विविध क्षेत्रों में बहु-आपदा चुनौतियों को प्राथमिकता देना।
- वैज्ञानिक न्यूनीकरण अवधारणाओं को वित्तीय योजना में एकीकृत करना।
- केंद्र या राज्य की वर्तमान योजनाओं के साथ दोहराव से बचना।
- मंत्रालयों के बीच और केंद्र-राज्य समन्वय को सुदृढ़ करना।
- समयबद्ध परियोजना कार्यान्वयन के लिए हल्के नियामक तंत्र स्थापित करना।
- 2025 तक, सभी क्षेत्र- या आपदा-विशिष्ट परियोजनाओं के लिए अंतर-मंत्रालयी और केंद्र-राज्य मूल्यांकन समितियाँ कार्यरत थीं, जिससे एक पारदर्शी एवं विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण सुनिश्चित हुआ।
पुनर्निर्माण और न्यूनीकरण में प्रगति
- पुनर्निर्माण पहल: विगत दो वर्षों में, गृह मंत्रालय ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, असम और केरल के लिए ₹5,000 करोड़ के पुनर्निर्माण पैकेज स्वीकृत किए।
- ये परियोजनाएँ जलवायु-लचीले बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं से हुई हानि के आकलन पर केंद्रित हैं।
- प्रकृति-आधारित न्यूनीकरण कार्यक्रम: 20% न्यूनीकरण निधि के अंतर्गत ₹10,000 करोड़ ($1.2 बिलियन) की परियोजनाएँ स्वीकृत की गईं, जो प्रकृति-आधारित और सतत समाधान को बढ़ावा देती हैं।
- ये प्रयास राष्ट्रीय चक्रवात न्यूनीकरण कार्यक्रम (2011–22) पर आधारित हैं, जिसने चक्रवात आश्रयों, तटबंधों और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से तटीय संवेदनशीलता को सफलतापूर्वक कम किया।
- प्रमुख पहलें:
- शहरी बाढ़ को कम करने के लिए जल निकायों और हरित क्षेत्रों का पुनर्जीवन।
- रिमोट सेंसिंग और स्वचालित मौसम स्टेशनों के माध्यम से हिमनद झीलों की निगरानी।
- भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में ढलान स्थिरीकरण के लिए जैव-इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग।
- ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बील (आर्द्रभूमि) का पुनर्जीवन।
- वनाग्नि की रोकथाम के लिए ईंधन निकासी और जल निकायों की पुनर्स्थापना।
तैयारी और क्षमता निर्माण को सुदृढ़ करना
- संस्थागत और सामुदायिक प्रशिक्षण: तैयारी और क्षमता निर्माण निधि (₹5,000 करोड़) का उपयोग निम्नलिखित के लिए किया गया:
- अग्नि सुरक्षा अवसंरचना का आधुनिकीकरण।
- आपदा मित्र और युवा आपदा मित्र कार्यक्रमों के अंतर्गत 2.5 लाख स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) के माध्यम से अनुसंधान एवं प्रशिक्षण का विस्तार।
- NIDM अब आपदा प्रबंधन के 36 विषयों में मानकीकृत पाठ्यक्रम प्रदान करता है, जिसका उद्देश्य DRR शिक्षा को पंचायत स्तर तक मुख्यधारा में लाना है।
- ज्ञान नेटवर्क का विस्तार: 327-सदस्यीय विश्वविद्यालय नेटवर्क, NDRF अकादमी और राष्ट्रीय अग्नि सेवा कॉलेज के साथ मिलकर सार्वजनिक सेवकों को प्रशिक्षण देने, मॉक अभ्यास आयोजित करने तथा आपदा-विशिष्ट जागरूकता एवं स्कूल सुरक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
तटीय लचीलापन और संवेदनशील समुदाय
- ICDRI 2025 शिखर सम्मेलन में भारत ने तटीय क्षेत्रों और छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) की संवेदनशीलता को उजागर किया।
- चूंकि वैश्विक व्यापार का लगभग 90% समुद्र के माध्यम से होता है और तटीय GDP के 2030 तक दोगुना होने की संभावना है, इसलिए जोखिम भी अधिक हैं।
- भारत SIDS को लचीले बुनियादी ढांचे, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और जल सुरक्षा उपायों के साथ समर्थन दे रहा है, साथ ही सर्वोत्तम प्रथाओं के लिए एक वैश्विक डिजिटल भंडार का समर्थन कर रहा है।
प्रारंभिक चेतावनी और संचार प्रणालियों को सशक्त बनाना
- तकनीकी नवाचारों ने भारत की प्रारंभिक चेतावनी क्षमताओं को काफी बेहतर बना दिया है, जिससे हताहतों की संख्या में कमी आई है तथा सामुदायिक तैयारी में सुधार हुआ है।
- कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल (CAP) एक बहु-मीडिया प्रणाली है जो क्षेत्रीय भाषाओं में समय पर अलर्ट प्रदान करती है, जिससे दूरस्थ क्षेत्रों में भी अंतिम छोर तक संचार सुनिश्चित होता है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक नेतृत्व
- भारत की संयुक्त राष्ट्र के सेन्दाई फ्रेमवर्क फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के प्रति प्रतिबद्धता इसकी अंतरराष्ट्रीय वकालत में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
- भारत G-20, SCO, BIMSTEC और IORA पहलों में नेतृत्व कर रहा है।
- G-20 की अध्यक्षता के दौरान, भारत ने प्रथम डिजास्टर रिस्क रिडक्शन वर्किंग ग्रुप बनाया, जिसका फोकस था:
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली
- आपदा-लचीला अवसंरचना
- DRR के लिए वित्तपोषण
- लचीला पुनर्प्राप्ति
- प्रकृति-आधारित समाधान
- ये मंच भारत को सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान करने और जलवायु लचीलापन एवं सतत जोखिम प्रबंधन के लिए वैश्विक ढांचे विकसित करने में सहायता करते हैं।
निष्कर्ष
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण के प्रति भारत का दृष्टिकोण एक क्रांतिकारी परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है—प्रतिक्रियात्मक आपदा प्रतिक्रिया से सक्रिय लचीलापन निर्माण की ओर। सुदृढ़ वित्तीय नियोजन, वैज्ञानिक एकीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से, भारत एक भविष्य-तैयार आपदा जोखिम न्यूनीकरण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर रहा है।
- सामुदायिक भागीदारी, प्रकृति-आधारित समाधानों और तकनीकी नवाचार पर बल देकर, देश अपने जटिल आपदा परिदृश्य को उत्तरोत्तर जोखिम-मुक्त कर रहा है तथा जलवायु लचीलापन में एक वैश्विक नेता के रूप में अपनी स्थिति स्थापित कर रहा है।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] आपदा सहनशीलता के प्रति भारत के विकसित होते दृष्टिकोण का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। प्रतिक्रियात्मक राहत से सक्रिय जोखिम न्यूनीकरण की ओर बदलाव शासन, वित्त और सामुदायिक सहभागिता में व्यापक परिवर्तन को कैसे दर्शाता है? |
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