पाठ्यक्रम: GS3/ आपदा प्रबंधन, GS1/ भूगोल
संदर्भ
- IIT गांधीनगर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि भारत में फ्लैश फ्लड (अचानक आने वाली बाढ़) की बारम्बारता और तीव्रता में वृद्धि होती जा रही हैं।
फ्लैश फ्लड क्या हैं?
- फ्लैश फ्लड अचानक और तीव्र बाढ़ होती है जो भारी वर्षा की घटना के छह घंटे के अंदर उत्पन्न होती है। यह सामान्यतः उन क्षेत्रों में होती है जहाँ ढलान तीव्र होता है, जल निकासी प्रणाली कमजोर होती है, या मृदा पहले से ही संतृप्त या अत्यधिक सूखी होती है।

- नदी आधारित बाढ़ की तुलना में, फ्लैश फ्लड की चेतावनी का समय बहुत कम होता है, जिससे ये विशेष रूप से जानलेवा बन जाती हैं।
भारत में फ्लैश फ्लड का प्रभाव
- मानव और आजीविका पर प्रभाव: फ्लैश फ्लड अचानक आती हैं, जिससे अत्यधिक जानमाल की हानि होती है।
- 2023 में हिमाचल प्रदेश में आई फ्लैश फ्लड में 400 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और हजारों लोग विस्थापित हुए।
- सार्वजनिक सुविधाओं को हानि: फ्लैश फ्लड से विद्युत लाइनें, पेयजल प्रणाली और मोबाइल नेटवर्क क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे आपदा के पश्चात् पुनःस्थापन धीमा और महंगा हो जाता है।
- भूमि क्षरण: तीव्र प्रवाह से ऊपरी मृदा का कटाव होता है, उपजाऊता घटती है और नदियों व जलाशयों में गाद की मात्रा बढ़ जाती है।
- शहरी चुनौतियाँ: मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे शहरों में कंक्रीट की सतहों और अतिक्रमित जल निकासी नालों के कारण जल तीव्रता से प्रवाहित होता है, जिससे बाढ़ की स्थिति गंभीर हो जाती है।
सरकारी पहलें
- केंद्रीय जल आयोग (CWC) देश में बाढ़ पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी देने का प्रमुख संगठन है।
- भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने अमेरिकी राष्ट्रीय मौसम सेवा के साथ मिलकर दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए फ्लैश फ्लड गाइडेंस सिस्टम (FFGS) विकसित किया है।
- राष्ट्रीय हिमनद झील विस्फोट बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण कार्यक्रम (NGRMP) को केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में ₹150 करोड़ के बजट के साथ मंजूरी दी है।
सिफारिशें और अनुकूलन रणनीतियाँ
- फ्लैश फ्लड पूर्वानुमान: स्थलाकृति, जल निकासी, मृदा के आँकड़े और वास्तविक समय मौसम डेटा को एकीकृत करें।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: मृदा की आर्द्रता और स्थलाकृति को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र-विशिष्ट मॉडल विकसित करें।
- सामुदायिक स्तर पर चेतावनी: संवेदनशील जिलों में स्थानीय स्तर पर चेतावनी प्रणाली को बढ़ावा दें।
- भूमि उपयोग और शहरी नियोजन: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों (जैसे बाढ़ मैदान, तीव्र ढलान) में निर्माण पर प्रतिबंध लगाएं।
- जलवायु-लचीला अवसंरचना जैसे ऊँची सड़कें, जल पारगम्य फुटपाथ और जल निकासी नालियाँ बनाएं।
- आपदा तैयारी: बाढ़ जोखिम मानचित्रों को नियमित रूप से अपडेट करें और शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में मॉक ड्रिल आयोजित करें।
- नीतियों में जलवायु अनुकूलन: राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन ढांचे में जलवायु मॉडल को शामिल करें।
- प्रकृति-आधारित समाधान जैसे आर्द्रभूमि संरक्षण, वनीकरण और जलग्रहण क्षेत्र पुनर्स्थापन को बढ़ावा दें।
Source: IE
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