नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम (PCR अधिनियम) 1955 पर केंद्र सरकार की रिपोर्ट

पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन

संदर्भ

  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम (पीसीआर अधिनियम) 1955 के कार्यान्वयन पर केंद्र सरकार की 2022 की वार्षिक रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है।

2022 की रिपोर्ट द्वारा उजागर की गई चुनौतियाँ 

  • कम रिपोर्टिंग: केसों की कम संख्या जागरूकता की कमी, प्रतिशोध का भय, कानून का उपयोग करने में संकोच या एससी/एसटी अधिनियम को प्राथमिकता देने को दर्शा सकती है; यह जरूरी नहीं कि अस्पृश्यता की प्रथाओं में वास्तव में कमी आई हो। 
  • अधिक लंबित मामले और कमजोर सजा दरें: 2022 में पीसीआर अधिनियम के अंतर्गत 1,242 मामले न्यायालयों में लंबित थे। न्यायालयों में लंबित दर 97% से अधिक बनी हुई है, जो धीमी न्यायिक प्रक्रिया को दर्शाती है। 
  • अप्रभावी प्रवर्तन: अत्यधिक बरी होने और लंबित मामलों की दर जांच, साक्ष्य संग्रह, गवाह/पीड़ित संरक्षण और न्यायिक प्रक्रियाओं में कमियों की ओर संकेत करती है। 
  • कानूनों का ओवरलैप: एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की व्यापक कवरेज के कारण जाति आधारित अपराधों की अधिकांश अभियोजन प्रक्रिया उसी के अंतर्गत की जाती है, जिससे पीसीआर अधिनियम का उपयोग सीमित और कम गंभीर अपराधों तक रह गया है। 
  • राज्य स्तर पर पहल की कमी: कई राज्यों ने आवश्यक ढांचे या रिपोर्टिंग प्रणालियाँ स्थापित नहीं की हैं, जिससे अधिनियम के उद्देश्य कमजोर पड़ते हैं।

नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम (पीसीआर अधिनियम), 1955 

  • संविधान के अनुच्छेद 17 के अंतर्गत (26 जनवरी 1950 से लागू) अस्पृश्यता को कानूनी रूप से समाप्त कर दिया गया। 
  • इस संवैधानिक गारंटी को लागू करने के लिए 1955 में अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम पारित किया गया। 
  • 1976 में अधिनियम में व्यापक संशोधन कर इसे नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम (पीसीआर अधिनियम) नाम दिया गया, ताकि नागरिक अधिकारों के प्रवर्तन पर इसका ध्यान स्पष्ट हो।

पीसीआर अधिनियम की प्रमुख धाराएँ 

  • ‘नागरिक अधिकार’ की परिभाषा: संविधान के अनुच्छेद 17 के अंतर्गत अस्पृश्यता की समाप्ति के कारण किसी व्यक्ति को प्राप्त किसी भी अधिकार को नागरिक अधिकार कहा गया है। 
  • दंडनीय अपराध: मंदिर, कुएँ, दुकान, रेस्टोरेंट, सड़क, विद्यालय आदि जैसे सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश से मनाही।
    • अस्पृश्यता के आधार पर वस्तुएँ बेचने या सेवाएँ प्रदान करने से मनाही। 
    • अस्पृश्यता के आधार पर किसी व्यक्ति का अपमान करना। 
    • निम्न श्रेणी की सेवाएँ करने के लिए मजबूर करना या सामाजिक बहिष्कार। 
    • किसी व्यक्ति को कोई धार्मिक या सामाजिक रीति का पालन करने से रोकना।
  • अपराधों का स्वरूप: अधिनियम के अंतर्गत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-समझौता योग्य हैं। दोबारा अपराध करने पर सजा बढ़ सकती है (2 वर्ष तक की सजा और जुर्माना)।
  • संस्थागत व्यवस्था:
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय कार्यान्वयन के लिए नोडल मंत्रालय है।
    • राज्य स्तरीय सतर्कता एवं निगरानी समितियों का गठन किया जाना चाहिए।
    • अधिनियम के कार्यान्वयन पर वार्षिक रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जाती है।

आगे की राह 

  • अधिनियम के अंतर्गत प्रवर्तन तंत्र को नए सिरे से मजबूती देना। 
  • पुलिस, न्यायपालिका और सार्वजनिक अधिकारियों की नियमित प्रशिक्षण एवं संवेदनशीलता बढ़ाना। 
  • ज़िला स्तर पर निगरानी को मजबूत करना, आवश्यकतानुसार “अस्पृश्यता-प्रवण” क्षेत्र घोषित करना। 
  • दलित समुदायों के बीच कानूनी सहायता और जागरूकता में सुधार। 
  • पीसीआर अधिनियम और एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के कार्यान्वयन के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना।

Source: TH

 

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