UGC की एंटी-रैगिंग प्रणाली पूरी तरह विफल: दिल्ली उच्च न्यायालय

पाठ्यक्रम: GS2/शासन

संदर्भ 

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने संकेत दिया है कि वह हाल ही में उच्च शिक्षण संस्थानों में बढ़ती रैगिंग की घटनाओं और छात्रों की मृत्यु को लेकर स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका (PIL) शुरू कर सकता है।
    • यह घटनाक्रम तब सामने आया जब इस वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने वर्तमान यूजीसी (UGC) नियमों पर चिंता व्यक्त की।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी – 2025  

  • सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि यूजीसी की एंटी-रैगिंग नियमावली अधिकांशतः केवल कागज़ों तक सीमित है। 
  •  संस्थान केवल औपचारिकताएं निभाते हैं — जैसे हलफनामे और पोस्टर — लेकिन वास्तविक कार्रवाई नहीं होती।  
  • न्यायालय ने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स के गठन का निर्देश दिया।

भारत में रैगिंग  

  • 2022 की राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) रिपोर्ट के अनुसार: छात्रों ने भारत में आत्महत्या से होने वाली कुल मृत्युओं में 7.6% — अर्थात् 13,044 — का योगदान दिया, जो किसानों और कृषि श्रमिकों की संयुक्त संख्या से अधिक है।  
  • कुल छात्र मृत्युओं में से 13.5% महाराष्ट्र में, 10.9% तमिलनाडु में, 10.3% मध्य प्रदेश में और 8.1% उत्तर प्रदेश में दर्ज की गईं।

रैगिंग रोकने के लिए सरकार के कदम 

  •  विशेष निर्णय: 2001 में विश्व जागृति मिशन बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने रैगिंग को दंडनीय अपराध घोषित किया और सख्त संस्थागत उपायों को अनिवार्य किया।  
  • राघवन समिति (2007): सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति ने रैगिंग को भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दंडनीय अपराध मानने की सिफारिश की।  
  • सर्वोच्च न्यायालय दिशानिर्देश (2009):
    • एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन: एक टोल-फ्री हेल्पलाइन या कॉल सेंटर की स्थापना।
    • नियमावली: यूजीसी को उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग रोकने के लिए नियम बनाने का निर्देश।
    • समिति गठन: यूजीसी को एंटी-रैगिंग समिति और दस्ते गठित करने का आदेश।  
  • राष्ट्रीय रैगिंग रोकथाम कार्यक्रम (NRPP):
    • 24×7 समर्पित छात्र हेल्पलाइन
    • जागरूकता के लिए अनिवार्य ऑनलाइन हलफनामे
    • गैर-अनुपालन संस्थानों को चिन्हित करने की प्रणाली
    • स्वतंत्र निगरानी के लिए गैर-सरकारी एजेंसी
    • यूजीसी को गैर-अनुपालन संस्थानों से फंड वापस लेने की अनुमति
  • NGO की भूमिका:  शिक्षा में हिंसा के विरुद्ध समाज (SAVE) जैसे संगठन सक्रिय रूप से मामलों की निगरानी करते हैं और संस्थानों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग करते हैं।

रैगिंग के बने रहने के कारण 

  •  गहराई से जड़ें जमा चुकी मानसिकता: रैगिंग को प्रायः “राइट ऑफ पैसेज” या “परिचय अनुष्ठान” माना जाता है।  
  • कठोर कार्यान्वयन की कमी: सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश 15 वर्ष पहले जारी हुए थे, लेकिन वे अधिकांशतः कागज़ों तक सीमित हैं।  
  • यूजीसी नियमों का कमजोर क्रियान्वयन: संस्थान प्रायः शिकायतों को दबा देते हैं ताकि प्रतिष्ठा को हानि न पहुंचे।  
  • अधिकारों और जागरूकता की कमी: नए छात्रों को अपने अधिकारों और शिकायत निवारण तंत्र की जानकारी नहीं होती।  
  • गैर-जवाबदेह प्रणाली: पीड़ितों को प्रायः असंगठित और अपारदर्शी प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है।  
  • संस्थागत निष्क्रियता: एंटी-रैगिंग दस्तों और औचक निरीक्षणों के बावजूद, यूजीसी द्वारा की गई कार्रवाइयों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता।  
  • कम अनुपालन: यूजीसी के दिशानिर्देशों के अनुसार छात्रों को प्रत्येक वर्ष  एंटी-रैगिंग हलफनामे जमा करने होते हैं, लेकिन RTI डेटा के अनुसार विगत दशक में केवल 4.49% छात्रों ने ऐसा किया।

आगे की राह 

  •  दिशानिर्देशों का सख्त पालन: अधिकारियों को सर्वोच्च न्यायालय और यूजीसी के नियमों को पूरी तरह लागू करना चाहिए तथा संस्थानों को चूक के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए।  
  • तकनीक आधारित समाधान: रैगिंग की घटनाओं को रोकने के लिए परिसरों में CCTV निगरानी का विस्तार करें।  
  • सुरक्षित ऑनलाइन पोर्टल: पीड़ितों द्वारा गुमनाम शिकायत दर्ज करने के लिए सुरक्षित पोर्टल और आईडी-आधारित डैशबोर्ड विकसित करें।  
  • कानूनी स्पष्टता: कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है ताकि अपराधियों को सख्त दंड दिया जा सके, जिसमें शिकायतों की अनदेखी करने वाले संकाय या प्रबंधन भी शामिल हों।

Source: TH

 

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