2047 तक विकसित कृषि अर्थव्यवस्था की ओर भारत की यात्रा

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था; कृषि

संदर्भ

  • भारत अपनी कृषि पद्धतियों को आधुनिक बनाने के महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, और इसे 2047 तक विकसित कृषि अर्थव्यवस्था बनाने के लिए प्रमुख अनिवार्यताओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जिसमें खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण आजीविका, स्थिरता एवं कई आधुनिक प्रौद्योगिकी नवाचारों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

भारत की कृषि अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति

भारत की कृषि अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति
  • कार्यबल: भारत की जनसंख्या का लगभग 55%; 
  • सकल मूल्य वर्धित (GVA): 17.7% (वित्त वर्ष 2023-24 में वर्तमान मूल्यों पर);
    • यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2047 तक सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा घटकर 7% – 8% रह जाएगा तथा इसमें 30% से अधिक कार्यबल कार्यरत होंगे।
  • कृषि भूमि: भारत की कुल भूमि का 54.8% (328.7 मिलियन हेक्टेयर);
  • कृषि योग्य भूमि: 180 मिलियन हेक्टेयर (विश्व  में सबसे बड़ी);
  • फसल की तीव्रता: 155.4% (2021-22 के लिए भूमि उपयोग सांख्यिकी के अनुसार);
  • वैश्विक प्रभुत्व: भारत दूध, दालों और मसालों का विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • भारत फलों, सब्जियों, चाय, खेती की गई मछली, गन्ना, गेहूं, चावल, कपास और चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • कृषि निर्यात: वित्त वर्ष 23 में 4.2 लाख करोड़ रुपये;

2047 तक विकासशील कृषि अर्थव्यवस्था के निर्माण में प्रमुख बाधाएँ

  • छोटी और खंडित भूमि जोत: 86% किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है, जो पैमाने और मशीनीकरण की अर्थव्यवस्था को सीमित करती है।
  • जलवायु परिवर्तन: अनियमित मानसून, बढ़ता तापमान और चरम मौसम की घटनाएँ फसल की उपज एवं आय स्थिरता को बाधित करती हैं।
  • जल की कमी: भूजल पर अत्यधिक निर्भरता के कारण पंजाब और हरियाणा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में कमी आई है।
    • मानसून पर निर्भरता कृषि को सूखे के प्रति संवेदनशील बनाती है।
  • बाजार की अक्षमता: किसानों को अच्छी तरह से विकसित बाजारों और उचित मूल्य निर्धारण तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • जटिल आपूर्ति शृंखलाएँ और बिचौलिए मूल्य शोषण में योगदान करते हैं।
  • फसल के पश्चात् की हानि: खराब भंडारण और परिवहन बुनियादी ढाँचे के कारण अनुमानित 74 मिलियन टन वार्षिक खाद्यान्न की हानि होती है।
  • ऋण तक सीमित पहुँच: छोटे और सीमांत किसान किफायती ऋण और फसल बीमा तक पहुँचने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे आधुनिक इनपुट में निवेश करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • मृदा का क्षरण: रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो गई है और कीटों और बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई है।

2047 तक विकसित कृषि अर्थव्यवस्था के लिए विजन

  • तकनीकी एकीकरण: सटीक खेती के लिए AI, IoT और बड़े डेटा का लाभ उठाना।
    • उपग्रह आधारित मौसम पूर्वानुमान, कीट प्रबंधन और फसल निगरानी के लिए ड्रोन तक पहुँच का विस्तार करना।
    • पहुँच के लिए स्थानीय AI प्लेटफ़ॉर्म विकसित करना।
  • पुनर्योजी खेती के तरीके: मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करने के लिए जैविक और शून्य-बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना।
    • एक राष्ट्रीय पुनर्योजी खेती नीति पेश करें और निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना।
  • रोबोटिक्स और स्वचालन:
    • छोटे खेतों के लिए कम लागत वाले रोबोट समाधान विकसित करना।
    • स्वचालन तकनीकों को बढ़ाने के लिए AgTech हब स्थापित करना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • वैकल्पिक प्रोटीन बाज़ार: प्रयोगशाला में उगाए गए प्रोटीन के उत्पादन और जागरूकता को बेहतर बनाने के लिए वैश्विक नेताओं के साथ सहयोग करना।
  • आपूर्ति शृंखला अवसंरचना: कोल्ड स्टोरेज, परिवहन, ग्रामीण संपर्क और सिंचाई में निवेश करें।
    • घाटे को कम करने और उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण विद्युतीकरण और बाज़ार संपर्कों का विस्तार करना।
  • किसानों को सशक्त बनाना: सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाने के लिए किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को मज़बूत करना।
    • ऋण, बीमा और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों तक पहुँच में सुधार करना।
    • छोटे किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों और प्रशिक्षण से लैस करना।
  • स्थायित्व: ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना।
    • जलवायु-अनुकूल फ़सलों और विविध फ़सल पैटर्न को अपनाना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs): नवाचार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए निजी कंपनियों और अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग करना।

नीतिगत सुधार

  • डिजिटल कृषि मिशन: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना का विकास करना, डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (DGCES) को लागू करना और IT-आधारित समाधानों को बढ़ावा देना।
  • प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन: रसायन मुक्त, प्राकृतिक खेती प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
  • ई-मार्केटप्लेस पहल: पारदर्शी बोली प्रणाली के लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) का विस्तार करना।
  • पूरक कार्यक्रम: कृषि कार्यबल का समर्थन करने के लिए PMAY, NREGA और NFSA जैसी ग्रामीण कल्याण योजनाओं को मजबूत करना।

निष्कर्ष और आगे की राह

  • भारत, विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों वाला देश है, जो आंतरिक रूप से अपनी कृषि जड़ों से जुड़ा हुआ है।
  • जैसे-जैसे देश 2047 में अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी के करीब पहुँच रहा है, कृषि इसकी अर्थव्यवस्था की आधारशिला और इसके भविष्य की कुंजी बनी हुई है।
  • खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार एवं जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक लचीले, सतत और समृद्ध कृषि क्षेत्र की ओर यात्रा महत्त्वपूर्ण है।
  • बाजार पहुँच में सुधार, बुनियादी ढांचे को बढ़ाना, सतत कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना और छोटे किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना इन बाधाओं को दूर करने की दिशा में आवश्यक कदम हैं।
  • भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का भविष्य आशाजनक दिखता है, जिसमें तकनीकी नवाचार, नीतिगत सुधार और बुनियादी स्तर पर जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत के लिए 2047 तक ‘विकसित कृषि अर्थव्यवस्था’ प्राप्त करने के लिए प्रमुख अनिवार्यताओं का विश्लेषण कीजिए। प्रत्येक अनिवार्यता से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा कीजिए। सफल कार्यान्वयन के लिए रोडमैप की रूपरेखा बनाकर निष्कर्ष निकालिए।

Source: IE

 

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