भारत के ऋण बाजार को पुनर्संतुलित करना

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

समाचार में

  • हाल ही में नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने भारत में सरकारी ऋण बाजार और कॉर्पोरेट ऋण बाजार को पुनर्संतुलित करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

ऋण बाज़ार क्या है?

  • ऋण बाजार, जिसे बांड बाजार या निश्चित आय बाजार के रूप में भी जाना जाता है, एक वित्तीय बाजार है जहाँ ऋण उपकरणों का क्रय और विक्रय किया जाता है।
  • ऋण बाजार वित्तीय प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं क्योंकि वे सरकारों, निगमों और अन्य संस्थाओं को उनके कार्यों या परियोजनाओं के लिए धन सुरक्षित करने की व्यवस्था प्रदान करते हैं।
  • ऋण उपकरणों के प्रकार: सरकारी प्रतिभूतियाँ (G-Secs), कॉर्पोरेट बांड, जमा प्रमाणपत्र (CDs), डिबेंचर आदि।

भारत में कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार की स्थिति

  • हाल के वर्षों में भारत का कॉर्पोरेट ऋण बाजार बढ़ा है, लेकिन विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में यह अभी भी स्थिर है। जबकि सरकार ने अपने मजबूत ऋण बाजार के माध्यम से वित्त वर्ष 25 में ₹11.63 लाख करोड़ जुटाए, कॉर्पोरेट क्षेत्र ने वित्तीय वर्ष के प्रथम नौ महीनों में ₹7.3 लाख करोड़ एकत्रित किए, जो एक महत्त्वपूर्ण अंतर दर्शाता है।
  • यह असमानता सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) के प्रभुत्व को रेखांकित करती है, जिसे सांविधिक तरलता अनुपात (SLR) ढाँचे के अंतर्गत बैंकों से अनिवार्य निवेश द्वारा समर्थन प्राप्त होता है।

कॉर्पोरेट ऋण बाजार के अविकसित होने के कारण

  • बैंक ऋण का प्रभुत्व: भारतीय कॉर्पोरेट मुख्य रूप से बैंक ऋण पर निर्भर हैं, क्योंकि बैंकिंग क्षेत्र पारंपरिक रूप से वित्तपोषण का प्राथमिक स्रोत रहा है।
  • विनियामक बाधाएँ: जटिल विनियामक आवश्यकताएँ और सीमित क्रेडिट रेटिंग पैठ छोटी कंपनियों को बांड जारी करने से रोकती हैं।
  • निवेशक व्यवहार: भारतीय निवेशक, खुदरा एवं संस्थागत दोनों, कम जोखिम वाली सरकारी प्रतिभूतियों और सावधि जमाओं को प्राथमिकता देते हैं।
  • सीमित बाजार अवसंरचना: अपर्याप्त बाजार-निर्माण तंत्र और जीवंत द्वितीयक बाजार का अभाव सक्रिय भागीदारी को हतोत्साहित करता है।
  • जारीकर्ताओं की कम ऋण-योग्यता: कई कंपनियाँ, विशेष रूप से छोटी कंपनियाँ, निवेशकों का विश्वास बढ़ाने वाली क्रेडिट रेटिंग प्राप्त करने के लिए संघर्ष करती हैं।

कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार के विस्तार करने की पहल

  • अनिवार्य कॉर्पोरेट बांड लिस्टिंग: SEBI ने बड़ी कंपनियों को अपने वृद्धिशील उधार का कम से कम 25% कॉर्पोरेट बांड के माध्यम से एकत्रित करने का आदेश दिया है।
  • ऋण संवर्धन: इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी लिमिटेड (IIFCL) जैसी संस्थाओं द्वारा आंशिक ऋण गारंटी जैसी व्यवस्थाओं का उद्देश्य ऋण पात्रता को बढ़ाना है।
  • कर प्रोत्साहन: इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InvITs) और रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REITs) जैसे कर-कुशल उपकरण बनाने के प्रयास।
  • खुदरा भागीदारी: कॉर्पोरेट बांड में खुदरा निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भारत बांड ETFs जैसी पहल प्रारंभ की गई है।
  • क्रेडिट रेटिंग में सुधार: बेहतर पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए क्रेडिट रेटिंग ढाँचे को मजबूत करना।

आगे की राह

  • तरलता बढ़ाना: बीमा कंपनियों और पेंशन फंड जैसे संस्थागत निवेशकों की भागीदारी के साथ सक्रिय द्वितीयक बाजार विकसित करना।
  • खुदरा भागीदारी बढ़ाना: कॉर्पोरेट बांड के लाभों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना।
  • कम प्रवेश बाधाओं और खुदरा-अनुकूल सुविधाओं के साथ नवीन उत्पादों की पेशकश करना।
  • ऋण सुलभता में सुधार: क्रेडिट रेटिंग तक पहुँच का विस्तार करना तथा लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) को बांड बाजार में प्रवेश के लिए प्रोत्साहित करने हेतु आंशिक गारंटी प्रदान करना।
  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: कॉर्पोरेट बांडों के आसान निर्गमन और व्यापार के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना।

Source: BS

 

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