पाठ्यक्रम: GS3/कृषि
संदर्भ
- कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की आधार बनी हुई है, जो लगभग 45% कार्यबल को रोजगार देती है तथा देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 16% का योगदान देती है।
- इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए, भारत ने इस क्षेत्र को मजबूत करने के लिए कई पहलों को क्रियान्वित किया है।
भारत में कृषि क्षेत्र का परिचय
- कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का आधार है, जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, रोजगार उपलब्ध कराने तथा समग्र आर्थिक विकास में योगदान देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- हाल ही में घोषित 2025-26 के केंद्रीय बजट में इसे विकास के चार इंजनों (अन्य हैं MSMEs, निवेश और निर्यात) में से एक के रूप में देखा गया है।
- इन इंजनों का उद्देश्य सतत् विकास को बढ़ावा देना और 2047 तक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
भारत में कृषि – भारतीय संविधान की अनुसूची VII में यह मुख्यतः राज्य का विषय है। इसमें कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान, कीटों से सुरक्षा और पौधों की बीमारियों की रोकथाम शामिल है। 1. व्यापार और वाणिज्य जैसे कुछ पहलू समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं। ![]() – संविधान का अनुच्छेद 48 (राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत) राज्य को कृषि और पशुपालन को आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके से व्यवस्थित करने का निर्देश देता है। कुछ प्रमुख तथ्य (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25) – सिंचाई: 2015-2023 के बीच सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं के अंतर्गत क्षेत्रफल लगभग 8,000 हेक्टेयर तक बढ़ गया। – जैविक खेती: परम्परागत कृषि विकास योजना और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन के अंतर्गत लामबंदी में वृद्धि हुई है। – मत्स्य पालन और पशुधन: मत्स्य पालन क्षेत्र ने 13.67% की CAGR दर्ज की, और पशुधन क्षेत्र 2015-2023 के बीच 12.99% की दर से बढ़ा। |
भारत के कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए प्रमुख किसान-केंद्रित पहल
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना के अंतर्गत 3.46 लाख करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं, जबकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के अंतर्गत 1.65 लाख करोड़ रुपये का दावा वितरित किया गया है।
- कृषि अवसंरचना कोष (AIF) ने कटाई उपरांत प्रबंधन में सुधार हेतु 87,500 से अधिक परियोजनाओं के लिए 52,738 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि: धान का MSP 2008-09 में ₹850 प्रति क्विंटल से बढ़कर 2023-24 में ₹2,300 प्रति क्विंटल हो गया है, जबकि इसी अवधि के दौरान गेहूँ का MSP ₹1,080 प्रति क्विंटल से बढ़कर ₹2,425 प्रति क्विंटल हो गया है।
- e-NAM: प्रारंभ से लेकर अब तक 23 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में 1410 मंडियों को e-NAM के साथ एकीकृत किया गया है।
- 31 दिसंबर 2024 तक 1.79 करोड़ किसान और 2.63 लाख व्यापारी e-NAMपोर्टल पर पंजीकृत हो चुके हैं।
- बाजरा (भारत का सुपरफूड): विगत 1 वर्ष में बाजरा उत्पादन में वृद्धि हुई है, जो 2022-23 में 173.21 लाख टन से बढ़कर 2023-24 (अंतिम अनुमान) में 175.72 लाख टन तक पहुँच गया है।
- 2019 और 2024 (अंतिम अनुमान) के बीच उत्पादकता 7% बढ़कर 1248 किलोग्राम/हेक्टेयर से 1337 किलोग्राम/हेक्टेयर हो गई है।
- सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना: बाजरा उत्पादन को बढ़ावा देना तथा भविष्य की खाद्य सुरक्षा के लिए आनुवंशिक संसाधनों की सुरक्षा हेतु दूसरे जीन बैंक की स्थापना जैसी पहल सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।
केंद्रीय बजट 2025-26 में किन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा
- प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना: कृषि जिला कार्यक्रम विकसित करने के लिए, कम उत्पादकता, मध्यम फसल सघनता और औसत से कम ऋण मापदंडों वाले 100 जिलों को शामिल करके 1.7 करोड़ किसानों को लाभान्वित किया जाएगा।
- ग्रामीण समृद्धि और लचीलापन का निर्माण: कौशल, निवेश, प्रौद्योगिकी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के माध्यम से कृषि में अल्प-रोजगार की समस्या का समाधान करना।
- प्रथम चरण में 100 विकासशील कृषि जिलों को शामिल किया जाएगा।
- दलहनों में आत्मनिर्भरता: सरकार तुअर, उड़द और मसूर पर ध्यान केंद्रित करते हुए 6 साल का ‘दलहनों में आत्मनिर्भरता मिशन’ शुरू करेगी।
- NAFED और NCCF आगामी 4 वर्षों में किसानों से इन दालों की खरीद करेंगे।
- सब्जियों और फलों के लिए व्यापक कार्यक्रम: उत्पादन, कुशल आपूर्ति, प्रसंस्करण और किसानों के लिए लाभकारी मूल्य को बढ़ावा देने के लिए राज्यों के साथ साझेदारी में कार्यक्रम शुरू किया जाएगा।
- बिहार में मखाना बोर्ड: मखाना के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और विपणन में सुधार करना।
- उच्च उपज वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन: अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना, उच्च उपज वाले बीजों का लक्षित विकास और प्रसार, तथा 100 से अधिक बीज किस्मों की व्यावसायिक उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- मत्स्य पालन: अंडमान एवं निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीपसमूह पर विशेष ध्यान देते हुए भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र तथा उच्च सागर से मत्स्य पालन का सतत् उपयोग करना।
- कपास उत्पादकता मिशन: कपास की खेती की उत्पादकता और स्थिरता में महत्त्वपूर्ण सुधार लाने तथा अतिरिक्त लंबे रेशे वाली कपास किस्मों को बढ़ावा देने के लिए 5-वर्षीय मिशन की घोषणा की गई।
- KCC के माध्यम से बढ़ाया गया ऋण: संशोधित ब्याज अनुदान योजना के अंतर्गत KCC के माध्यम से लिए गए ऋण के लिए ऋण सीमा ₹ 3 लाख से बढ़ाकर ₹ 5 लाख की जाएगी।
- असम में यूरिया संयंत्र: असम के नामरूप में 12.7 लाख मीट्रिक टन वार्षिक क्षमता वाला संयंत्र स्थापित किया जाएगा।
प्रमुख चिंताएँ/चुनौतियाँ और संबंधित सुझाव (केंद्रीय बजट 2025-26 के पश्चात्)
- नई योजनाओं का कार्यान्वयन: हालाँकि बजट में प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना और दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन जैसी कई नई योजनाएं शुरू की गईं, लेकिन इन कार्यक्रमों का प्रभावी कार्यान्वयन एक चुनौती बनी हुई है।
- यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण होगा कि लाभ लक्षित लाभार्थियों तक पहुँचे तथा नौकरशाही संबंधी किसी भी बाधा का समाधान किया जाए।
- गुणवत्तायुक्त बीज और प्रौद्योगिकी तक पहुँच: गुणवत्तायुक्त बीज और आधुनिक प्रौद्योगिकी तक पहुँच बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद, कई किसानों को अभी भी इन संसाधनों को प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- उत्पादकता में सुधार के लिए उच्च उपज देने वाली, जलवायु-सहनीय फसल किस्मों को अपनाने में तेजी लाने की आवश्यकता है।
- बुनियादी ढाँचा और भंडारण: फसल की बर्बादी को कम करने और किसानों के लिए बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने के लिए फसलोत्तर बुनियादी ढाँचे एवं भंडारण सुविधाओं में सुधार आवश्यक है।
- बजट में इस उद्देश्य के लिए धनराशि आवंटित की गई है, लेकिन समय पर और कुशल क्रियान्वयन आवश्यक है।
- ऋण उपलब्धता: हालाँकि बजट में किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) ऋण सीमा बढ़ा दी गई है, लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि किसानों को बोझिल प्रक्रियाओं के बिना ऋण तक आसान पहुँच हो।
- किसानों में वित्तीय साक्षरता और उपलब्ध योजनाओं के बारे में जागरूकता भी इस संबंध में मददगार हो सकती है।
- बाजार पहुँच और उचित मूल्य निर्धारण: बाजार की अकुशलता और बाजारों तक सीधी पहुँच की कमी के कारण किसानों को प्रायः अपनी उपज के लिए उचित मूल्य पाने में संघर्ष करना पड़ता है।
- बाजार संबंधों को मजबूत करने और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को बढ़ावा देने से इस मुद्दे को सुलझाने में सहायता मिल सकती है।
- जलवायु परिवर्तन और स्थिरता: बदलते मौसम पैटर्न के साथ, सतत् कृषि पद्धतियों को अपनाना अनिवार्य हो जाता है।
- जलवायु-अनुकूल फसलों एवं पद्धतियों पर बजट का ध्यान केंद्रित करना सही दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन किसानों को निरंतर समर्थन और शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
- भारत की कृषि आधार को मजबूत करना देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- किसान-केंद्रित पहलों को लागू करके, बजट आवंटन बढ़ाकर और सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देकर, सरकार खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, रोजगार उपलब्ध कराने और समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य कर रही है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] हाल की सरकारी नीतियों में उल्लिखित विभिन्न किसान-केंद्रित पहल एवं बजट आवंटन भारत की कृषि आधार को प्रभावी ढंग से कैसे मजबूत कर सकते हैं और सतत् विकास सुनिश्चित कर सकते हैं? |
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