पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संदर्भ
- दक्षिण कोरिया के बुसान में अमेरिका और चीन के बीच हुए शिखर सम्मेलन का समापन दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए कई परिणामों के साथ हुआ।
मुख्य निष्कर्ष
- अमेरिका ने चीन पर लगाए गए शुल्क को घटाकर 47% कर दिया है, जिससे भारत (और ब्राज़ील) 50% के साथ सबसे अधिक शुल्क वाला देश बन गया है।
- चीन ने एक वर्ष की अवधि के समझौते के अंतर्गत विश्व को दुर्लभ खनिजों (जो वैश्विक उद्योगों की एक विस्तृत श्रृंखला में उपयोग होते हैं) का निर्यात जारी रखने पर सहमति व्यक्त की है।
शिखर सम्मेलन का महत्व
- G-2: अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस बैठक को “G-2” कहा, जो G-20 और G-7 जैसे समूहों से प्रेरित है, जिनमें विश्व की कुछ सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं।
- चीन के लिए यह स्वीकार्यता उसकी शक्ति की स्थिति की मान्यता थी।
- किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने सार्वजनिक रूप से चीन की स्थिति को इस रूप में स्वीकार नहीं किया था, जिससे यह बीजिंग के लिए एक बड़ी जीत बन गई।
| G-2 की अवधारणा – G-2 या अमेरिका-चीन के विशेष क्लब की अवधारणा को वैश्विक मुद्दों पर कार्य करने के लिए लगभग 15 वर्ष पहले 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा एवं चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ के बीच हुए शिखर सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत किया गया था। – उस समय व्यापार, जलवायु परिवर्तन और परमाणु प्रसार अमेरिका के लिए प्रमुख चिंताएं थीं। – बाद में अमेरिका-चीन तनाव बढ़ने के साथ, प्रशासन ने 2011 तक इस विचार को पूरी तरह से छोड़ दिया। |
- अमेरिकी राष्ट्रपति का दृष्टिकोण: विश्व के कुछ नेताओं के साथ पूर्ववर्ती बातचीत को देखते हुए, चीनी राष्ट्रपति के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति का सहमति-पूर्ण दृष्टिकोण विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से निपटने में सीमाओं का संकेत था।
- दुर्लभ खनिजों पर प्रतिबंध में देरी: शिखर सम्मेलन से संकेत मिलता है कि अमेरिका चीन द्वारा दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे को टालने में सफल रहा है, जो वैश्विक आपूर्ति पर चीन की पकड़ को देखते हुए एक महत्वपूर्ण चिंता थी।
| दुर्लभ खनिज – दुर्लभ खनिजों का समूह 17 धात्विक तत्वों से बना होता है, जिनका उपयोग मैग्नेट और अन्य घटकों के निर्माण में होता है — जो मिसाइलों, विमानों, कारों एवं रेफ्रिजरेटर जैसे उत्पादों के निर्माण में अनिवार्य हैं। – शुल्क युद्ध के बीच, चीन ने अपने निर्यात पर सीमाएं लगाकर अपनी प्रभावशाली स्थिति को दर्शाया, जिससे वैश्विक उद्योग प्रभावित हुए। |
भारत के लिए प्रभाव
- QUAD की प्रासंगिकता: यह अनिश्चितता क्वाड की प्रासंगिकता और भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगाती है — यह वह रणनीतिक ढांचा है जिसमें भारत अमेरिका, जापान एवं ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करता है।
- भारत पर शुल्क: चीन पर शुल्क घटाकर 47% कर दिए गए हैं, जिससे भारत अब प्रमुख एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक 50% शुल्क वाला देश बन गया है।
- इससे भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता कम होती है और अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता को तीव्र करने का दबाव बढ़ता है।
- “G-2” शब्द का प्रयोग अमेरिका-चीन के बीच संभावित समन्वय का संकेत देता है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है — क्योंकि भारत बहुध्रुवीयता का समर्थक है, न कि द्विध्रुवीय या साझा प्रभुत्व का।
- G-2 ढांचा वैश्विक प्रभाव को “प्रभाव क्षेत्रों” में विभाजित कर सकता है, जिससे भारत की स्वतंत्र भूमिका को चुनौती मिल सकती है।
आगे की राह
- भारत को इस शक्ति समीकरण के आलोक में अपनी विदेश नीति के दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि रणनीतिक स्वायत्तता बनी रहे।
- अमेरिका के साथ रक्षा और तकनीकी सहयोग, बाज़ार पहुंच और निवेश, इंडो-पैसिफिक समुद्री सुरक्षा के लिए जुड़ाव बढ़ाना चाहिए।
- चीन के साथ व्यापार और क्षेत्रीय आर्थिक ढांचे में जहां हित समान हों — जलवायु, अवसंरचना और बहुपक्षीय कूटनीति — वहां व्यावहारिक रूप से जुड़ना चाहिए।
- जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, ASEAN और यूरोपीय साझेदारों (फ्रांस, EU) के साथ साझेदारी को गहरा करना चाहिए ताकि रणनीतिक विकल्पों का विविधीकरण हो सके।
- भारत की बाह्य प्रभावशीलता बनाए रखने के लिए घरेलू आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मकता को सुदृढ़ करना अत्यंत आवश्यक है।
Source: TH
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