पाठ्यक्रम: G2/राजव्यवस्था और शासन
संदर्भ
- केंद्रीय विधि मंत्रालय ने कहा कि प्रस्तावित समानांतर चुनावों का ढाँचा संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करता।
पृष्ठभूमि
- संविधान (एक सौ उनतीसवाँ संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन), जिन्हें “वन नेशन वन इलेक्शन” विधेयक कहा जाता है, 2024 में विधि मंत्री द्वारा प्रस्तुत किए गए।
- इन विधेयकों में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को समन्वित करने का प्रावधान है, जिसके अंतर्गत किसी विशेष लोकसभा के बाद चुनी गई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल उसी लोकसभा के कार्यकाल के साथ समाप्त होगा।
- एक बार जब विधानसभाओं के कार्यकाल एकसमान हो जाएँगे, तो आगामी आम चुनाव एक साथ आयोजित किया जाएगा।
- इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये संविधान की मूल संरचना को प्रभावित न करें।
- JPC की बैठक 23वें विधि आयोग और चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों के साथ 4 दिसंबर को होगी।
केंद्रीय विधि मंत्रालय का दृष्टिकोण
- पाँच वर्ष का कार्यकाल: संविधान के अनुच्छेद 83(2) और 172(1) स्पष्ट रूप से कहते हैं कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पाँच वर्ष होगा “जब तक कि पहले भंग न कर दिया जाए।”
- मंत्रालय ने तर्क दिया कि इसे संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर शामिल किया ताकि विशेष परिस्थितियों में समयपूर्व विघटन संभव हो।
- मूल संरचना सिद्धांत: मूल संरचना सिद्धांत यह मांग करता है कि संविधान की कुछ मौलिक विशेषताएँ — जैसे राज्य के अंगों के बीच शक्तियों का पृथक्करण — संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं और इनमें संशोधन नहीं किया जा सकता।
- विधेयक शक्तियों के पृथक्करण या संघवाद के सिद्धांत को कमजोर नहीं करते।
- केवल अवधि पर प्रभाव: विधेयक मतदान की अवधि या आवृत्ति को प्रभावित करते हैं, न कि मतदान के अधिकार को, इसलिए यह मूल संरचना का उल्लंघन नहीं है।
- जवाबदेही पर कोई असर नहीं: समानांतर चुनाव सरकार की जवाबदेही को प्रभावित नहीं करते, क्योंकि संसदीय लोकतंत्र यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक सरकार अंतिम दिन तक जवाबदेह रहे।
समानांतर चुनाव क्या हैं?
- समानांतर चुनाव (वन नेशन वन इलेक्शन) का अर्थ है लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना, ताकि चुनावों की आवृत्ति एवं उनसे जुड़ी लागत को कम किया जा सके।
- भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के समानांतर चुनाव 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में हुए थे।
- इसके बाद यह समय-सारणी बनाए नहीं रखी जा सकी और अब तक लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव पुनः समन्वित नहीं हो पाए हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में तर्क
- व्यय में कमी: प्रत्येक वर्ष अलग-अलग चुनाव कराने में होने वाले भारी व्यय को कम करेगा।
- प्रक्रिया का सरलीकरण: एक चुनाव चक्र का प्रबंधन कई अलग-अलग चुनावों की तुलना में सरल है।
- इससे प्रशासनिक संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग हो सकता है।
- आचार संहिता (MCC) व्यवधानों में कमी: बार-बार चुनाव होने से MCC का लंबे समय तक लागू रहना पड़ता है, जिससे नई नीतियों की घोषणा, बजटीय निर्णय, कल्याणकारी योजनाएँ और प्रशासनिक पहलें बाधित होती हैं।
- सीधी जवाबदेही: समानांतर चुनावों से मतदाता केंद्रीय और राज्य शासन दोनों के लिए पार्टियों को एक साथ जवाबदेह ठहरा सकते हैं।
- सहकारी संघवाद को मज़बूती: एकसमान चुनावी कैलेंडर संघ और राज्यों के बीच समन्वय को प्रोत्साहित करता है, नीति स्थिरता सुनिश्चित करता है और लगातार चुनावी अभियानों से होने वाले राजनीतिक टकराव को कम करता है।
वन नेशन वन इलेक्शन के विरुद्ध तर्क
- लॉजिस्टिक चुनौतियाँ: सभी राज्यों और केंद्र सरकार को समय-सारणी एवं संसाधनों के समन्वय जैसी भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
- स्थानीय प्राथमिकताएँ: यह प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी को लाभ पहुँचा सकता है और क्षेत्रीय पार्टियों व मुद्दों को राष्ट्रीय मुद्दों के कारण पीछे धकेल सकता है।
- जटिल सुधारों की आवश्यकता: समानांतर चुनाव लागू करने के लिए बड़े संवैधानिक संशोधनों एवं वर्तमान चुनावी कानूनों में बदलाव की आवश्यकता होगी, जो कानूनी जटिलताएँ पैदा करेगा।
- संघवाद और राज्य स्वायत्तता: कार्यकाल का समन्वय राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को घटाता या बढ़ाता है, जिससे राज्यों की संवैधानिक स्वायत्तता कमजोर होती है।
आगे की राह
- सभी तीन स्तरों की सरकार के लिए समन्वित चुनाव शासन संरचना को बेहतर बनाएँगे। यह पारदर्शिता, समावेशिता, सरलता और मतदाताओं के विश्वास को बढ़ाएगा।
- विधि आयोग संभवतः 2029 से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों (नगरपालिकाएँ और पंचायतें) के लिए समानांतर चुनाव कराने की सिफारिश करेगा।
Source: TH