SST-भारत द्वारा वैश्विक फ्यूज़न दौड़ में भारत की भागीदारी चिह्नित

पाठ्यक्रम: GS3/ विज्ञान और प्रौद्योगिकी

संदर्भ

  • गांधीनगर स्थित प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान (IPR) के शोधकर्ताओं ने भारत को फ्यूज़न ऊर्जा प्राप्त करने के लिए एक रोडमैप तैयार किया है।

परिचय 

  • शोधकर्ता भारत का प्रथम फ्यूज़न विद्युत जनरेटर विकसित करने की कल्पना कर रहे हैं, जिसे स्टेडी-स्टेट सुपरकंडक्टिंग टोकामक-भारत (SST-भारत) कहा जाएगा, जिसकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता इनपुट से 5 गुना होगी। 
  • यह एक फ्यूज़न-फिशन हाइब्रिड रिएक्टर होगा, जिसमें कुल 130 मेगावाट में से 100 मेगावाट ऊर्जा फिशन से प्राप्त होगी। 
  • अनुमानित निर्माण लागत ₹25,000 करोड़ है। 
  • टीम का लक्ष्य है कि 2060 तक 250 मेगावाट का एक प्रदर्शन रिएक्टर चालू किया जाए, जिसका आउटपुट-टू-इनपुट अनुपात (Q) 20 होगा।

न्यूक्लियर ऊर्जा क्या है? 

  • न्यूक्लियर ऊर्जा वह ऊर्जा है जो परमाणु अभिक्रियाओं के दौरान उत्पन्न होती है, चाहे वह फिशन (परमाणु नाभिक का विभाजन) हो या फ्यूज़न (परमाणु नाभिक का संयोजन)। 
  • न्यूक्लियर फिशन में भारी परमाणु नाभिक जैसे यूरेनियम या प्लूटोनियम को हल्के नाभिकों में विभाजित किया जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है।
    •  इस प्रक्रिया का उपयोग परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।

न्यूक्लियर फ्यूज़न की प्रक्रिया 

  • यह एक प्रक्रिया है जिसमें दो हल्के परमाणु नाभिक मिलकर एक भारी नाभिक बनाते हैं, और इस दौरान बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
    • यही प्रक्रिया हमारे सूर्य सहित तारों को ऊर्जा प्रदान करती है। 
  • सबसे सामान्य फ्यूज़न अभिक्रिया हाइड्रोजन के समस्थानिकों — ड्यूटेरियम और ट्राइटियम — के बीच होती है। 
  • जब ये समस्थानिक आपस में मिलते हैं, तो हीलियम बनता है और एक न्यूट्रॉन के साथ बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है।
Process of Nuclear fusion

फ्यूज़न ऊर्जा का महत्व

  • स्वच्छ ऊर्जा स्रोत: न्यूक्लियर फ्यूज़न, न्यूक्लियर फिशन के समान, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसें नहीं छोड़ता।
  • उच्च ऊर्जा दक्षता: फ्यूज़न प्रति किलोग्राम ईंधन से फिशन की तुलना में लगभग चार गुना अधिक ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है, और कोयला या तेल जलाने की तुलना में लगभग 40 लाख गुना अधिक ऊर्जा देता है, जिससे यह पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी है।
  • सुरक्षित उपयोग: भविष्य के फ्यूज़न रिएक्टर स्वाभाविक रूप से सुरक्षित होंगे और इनमें उच्च सक्रियता या दीर्घकालिक परमाणु अपशिष्ट उत्पन्न होने की संभावना नहीं होगी।
    • साथ ही, फ्यूज़न प्रक्रिया को शुरू करना और बनाए रखना कठिन होता है, जिससे अनियंत्रित अभिक्रिया या मेल्टडाउन का कोई खतरा नहीं होता।
  • प्रचुर और सुलभ ईंधन आपूर्ति: फ्यूज़न ईंधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
    • ड्यूटेरियम को समुद्री जल से सस्ते में निकाला जा सकता है। 
    • ट्राइटियम को फ्यूज़न से उत्पन्न न्यूट्रॉन और प्राकृतिक लिथियम की प्रतिक्रिया से उत्पन्न किया जा सकता है।

चुनौतियाँ

  • अत्यधिक परिस्थितियों की आवश्यकता: थर्मोन्यूक्लियर फ्यूज़न के लिए अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव की आवश्यकता होती है — सामान्यतः लाखों डिग्री सेल्सियस — ताकि नाभिकों के बीच की विद्युत प्रतिकर्षण को पार किया जा सके।
  • अभिक्रिया को बनाए रखना: एक बार शुरू होने के पश्चात, अभिक्रिया को स्वयं-संवहनीय (बर्निंग प्लाज़्मा) होना चाहिए।
    • वर्तमान प्रयोगशालाओं में फ्यूज़न केवल कुछ सेकंड तक ही संभव हो पाता है, जिससे इतनी चरम परिस्थितियों को लंबे समय तक बनाए रखना कठिन हो जाता है।
  • अन्य ऊर्जा स्रोतों से प्रतिस्पर्धा: फ्यूज़न को न्यूक्लियर फिशन, सौर और पवन ऊर्जा से प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जो वर्तमान में अधिक लागत प्रभावी और बड़े पैमाने पर लागू करने योग्य हैं।
  • भारत में वित्तीय सीमाएं: भारत का फ्यूज़न अनुसंधान बजट अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन की तुलना में अभी भी सीमित है।

फ्यूज़न ऊर्जा में वर्तमान प्रगति 

  • भारतीय परिदृश्य: SST-1 (प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान – IPR): इस सुपरकंडक्टिंग टोकामक ने लगभग 650 मिलीसेकंड तक प्लाज़्मा को सीमित करने में सफलता प्राप्त की है।
    • SST-भारत को SST-1 के आगामी चरण के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य प्रयोगात्मक अनुसंधान से वास्तविक विद्युत उत्पादन की ओर बढ़ना है।
  • वैश्विक प्रगति के मानक:
    • फ्रांस का WEST टोकामक: फरवरी 2025 में इसने 22 मिनट से अधिक समय तक स्थिर हाइड्रोजन प्लाज़्मा बनाए रखकर विश्व रिकॉर्ड बनाया।
    • चीन का EAST टोकामक: चीन ने 100 मिलियन°C तापमान पर 1,066 सेकंड तक प्लाज़्मा बनाए रखा, जो उच्च तापमान प्लाज़्मा को बनाए रखने में उल्लेखनीय प्रगति दर्शाता है।
    • ITER (इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर): ITER का लक्ष्य Q = 10 प्राप्त करना है, अर्थात् यह जितनी ऊर्जा व्यय करेगा उससे दस गुना अधिक ऊर्जा उत्पन्न करेगा — जो फ्यूज़न ऊर्जा की व्यवहारिकता को सिद्ध करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

आगे की राह 

  • फ्यूज़न अनुसंधान को दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ रणनीतिक तकनीकी प्रगति — जैसे सुपरकंडक्टिंग सामग्री, उच्च तापमान इंजीनियरिंग, और प्लाज़्मा मॉडलिंग — को बढ़ावा देने के लिए भी आगे बढ़ाया जाना चाहिए। 
  • 2060 का लक्ष्य एक सतर्क लेकिन ठोस दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिससे भारत आवश्यक विशेषज्ञता, अवसंरचना और तकनीकों को धीरे-धीरे विकसित कर व्यावहारिक एवं सतत फ्यूज़न ऊर्जा प्राप्त कर सके।

Source: TH

 

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