भारत में रोगों का भार संक्रामक रोगों से गैर-संचारी रोगों की ओर स्थानांतरित

पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य 

समाचारों में 

  • द लैंसेट में प्रकाशित नवीनतम ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) रिपोर्ट के अनुसार, गैर-संचारी रोग (NCDs) अब वैश्विक मृत्यु दर का लगभग दो-तिहाई हिस्सा बन चुके हैं। और, 1990 से 2023 तक, भारत में गैर-संचारी रोग (NCDs) तीव्रता से मृत्यु के प्रमुख कारण बन गए हैं, जो संक्रामक रोगों को पीछे छोड़ चुके हैं।

गैर-संचारी रोग क्या हैं? 

  • गैर-संचारी रोग (NCDs), या दीर्घकालिक रोग, वे स्थितियाँ हैं जो लंबे समय तक बनी रहती हैं और जिनका कारण आनुवंशिक, शारीरिक, पर्यावरणीय और व्यवहारिक कारकों का मिश्रण होता है। 
  • मुख्य प्रकारों में शामिल हैं:
    • हृदय संबंधी रोग (जैसे दिल का दौरा, स्ट्रोक)
    • कैंसर
    • श्वसन संबंधी रोग (जैसे अस्थमा)
    • मधुमेह

परिवर्तन के कारण

  • जनसांख्यिकीय संक्रमण: प्रजनन दर में गिरावट और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि से वृद्ध जनसंख्या में पुरानी बीमारियों की संभावना बढ़ी।
  • शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव: गतिहीन जीवनशैली, उच्च कैलोरी वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, तनाव, शराब और तंबाकू का सेवन।
  • पर्यावरणीय कारक: वायु प्रदूषण, रासायनिक संपर्क, और अत्यधिक तापमान जैसी स्थितियाँ श्वसन एवं हृदय रोगों को बढ़ावा देती हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक विकास: संक्रामक रोगों से नियंत्रण की ओर ध्यान से जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की ओर झुकाव — “समृद्धि की बीमारियाँ।”
  • स्वास्थ्य प्रणाली का विकास: टीकाकरण और स्वच्छता में सफलता से संक्रामक रोगों में कमी आई — लेकिन NCDs की रोकथाम के लिए प्रणाली पिछड़ गई।

प्रभाव

  • उच्च मृत्यु दर: NCDs निम्न और मध्यम आय वाले देशों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं, जहाँ वैश्विक NCD मृत्यु का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा होता है।
  • आर्थिक बोझ: NCDs भारत को प्रति वर्ष लगभग $250 बिलियन की उत्पादकता हानि पहुंचाते हैं (WHO अनुमान)। स्वास्थ्य पर व्यक्तिगत व्यय>50% बना हुआ है।
  • स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव: पुरानी बीमारियों का प्रबंधन दीर्घकालिक देखभाल, निदान और बुनियादी ढांचे की मांग करता है।
  • सामाजिक परिणाम: मध्य आयु वर्ग प्रभावित होता है, जिससे कार्यशील जनसंख्या पर असर पड़ता है।
  • जीवन की गुणवत्ता में गिरावट: NCDs अक्सर विकलांगता, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और सामाजिक अलगाव का कारण बनते हैं।
  • वैश्विक स्वास्थ्य प्रतिबद्धताएँ: भारत की SDG-3.4 (2030 तक NCDs से समयपूर्व मृत्यु को एक-तिहाई तक कम करना) की दिशा में प्रगति धीमी है।

उठाए गए कदम

  • गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NP-NCD) जिला और सामुदायिक स्तर पर स्क्रीनिंग, निदान एवं उपचार का समर्थन करता है।
  • आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर निवारक देखभाल और जीवनशैली परामर्श को बढ़ावा देते हैं।
  • प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना हृदय, मधुमेह और कैंसर की देखभाल के लिए सस्ती दवाएं उपलब्ध कराती है।
  • फिट इंडिया मूवमेंट और ईट राइट इंडिया स्वस्थ जीवनशैली को प्रोत्साहित करते हैं।

सुझाव

  • डॉ. सौम्या स्वामीनाथन जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का तीव्र स्वास्थ्य संक्रमण — जो औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और वैश्वीकरण में देरी से प्रेरित है — NCDs में वृद्धि का कारण बना है।
  • लंबी जीवन प्रत्याशा लेकिन उच्च रोगग्रस्तता के साथ, अब स्वस्थ वृद्धावस्था और NCDs की रोकथाम को प्राथमिकता देना अत्यंत आवश्यक है।
  • NCDs को नियंत्रित करने के लिए उनके परिवर्तनीय जोखिम कारकों को कम करने की आवश्यकता है — वह भी कम लागत और प्रभावी रणनीतियों के माध्यम से।
  • रोकथाम और नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्त और अन्य क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक व्यापक, बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण आवश्यक है।

Sources:IE

 

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