जैव-फोर्टिफाइड आलू

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि

संदर्भ

  • पेरू स्थित इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर (CIP) के महानिदेशक ने कहा है कि आयरन युक्त बायो-फोर्टिफाइड आलू जल्द ही भारतीय बाजारों में उपलब्ध होंगे।

परिचय

  • बायो-फोर्टिफाइड शकरकंद, जिसमें विटामिन A को CIP द्वारा विकसित तकनीक से जोड़ा गया है, पहले से ही कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में उपलब्ध हैं।
  • अब ध्यान आलू में आयरन फोर्टिफिकेशन पर है; इसकी प्रथम किस्म पेरू में जारी की गई है।
  • वर्तमान में यह ICAR द्वारा मूल्यांकन के अधीन है और इसे भारतीय कृषि परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित करने की आवश्यकता है।
CIP-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (CSARC)
– CIP-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (CSARC) आगरा, उत्तर प्रदेश में स्थापित किया गया है।
– यह न केवल उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे आलू उत्पादक राज्यों के किसानों की सेवा करेगा, बल्कि दक्षिण एशियाई देशों को भी लाभ पहुंचाएगा।
उद्देश्य: खाद्य और पोषण सुरक्षा बढ़ाना, किसानों की आय एवं रोजगार सृजन को बढ़ावा देना—आलू और शकरकंद की उत्पादकता, कटाई के पश्चात प्रबंधन और मूल्य संवर्धन के माध्यम से।
शासन व्यवस्था: भारत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के कृषि सचिवों की समन्वय समिति द्वारा संचालित।

इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर (CIP)
– CIP की स्थापना 1971 में अनुसंधान-विकास संगठन के रूप में की गई थी, जिसका फोकस आलू, शकरकंद और एंडियन जड़ व कंद फसलों पर है।
– यह वैज्ञानिक नवाचारों के माध्यम से पोषणयुक्त खाद्य तक पहुंच बढ़ाता है, समावेशी सतत व्यवसाय एवं रोजगार वृद्धि को बढ़ावा देता है, और जड़ व कंद आधारित कृषि-खाद्य प्रणालियों की जलवायु सहनशीलता को सुदृढ़ करता है।
मुख्यालय: लीमा, पेरू
– CIP की अनुसंधान उपस्थिति अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के 20 से अधिक देशों में है।

बायो-फोर्टिफाइड फसलें

  • बायो-फोर्टिफाइड फसलें वे होती हैं जिन्हें विशेष रूप से आवश्यक पोषक तत्वों—जैसे विटामिन, खनिज या अमीनो एसिड—की उच्च मात्रा के लिए विकसित किया गया है।
    • यह पारंपरिक प्रजनन तकनीकों, आनुवंशिक संशोधन या आधुनिक जैव-प्रौद्योगिकी विधियों के माध्यम से किया जाता है।
बायो-फोर्टिफाइड फसलें
  • उद्देश्य: उन क्षेत्रों में फसलों के पोषण मूल्य को बढ़ाना जहाँ आवश्यक पोषक तत्वों की कमी व्यापक है। 
  • उदाहरण: गोल्डन राइस को विटामिन A की कमी को कम करने के उद्देश्य से बीटा-कैरोटीन (प्रोविटामिन A) की उच्च मात्रा के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया है।
बायो-फोर्टिफाइड फसलें

बायो-फोर्टिफिकेशन की आवश्यकता

बायो-फोर्टिफिकेशन की आवश्यकता

बायो-फोर्टिफिकेशन का महत्व:

  • यह कुपोषण को दूर करने का सर्वाधिक सतत प्रकार माना जाता है।
  • यह पोषक तत्वों को प्राकृतिक रूप में प्रदान करता है।
  • बायो-फोर्टिफाइड खाद्य सस्ता होता है क्योंकि इसमें अतिरिक्त लागत नहीं आती।
  • ‘बायो-फोर्टिफाइड किस्में’ पारंपरिक किस्मों जितनी ही उपज देती हैं, जिससे किसानों को कोई हानि नहीं होती ।
  • इसमें ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ जैसी विस्तृत बुनियादी ढांचे की आवश्यकता नहीं होती।
    • फूड फोर्टिफिकेशन में प्रसंस्करण चरण के दौरान खाद्य फसलों की पोषण सामग्री को बढ़ाया जाता है।
  • इसमें पोषक तत्वों से भरपूर खाद्यान्न तैयार करने में कोई अतिरिक्त लागत नहीं आती।

चुनौतियाँ

  • कृषि और जलवायु संबंधी बाधाएँ: बायो-फोर्टिफाइड किस्में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में समान रूप से प्रदर्शन नहीं कर सकतीं।
  • बाजार प्रोत्साहनों की कमी: किसानों को पोषक तत्वों से भरपूर फसलों के लिए बेहतर मूल्य नहीं मिलता, जिससे प्रेरणा कम होती है।
  • मांग की कमी: जन जागरूकता अभियानों के अभाव में बाज़ार की मांग कम रहती है।
  • राष्ट्रीय पोषण योजनाओं से कमजोर एकीकरण: मध्याह्न भोजन, ICDS और PDS में बायो-फोर्टिफाइड अनाज शायद ही सम्मिलित होते हैं।
  • R&D में सीमित निवेश: GM फसलों या हाइब्रिड बीजों की तुलना में बायो-फोर्टिफिकेशन को कम वित्तीय समर्थन मिलता है।

आगे की राह

  • बीज वितरण और किसान संपर्क को सुदृढ़ करें।
  • बायो-फोर्टिफाइड फसलों को सरकारी खाद्य योजनाओं में शामिल करें।
  • उपभोक्ता जागरूकता और बाज़ार संपर्क को बेहतर बनाएं।
  • क्षेत्र-विशिष्ट अनुसंधान और पोषण प्रभाव अध्ययन में निवेश करें।

Source: TH

 

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