राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे मरीना जैव विविधता पर समझौता (BBNJ)

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • देश उच्च समुद्र संधि (High Seas Treaty) को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जिसे “राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे समुद्री जैव विविधता पर समझौता” (BBNJ) के नाम से जाना जाता है।

संधि के बारे में 

  • BBNJ समझौता उच्च समुद्रों में जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग को संबोधित करने वाली प्रथम संधि है।
    • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्रों के संसाधनों को “मानवता की साझी विरासत” के रूप में माना जाए और विशेष रूप से विकासशील देशों के साथ लाभों का न्यायसंगत और समान रूप से वितरण किया जाए।
  • पृष्ठभूमि: BBNJ के संरक्षण और सतत उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समुद्र कानून संधि (UNCLOS) के अंतर्गत एक अंतरराष्ट्रीय, कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन के विकास की प्रक्रिया विगत दस वर्षों से चल रही थी।
    • यह संधि वर्षों की वार्ता के पश्चात 2023 में सहमति से पारित हुई और 2024 में देशों के लिए हस्ताक्षर हेतु खोली गई।
    •  यह संधि 60वीं पुष्टि, स्वीकृति, अनुमोदन या परिग्रहण के 120 दिन बाद प्रभाव में आने पर एक अंतरराष्ट्रीय, कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि बन जाएगी। 
    • भारत ने 2024 में BBNJ समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • वार्ता के चार मुख्य घटक:
    • समुद्री आनुवंशिक संसाधन (Marine Genetic Resources – MGR);
    • क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण, जिनमें समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas – MPAs) शामिल हैं;
    • क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण;
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन।
  • PrepCom I: तैयारी आयोग का पहला सत्र अप्रैल 2025 में आयोजित हुआ, जिसमें देशों ने संधि के कार्यान्वयन, नियमों, निकायों और वित्तीय व्यवस्थाओं पर चर्चा शुरू की।
  • PrepCom II: यह सत्र संयुक्त राष्ट्र में आयोजित हुआ।
    • इसमें सरकारों, नागरिक समाज और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के 200 से अधिक प्रतिनिधि एकत्रित हुए। 
    • इस बैठक के दौरान छोटे द्वीपीय देशों — कैबो वर्डे और सेंट किट्स एंड नेविस — ने अपनी पुष्टि की घोषणा की। 
  • अब संधि के प्रभाव में आने के लिए केवल पाँच और पुष्टि की आवश्यकता है। 
  • एक बार यह हो जाने पर, देश अपनी प्रथम प्रमुख निर्णयात्मक बैठक आयोजित करेंगे, जिसे COP1 कहा जाएगा, और इसके 2026 के अंत में होने की संभावना है।

संधि का महत्त्व

  • सदस्य देश उच्च समुद्रों से प्राप्त समुद्री संसाधनों पर संप्रभु अधिकार का दावा नहीं कर सकते और लाभों के न्यायसंगत एवं समान वितरण को सुनिश्चित करते हैं।
  • यह समावेशी, एकीकृत, पारिस्थितिकी तंत्र-केंद्रित दृष्टिकोण का पालन करती है, जो एहतियाती सिद्धांत पर आधारित है और पारंपरिक ज्ञान तथा सर्वोत्तम वैज्ञानिक जानकारी के उपयोग को बढ़ावा देती है।
  • यह क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरणों के माध्यम से समुद्री पर्यावरण पर प्रभाव को न्यूनतम करने में सहायता करती है और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के लिए नियम स्थापित करती है।
  • यह कई सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति में योगदान देती है, विशेष रूप से SDG14 (पानी के नीचे जीवन)।

उच्च समुद्र 

  • उच्च समुद्र उन सभी समुद्री क्षेत्रों को कहा जाता है जो किसी देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र, प्रादेशिक समुद्र, आंतरिक जलक्षेत्र या द्वीपीय देशों के द्वीपीय जलक्षेत्र में शामिल नहीं होते।
    • इसका अर्थ है कि उच्च समुद्र और उससे संबंधित संसाधन किसी भी देश के सीधे स्वामित्व या नियंत्रण में नहीं होते। 
  • पृथ्वी के कुल आवासीय आयतन का 95% हिस्सा उच्च समुद्रों में है, लेकिन इसके बावजूद यह क्षेत्र अभी भी मजबूत संरक्षण से वंचित है।
उच्च समुद्र 
संयुक्त राष्ट्र समुद्र कानून संधि (UNCLOS) 
– UNCLOS को 1982 में अपनाया गया और 1994 में प्रभाव में लाया गया। 
– यह विश्व के महासागरों और समुद्रों में कानून और व्यवस्था की एक व्यापक व्यवस्था प्रस्तुत करता है, जो महासागरों के सभी उपयोगों एवं उनके संसाधनों को नियंत्रित करने वाले नियमों को स्थापित करता है। 
– यह राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे समुद्र तल पर खनन और संबंधित गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority – ISA) की स्थापना करता है।
अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA) 
– ISA एक स्वायत्त अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसकी स्थापना निम्नलिखित के अंतर्गत की गई है:
1. 1982 की संयुक्त राष्ट्र समुद्र कानून संधि (UNCLOS); और
2. 1994 का समझौता, जो UNCLOS के भाग XI के कार्यान्वयन से संबंधित है। 
3. UNCLOS के सभी सदस्य देश ISA के सदस्य हैं।
  4. ISA के 170 सदस्य हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।
 मुख्यालय: किंग्स्टन, जमैका।

Source: DTE

 

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