पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन
संदर्भ
- हाल ही में तमिलनाडु राज्य ने “ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राज्य नीति, 2025” जारी की है, जिसमें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन का साहसिक प्रस्ताव शामिल है ताकि ट्रांसजेंडर एवं इंटरसेक्स व्यक्तियों को उत्तराधिकार के समान अधिकार मिल सकें।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में सुधार की आवश्यकता क्यों है?
- द्विआधारी प्रकृति:हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदायों में उत्तराधिकार को नियंत्रित करता है।
- यह उत्तराधिकारियों को पुरुष या महिला के रूप में मान्यता देता है, तथा ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्तियों को प्रायः उत्तराधिकार के अधिकारों से बाहर रखा जाता है, जब तक कि वे कानूनी रूप से पुरुष या महिला के रूप में पहचान नहीं करते हैं, गैर-द्विआधारी पहचान को छोड़कर।
- परिणाम:ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को प्रायः पारिवारिक संपत्ति अधिकारों से वंचित किया जाता है।
- कई लोग उत्तराधिकार की कमी के कारण बेघर या आर्थिक असुरक्षा का सामना करते हैं।
- संवैधानिक विरोधाभास: इस अधिनियम की द्विआधारी संरचना संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करती है, जो लिंग के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है — जिसमें जेंडर आइडेंटिटी भी शामिल है।
- न्यायिक मौनता: सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय NALSA बनाम भारत संघ (2014) में तीसरे लिंग के रूप में आत्म-पहचान के अधिकार को मान्यता दी गई थी, फिर भी उत्तराधिकार कानून अभी भी द्विआधारी और बहिष्कारी बने हुए हैं।
- माफ़तलाल मामला (2005) जैसे कानूनी संघर्ष इस सुधार की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
वैश्विक दृष्टिकोण
- पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए उत्तराधिकार अधिकारों को शामिल किया है।
- भारत, अपने प्रगतिशील न्यायिक दृष्टिकोण के बावजूद, इन अधिकारों को व्यक्तिगत कानूनों में शामिल करने में पीछे है।
व्यापक महत्व
- प्रगतिशील सामाजिक नीति
- तमिलनाडु ने ट्रांसजेंडर मुद्दों पर ऐतिहासिक रूप से प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाया है — जैसे पहले ट्रांसजेंडर कल्याण योजनाएँ और कानूनी मान्यता।
- यह प्रथम राज्य है जिसने ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड की स्थापना की; कॉलेज आवेदन में तीसरे लिंग का विकल्प देने वाला पहला राज्य; और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़ा मानते हुए उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के लिए पात्र माना है।
- केंद्रीय कानून के साथ समन्वय: यह नीति ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 को सुदृढ़ करती है और राज्य स्तर पर इसके क्रियान्वयन को सुदृढ़ करती है।
- मानवाधिकार और समावेशन: ये प्रावधान संविधान के समानता (अनुच्छेद 14), भेदभाव-निषेध (अनुच्छेद 15), और गरिमा के साथ जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) जैसे अधिकारों को आगे बढ़ाते हैं।
- अन्य राज्यों के लिए मॉडल: तमिलनाडु की नीति अन्य राज्यों के लिए एक आदर्श बन सकती है ताकि वे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए अनुकूलित ढांचे विकसित कर सकें।
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