पाठ्यक्रम: GS2/शासन
समाचार में
- सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से आग्रह किया है कि वह अयोग्यता मामलों को निष्पक्ष और शीघ्रता से निपटाने के लिए विधानसभा अध्यक्षों एवं सभापतियों पर निर्भरता पर पुनर्विचार करे।
- कोर्ट ने इन कार्यवाहियों में देरी और पक्षपात की आलोचना की और तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश दिया कि वे 2024 में कांग्रेस में शामिल हुए 10 बीआरएस विधायकों के विरुद्ध लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लें।
क्या है दल-बदल विरोधी कानून?
- “आया राम गया राम” वाक्य 1967 में हरियाणा के विधायक गया लाल द्वारा एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदलने के बाद भारतीय राजनीति में प्रसिद्ध हुआ।
- दल-बदल विरोधी कानून (संविधान की दसवीं अनुसूची) को 1985 में 52वें संशोधन द्वारा राजनीतिक दल-बदल को रोकने के लिए शामिल किया गया था।

दल-बदल विरोधी कानून की विशेषताएँ
- दल-बदल के आधार पर अयोग्यता:किसी राजनीतिक दल से संबंधित विधायक अयोग्य ठहराया जाएगा यदि वह: (i) स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता त्याग देता है, या (ii) सदन में अपनी पार्टी के निर्देश के विरुद्ध मतदान करता है या मतदान में अनुपस्थित रहता है।
- यदि सदस्य ने पहले से पार्टी की अनुमति ली हो, या पार्टी द्वारा 15 दिनों के अंदर उसकी कार्रवाई को स्वीकार कर लिया जाए, तो वह अयोग्य नहीं माना जाएगा।
- स्वतंत्र सदस्य यदि चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल से जुड़ता है तो अयोग्य होगा।
नामित सदस्य यदि नामांकन के छह महीने बाद किसी राजनीतिक दल से जुड़ता है तो अयोग्य होगा।
- किसी सदस्य को सदन से अयोग्य ठहराने का निर्णय अध्यक्ष/सभापति के पास होता है।
अपवाद
- दसवीं अनुसूची में प्रारंभ में दो अपवाद थे जिनके अंतर्गत सदस्य अयोग्य नहीं माने जाते थे:
- यदि ‘विधानमंडल दल’ के एक-तिहाई सदस्य अलग समूह बनाते हैं।
- यदि उनकी ‘राजनीतिक पार्टी’ का विलय किसी अन्य पार्टी में हो और ‘विधानमंडल दल’ के दो-तिहाई सदस्य इसे स्वीकार करें।
- हालाँकि, पहले अपवाद (एक-तिहाई विभाजन) को 2003 में कानून को सुदृढ़ करने के लिए हटा दिया गया।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
- किहोतो होलोहोन बनाम ज़ाचिल्हू (1992): अध्यक्ष द्वारा दल-बदल मामलों में लिए गए निर्णय उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।
- केशम मेघचंद्र सिंह बनाम अध्यक्ष, मणिपुर (2020): सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यक्ष को अयोग्यता याचिका पर निर्णय लेने के लिए अधिकतम तीन महीने की समय सीमा निर्धारित की।
मुख्य मुद्दे और चुनौतियाँ
- अध्यक्ष द्वारा दल-बदल मामलों का निर्णय बिना निश्चित समयसीमा के होता है, जिससे देरी और पक्षपात की संभावना रहती है।
- न्यायिक समीक्षा उपलब्ध है, लेकिन न्यायालय विधायी स्वायत्तता का उदाहरण देकर हस्तक्षेप से बचती हैं।
- यह तर्क दिया जाता है कि यह कानून विधायकों की अभिव्यक्ति और परिचर्चा की स्वतंत्रता को सीमित करता है।
- व्हिप प्रणाली कठोर पार्टी नियंत्रण लागू करती है, जिससे आंतरिक परिचर्चा या असहमति की संभावना कम हो जाती है।
निष्कर्ष और आगे की राह
- दल-बदल विरोधी कानून ने राजनीतिक अस्थिरता को कम करने में सहायता की है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कमियाँ और अतिरेक हैं, जो इसके लोकतांत्रिक उद्देश्य को कमजोर करते हैं।
- सुधारों की आवश्यकता है ताकि पार्टी अनुशासन एवं जवाबदेही के बीच संतुलन बना रहे, निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित हो, और आंतरिक पार्टी लोकतंत्र को बढ़ावा मिले जिससे भारत की संसदीय प्रणाली मजबूत हो।
| क्या आप जानते हैं? – जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 भारत में चुनावों को नियंत्रित करता है और योग्यता, अयोग्यता तथा चुनाव संबंधी अपराधों के नियम निर्धारित करता है। – धारा 8 के अंतर्गत विधायकों की अयोग्यता को परिभाषित किया गया है। – धारा 8(1) में शत्रुता फैलाना, रिश्वतखोरी और चुनावी धोखाधड़ी जैसे अपराध शामिल हैं। – धारा 8(2) में जमाखोरी, मिलावट और दहेज संबंधी अपराध शामिल हैं। – धारा 8(3) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जिसे दो वर्ष या उससे अधिक की सजा हुई हो, वह सजा की अवधि और रिहाई के छह वर्ष पश्चात् तक अयोग्य रहेगा। – पहले धारा 8(4) में अपील के लिए तीन महीने की छूट दी गई थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013) में इसे रद्द कर दिया, जिससे दोषसिद्धि के तुरंत बाद अयोग्यता लागू हो जाती है। |
Source :IE
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