प्रवर समिति की रिपोर्ट: दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) संशोधन विधेयक 2025

पाठ्यक्रम: GS2/ शासन; GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • लोकसभा की प्रवर समिति के अध्यक्ष ने दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, 2025 पर रिपोर्ट निम्न सदन में प्रस्तुत की।

प्रवर समिति की सिफ़ारिशें

  • समिति ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) को दिवाला अपीलों पर निर्णय लेने के लिए तीन माह की समय-सीमा तय करने का प्रस्ताव दिया है।
  • ‘सेवा प्रदाता’ (service provider) की परिभाषा में संशोधन कर ‘पंजीकृत मूल्यांकनकर्ता’ को IBC के अंतर्गत प्रदत्त संस्थाओं की सूची में शामिल करने और ‘पंजीकृत मूल्यांकनकर्ता’ की परिभाषा को विधेयक में सम्मिलित करने का सुझाव दिया गया है।
  • समिति ने यह भी सुझाव दिया कि संगति बनाए रखने के लिए जहाँ-जहाँ सेवा प्रदाता शब्द का प्रयोग किया गया है, वहाँ ‘पंजीकृत मूल्यांकनकर्ता’ का उपयुक्त उल्लेख किया जाए।
  • कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) पर समिति ने प्रस्ताव दिया कि समाधान योजना की परिभाषा को विस्तृत किया जाए ताकि CIRP से गुजर रहे कॉर्पोरेट देनदार के लिए एक से अधिक समाधान योजनाएँ प्रस्तुत की जा सकें।

विधेयक के मुख्य प्रावधान 

  • CIRP का अनिवार्य प्रवेश: विधेयक में प्रावधान है कि यदि चूक सिद्ध हो जाती है और आवेदन पूर्ण है, तो राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) को 14 दिनों के अंदर दिवाला आवेदन स्वीकार करना होगा। इस समय-सीमा पर न्यायिक विवेकाधिकार समाप्त कर दिया गया है।
  • ऋणदाता-प्रारंभित दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIIRP): विशेष वित्तीय ऋणदाताओं के लिए एक नई, मुख्यतः न्यायालय-बाह्य प्रक्रिया शुरू की गई है।
    • इस प्रक्रिया में प्रबंधन देनदार के पास रहता है, लेकिन समाधान पेशेवर (RP) की देखरेख में, और इसे 150 दिनों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • तरलन (Liquidation) में ऋणदाताओं की समिति (CoC) की भूमिका: CoC को तरलन प्रक्रिया की निगरानी करने और परिसमापक  को नियुक्त या प्रतिस्थापित करने का अधिकार दिया गया है, जिससे नियंत्रण केवल NCLT-नियुक्त परिसमापक से हटकर CoC के पास आ जाता है।
  • सरलीकृत वापसी: दिवाला आवेदन की वापसी केवल CoC के गठन के बाद और समाधान योजनाओं के लिए प्रथम आमंत्रण से पहले ही अनुमति दी जाएगी। इसके लिए 90% CoC की स्वीकृति आवश्यक होगी ताकि रणनीतिक विलंब रोके जा सकें।
दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) 2016
– IBC को 2016 में भारत में बढ़ते गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) और अप्रभावी ऋण वसूली तंत्र को संबोधित करने के लिए प्रस्तुत किया गया था।
– इसका उद्देश्य कॉर्पोरेट संकट समाधान प्रणाली में सुधार करना है, जिसमें देनदार-नियंत्रित व्यवस्था को हटाकर ऋणदाता-नियंत्रित तंत्र स्थापित किया गया है ताकि समयबद्ध समाधान सुनिश्चित हो सके।
IBC समाधान के उद्देश्य:
व्यवसाय पुनर्जीवन: पुनर्गठन, स्वामित्व में बदलाव या विलय के माध्यम से व्यवसायों को बचाना।
परिसंपत्ति मूल्य का अधिकतमकरण: देनदार की परिसंपत्तियों के मूल्य को संरक्षित और अधिकतम करना।
उद्यमिता और ऋण को बढ़ावा देना: उद्यमिता को प्रोत्साहित करना, ऋण की उपलब्धता में सुधार करना और ऋणदाताओं व देनदारों सहित हितधारकों के हितों में संतुलन स्थापित करना।
– वर्तमान में किसी कंपनी को दिवाला समाधान प्रक्रिया में प्रवेश मिलने के बाद अधिकतम 330 दिनों का समय समाधान खोजने के लिए दिया जाता है। अन्यथा, कंपनी तरलन (liquidation) में चली जाती है।

Source: AIR




 

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