पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण
संदर्भ
- बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) असम में दो गंभीर रूप से संकटग्रस्त गिद्ध प्रजातियों — स्लेंडर-बिल्ड वल्चर (जिप्स टेनुइरोस्ट्रिस) और व्हाइट-रम्प्ड वल्चर (जिप्स बेंगालेंसिस) — को पुनः स्थापित करने जा रही है।
गिद्ध
- गिद्ध 22 प्रजातियों में से एक हैं, जो बड़े आकार के मृतभक्षी पक्षी हैं और मुख्यतः उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियाँ पाई जाती हैं: ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड, लॉन्ग-बिल्ड, स्लेंडर-बिल्ड, हिमालयन, रेड-हेडेड, इजिप्शियन, बीयर्डेड, सिनेरियस और यूरेशियन ग्रिफॉन।

गिद्धों का महत्व
- गिद्ध प्रकृति के क्लीन-अप क्रू के रूप में कार्य करते हैं। वे संक्रमित शवों को खाते हैं जिससे रोगजनक नष्ट होते हैं और संक्रमण की श्रृंखला टूट जाती है।
- पारसी समुदाय के लिए गिद्ध अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अपने मृतकों को टावर्स ऑफ साइलेंस पर रखते हैं ताकि गिद्ध उन्हें खा सकें।
प्रमुख खतरे
- विषैले नॉन-स्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) जैसे डाइक्लोफेनाक का उपयोग, घोंसले वाले पेड़ों की कमी, विद्युत की लाइनों से करंट लगना, भोजन की कमी और दूषित भोजन, कीटनाशक विषाक्तता आदि पूरे देश में गिद्धों को खतरे में डालते हैं।
- BNHS पशु चिकित्सकों को गिद्ध-सुरक्षित विकल्प जैसे मेलॉक्सिकैम और टॉल्फेनामिक एसिड उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
- भारत में तीन प्रजातियों — ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड वल्चर, लॉन्ग-बिल्ड वल्चर और स्लेंडर-बिल्ड वल्चर — की 99 प्रतिशत जनसंख्या समाप्त हो गई है।
संरक्षण स्थिति
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-1: बीयर्डेड, लॉन्ग-बिल्ड, स्लेंडर-बिल्ड, ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड।
- शेष प्रजातियाँ ‘अनुसूची-IV’ के अंतर्गत संरक्षित हैं।
- IUCN रेड लिस्ट:
- गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered): ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड वल्चर, लॉन्ग-बिल्ड वल्चर, स्लेंडर-बिल्ड वल्चर और रेड-हेडेड वल्चर।
- संकटग्रस्त (Endangered): इजिप्शियन वल्चर।
- कम चिंता (Least Concerned): यूरेशियन ग्रिफॉन।
- निकट संकटग्रस्त (Near Threatened): हिमालयन, बीयर्डेड और सिनेरियस।
| बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) BNHS भारत की सबसे बड़ी और सबसे प्राचीन गैर-सरकारी संगठनों में से एक है, जो प्रकृति संरक्षण एवं जैव विविधता अनुसंधान के लिए समर्पित है। इसकी स्थापना 15 सितंबर 1883 को मुंबई में हुई थी। इसका मिशन अनुसंधान, शिक्षा और जन-जागरूकता पर आधारित कार्यवाही के माध्यम से प्रकृति का संरक्षण करना है। |
Source: TW
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